बुधवार, 30 जुलाई 2025

कविता

मनहरण घनाक्षरी

ज्योत्स्ना शर्मा प्रदीप

शिव

 

पावन सावन मास

मन में भरा हुलास

हर   हिय शिवमय

शंभू हर धाम  हैं।

गौरी  सुभग , अनूप

सति परिष्कृत रूप

शिव साधना से मिले

शुभ, अभिराम  हैं।।      

सावन में  तप  किया

गिरिजा ने जप किया

व्रत जो किया कठोर

कभी न विश्राम है!

उमा के वो दिन- रात

केवल खाती थी पात

फिर वायु पर जीती

तप   अविराम  है ।।

प्रभु  के  नैनों  में  नीर

अपर्णा की सोखी पीर

धीर शैलजा की देखी!

वरद,  ललाम   है।

मिलन  शिव-शिविका

भावों की खिली कलिका

संपूर्ण  जगत  गाता

कण-कण नाम  है।।

संग -संग  नृत्य , गीत

योग  साधना, संगीत

नहीं  देखी  प्रीत ऐसी

शुभद , निष्काम  हैं।

करुणा ,दया के कोष

नीलकंठ , आशुतोष

शिव ही आरंभ ,मध्य

शिव  ही  विराम है।।

 

ज्योत्स्ना शर्मा प्रदीप

देहरादून

2 टिप्‍पणियां:

  1. भक्ति से भरा समयोचित कविता ।

    हम भी बोलें, भोले भोले
    साथ डमरू भी डोले डोले
    हर हर महादेव की निनादें
    सावन में सारे बोलें बोलें

    तोलेटी (हिन्दी) चंद्र शेखर, विशाखापत्तनम

    जवाब देंहटाएं
  2. भक्ति भाव से ओत-प्रोत बहुत सुंदर रचना। हार्दिक बधाई।सुदर्शन रत्नाकर

    जवाब देंहटाएं

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