जब अटल जी ने नहीं दिया आशीर्वाद
माता प्रसाद शुक्ल
दोस्तों, बात उन दिनों की है, जब माननीय अटल बिहारी वाजपेई देश के एक बार (पंत प्रधान)
बनकर भूतपूर्व हो गए थे। मैं सुबह दस बजे के करीब अपने पुश्तैनी घर के दरवाजे से
बाहर निकला, दरवाजे
से ही मैंने देखा कि अटल जी के निवास के सामने दस-बीस लोग खड़े हुए हैं। समझते देर
नहीं लगी,
कि आज अटल जी अपने पुश्तैनी निवास पर आ रहे हैं। थोड़ा आगे
चलकर देखा तो मुझे बिजली के खंभे के नीचे अंग्रेजी के प्रोफेसर और हिन्दी के कवि
पृथ्वीराज दुआ ‘चमन’ दिखाई दिए। मैंने उनसे नमस्कार की और कहा,
सर आप कैसे? ‘सर’ हमने इसलिए कहा कि, जिन दिनों हम एमएलबी कॉलेज में छात्र हुआ करते थे,
तब दुआ साहब ने एक दिन हमारा खाली पीरियड लिया था। इस कारण
हम दुआ साहब को सर का ही संबोधन देते थे।
दुआ साहब ने कहा कि मैं अटल जी से मिलने आया हूँ। मेरा एक
काव्य संग्रह, ‘ठहरी
कुछ बूँदें’ प्रकाशित होकर आ रहा है, उसके लिए उनसे आशीर्वाद लेना है। मैंने कहा,
सर यहाँ भीड़भाड़ में कहाँ बात हो पाएगी। इससे अच्छा होता,
कि आप उनसे दिल्ली में मिलते, तब उन्होंने कहा, कि नहीं, उनके सचिव से दो-तीन बार बात हो चुकी है। तब हमने कहा,
चलिए सर मैं आपको अटल जी से मिलवा देता हूँ। मुझे मालूम है
कि वे किस रास्ते से अपने निवास पर आते हैं और उनकी स्टाइल क्या है?
अटल जी अपने निवास पर कभी चार पहिया से नहीं आए,
क्योंकि गली संकरी है, अनेक मोड़ हैं। अटल जी की गाड़ी शिंदे साहब का बाड़ा स्थित
लक्ष्मी होटल के करीब पार्क होती थी। अटल जी वहाँ से खरामा-खरामा अपने दो-एक
स्थानीय पुराने मित्रों के साथ बातें करते हुए आते थे।
हम दुआ सर को लेकर उसी गली में पहुँचे जिससे अटल जी आते थे।
कमल सिंह का बाग के पहली गली के तीसरे मोड़ पर हमने अटल जी को रोक लिया। गोवा
मुक्ति आंदोलन के सेनानी बी.के. वरखेड़कर के किराए के मकान के पास। अटल जी के साथ
एमएलबी कॉलेज के तत्कालीन प्रोफेसर डॉक्टर आर.पी. शुक्ला साथ चल रहे थे,
अटल जी के पीछे उनका सुरक्षा गार्ड भी था,
वहीं पर नाली का
गटर भी है।
मैंने अटल जी से हाथ जोड़कर नमस्कार करी और कहा कि ये
पृथ्वीराज दुआ हैं, कवि हैं, इनका
एक कविता संग्रह प्रकाषित हो रहा है। आपसे आशीर्वाद चाहते हैं, संग्रह पर। दोस्तों, इस बीच दुआ साहब ने एक बड़ी बेवकूफी कर दी। अपनी जेब से
विजीटिंग कार्ड निकाला और अटल जी को थमा दिया। यह कहकर कि यह मेरा विजीटिंग कार्ड
है। अटल जी ने विजीटिंग कार्ड तो ले लिया, मगर अटल जी एकदम उखड़ से गए, बोले ‘हम ऐसे आशीर्वाद नहीं देते। काव्य संग्रह आ जाने
दीजिए।’
मित्रों, दुआ साहब अंग्रेजी के प्रोफेसर थे,
सूट बूट, टाई डाई में रहते थे। यदि कोई हिन्दी का मास्टर होता तो वह
तुरंत ही अपने वरिष्ठ कवि और देश के पूर्व प्रधान मंत्री के चरण अवश्य छूता,
और उसको अटल जी का आशीर्वाद भी मिलता। अटल जी तो जन्म जात
कवि थे। पिता श्री कृष्णा बिहारी लाल खुद एक अच्छे कवि थे। उनकी लिखी हुई
प्रार्थना ग्वालियर रियासत के विद्यालयों में गाई जाती थी। अटल जी के बाबा श्री श्याम
लाल वाजपेई भी संस्कृत के प्रकांड विद्वान थे। भागवत कथावाचक थे। अटल जी के
फोरफादर श्री काशी प्रसाद बटेश्वर में प्रतिदिन यमुना स्नान करने जाते थे। अटल जी
के सबसे बड़े भाई अवध बिहारी वाजपेई ‘अवधेश’, उपनाम से कविताएँ लिखते थे। उनका एक काव्य संग्रह लखनऊ से
प्रकाषित हुआ था। मेरी उनसे गोष्ठी चलती रहती थी। तंबाकू खाते थे,
हमारी दुकान पर तंबाकू लेने आते थे।
अटल जी के पिता जी ने प्रसिध्द कवि डॉ. शिव मंगल सिंह
‘सुमन’ को पढ़ाया था। अटल जी को ‘सुमन’ जी ने ग्वालियर में पढ़ाया था।
मित्रों, दुआ साहब के दो काव्य संग्रह आए,
लेकिन दोबारा कभी उनकी हिम्मत नहीं पड़ी अटल जी से आशीर्वाद
लेने की। ग्वालियर के कथित मठाधीश कवियों ने दुआ साहब का खूब दोहन किया,
खूब उनसे हम्माली कराई।
(अमृत, राजस्थान में प्रकाशित, 8-14 जून, 2024)
माता प्रसाद शुक्ल
902/7,
नॉर्थ एवेन्यू, ओरियन टावर,
ओमेक्स सिटी, दिल्ली रोहतक रोड,
बहादुरगढ़ 1245 07 हरियाणा
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