समसामयिक ग़ज़लों का गुलदस्ता है -
‘अधूरा ही रहा मोहन’
डॉ. घनश्याम बादल
कवि सुरेंद्र कुमार सैनी का पाँचवाँ
काव्य संग्रह ‘अधूरा ही रहा मोहन’ सुंदर एवं
कलात्मक कवर पृष्ठ के साथ हार्ड बाउंड संस्करण में अमृत प्रकाशन से प्रकाशित एक ऐसा
गजल संग्रह है जिसमें कवि के व्यक्तिगत मनोभावों के साथ-साथ विभिन्न घटनाओं एवं विषयों
पर समय-समय पर लिखी गई समसामयिक विविधता भरी 108 गजलें समाहित हैं।
दो साहित्यकारों कृष्ण सुकुमार एवं सुबोध पुंडीर
‘सरित’ की विस्तृत भूमिकाओं के साथ काव्य संग्रह
की शुरुआत होती है। इन भूमिकाओं एवं कवि के
कथ्य तथा अनुक्रमणिका आदि में कुल 32 पृष्ठ प्रयोग में लिए गए हैं । कवि
की मनपसंद गीतनुमा ग़ज़ल ‘अधूरा ही रहा मोहन’ को इस ग़ज़ल संग्रह का शीर्षक बनाया गया
है । 108
बिना उन्वान वाली ग़ज़लें 2019-20 से 2024 तक के कालक्रम में घटित अनेक घटनाओं
को स्पर्श करती हैं तथा कवि के अपने सुख-दुख के साथ-साथ कोरोना से लेकर दूसरी मर्मस्पर्शी घटनाओं का असर
स्पष्ट रूप से अधिकांश ग़ज़लों पर दृष्टिगोचर होता है ।
इस संग्रह में छोटी एवं बड़ी बह्र की ग़ज़लें शामिल की गई हैं । जिनमें सात आठ शे’रों
से लेकर 4-
5 शे’रों तक
की ग़ज़लें शामिल हैं। कहीं - कहीं कवि जीवन
की गहन पीड़ा एवं दर्शन में आकंठ निमग्न नज़र आता है तो कहीं-कहीं सतही विषयों पर भी
ईमानदारी से कलम चलाता है । इससे ऐसा लगता है कि कवि ने प्रबुद्ध पाठकों के साथ-साथ
सामान्य पाठकों का भी ध्यान रखा है।
कुछ ग़ज़लों में कवि की राजनीतिक एवं पारिवारिक
पृष्ठभूमि भी परिलक्षित होती दिखती है जो बहुत स्वाभाविक है । कुल मिलाकर संग्रह का
मुख्य विषय प्रेम,
और प्रेम में
भी वियोग तथा विरह है । मगर जब देश में कुछ बहुत चर्चित प्रकरण होते हैं तब भी कवि
अपना आक्रोश व विरोध ग़ज़लों में पिरोकर प्रस्तुत करता दृष्टिगोचर होता है।
भाषा, व्याकरण एवं सौष्ठव की दृष्टि से भी ‘अधूरा ही रहा मोहन’ संतोषजनक संग्रह है। कवर पृष्ठ के फ्लैप पर प्रसिद्ध
ग़ज़लकार मंगल नसीम की सार्थक एवं सकारात्मक टिप्पणी प्रकाशित है। यदि पुस्तक से कुछ
उल्लेखनीय अश’आर देखने हों तो ‘अधूरा ही रहा मोहन’ में
दिया है ज्ञान गीता का , मत मोह में फंसना,
तुम्हारा मन मगर ब्रज में विचरता ही
रहा मोहन।
कृष्ण के मन के अंतर्द्वंद को सार्थक रूप से अभिव्यक्त
करता है । कवि सामाजिक विद्रूपता एवं अंतर्मन के विश्वास तथा आवेग को व्यक्त करने के
लिए कहता है -
यहाँ हर एक बूढ़ा आदमी हंसने से डरता
है ।
पड़ा रहता है वो चुपचाप कुछ कहने से
डरता है ।
तथा जीवनसार को प्रकट करता उनका ही
शे’र
आज दुनिया में जो भी आया है,
कल वह वापस जरूर जाएगा
कवि के दर्शन
को असरकारी ढंग से प्रस्तुत करता है ।
बसंत के माध्यम से सीख देती हुई उनकी ग़ज़ल
कोई पतझड़ ऐसा अनंत,
आए न कभी जिसका वसंत,
पोथी पढ़ने वाले अनेक,
पर मुश्किल है मिलन सुमंत।
जीवन के यथार्थ
को प्रकट करता है ।
संस्कारों
के क्षेत्र में निरंतर पतन को इंगित करता हुआ कवि कहता है
खो गई जाने कहाँ संस्कार की बातें,
अब तो मुर्दे पर भी होती है प्रहार
की बातें,
इस तरह के अनेक शे’र गजल संग्रह ‘अधूरा ही रहा
मोहन’ के वैशिष्ट्य को प्रकट करते हैं ।
कागज एवं प्रिंटिंग की दृष्टि से यह ग़ज़ल संग्रह
स्तरीय है और 108 ग़ज़लें यदि 450 रुपए के संग्रह में उपलब्ध हो जाएँ
तो सौदा बुरा नहीं है। कुल मिलाकर सुरेंद्र
कुमार सैनी ‘अधूरा ही रहा मोहन’ ग़ज़ल संग्रह में अपने चिंतन तथा शैली को ही आगे बढ़ाते
नज़र आते हैं तथा साहित्यिक क्षेत्र में इस संग्रह से उनकी अपनी ही लकीर थोड़ी और बड़ी
हो गई है ।
समीक्षित कृति:
ग़ज़ल संग्रह ‘अधूरा ही रहा मोहन’।
कवि
: सुरेंद्र कुमार सैनी ।
प्रकाशक :
अमृत प्रकाशन दिल्ली ।
पृष्ठ संख्या
: 140 ।
मूल्य : ₹450 मात्र ।
संस्करण
: प्रथम ।
समीक्षक
डॉ. घनश्याम बादल
215, पुष्परचना कुंज,
गोविंद नगर पूर्वाबली
रुड़की - उत्तराखंड - 247667
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