यूनेस्को विश्व स्मृति रजिस्टर में ‘भगवद्गीता’ और
‘नाट्यशास्त्र’ के दर्ज होने के साथ
वैश्विक महत्ता-मान्यता प्राप्त चौदह भारतीय दस्तावेज......
प्रो. हसमुख परमार
यूनेस्को द्वारा 1992 ई. में स्थापित मेमोरी ऑफ़ द वर्ल्ड रजिस्टर मूलतः विश्व
धरोहर के रूप में प्राप्त व ख्यात महत्त्वपूर्ण दस्तावेजों-अभिलेखों की एक सूची है
। इस सूची में दर्ज किये जाने वाले दस्तावेज मुख्यतः पांडुलिपि,
पुस्तक, मानचित्र, चित्रों, तस्वीरों, ध्वनि और विडियो रिकार्डिंग रूप में होते हैं । दरअसल
संयुक्त राष्ट्र की विशेष एजेंसी संयुक्त राष्ट्र शैक्षिक,
वैज्ञानिक और सांस्कृतिक संगठन (UNESCO)
के इस रजिस्टर का उद्देश्य है- अंतरराष्ट्रीय स्तर पर विविध
देशों-भाषाओं-संस्कृतियों में प्राप्त कतिपय ऐसे दुर्लभ दस्तावेजों की धरोहर को सुरक्षित रखना,
इस वैश्विक स्मृति धरोहर का प्रचार-प्रसार कर समाज का इस
विरासत के प्रति आकर्षण व जागरूकता को बढ़ाना, दुनिया के महत्वपूर्ण- मूल्यवान ग्रंथों व अभिलेखों को
संगृहीत-संरक्षित कर आगामी पीढियों को इनसे परिचित व लाभान्वित करना ।
हाल ही में-17 अप्रैल, 2025 को यूनेस्को के MOW रजिस्टर में 74 नई प्रविष्टियाँ शामिल की गई । इसके साथ ही उक्त रजिस्टर
में वैश्विक दस्तावेजी धरोहर के रूप में दर्ज दस्तावेजों की कुल संख्या 570 हुई । विश्व के विविध देशों तथा कुछेक अंतरराष्ट्रीय
संगठनों की विशिष्ट इन उपलब्धियों में भारतीय उपलब्धियों-दस्तावेजों की संख्या अब 14 हो गईं । इस वर्ष-17 अप्रैल, 2025 में हमारी दो महान भारतीय रचनाएँ – ‘भगवद्गीता’ और
भरत मुनि के ‘नाट्यशास्त्र’ को
स्थान मिलने के साथ ही इस विश्व स्मृति रजिस्टर में भारतीय दस्तावेजों की संख्या
चौदह तक पहुँची । यह उपलब्धि भारतीय साहित्य, समाज, संस्कृति-सभ्यता, भाषा की एक महत उपलब्धि है । भारत और हर भारतीय के लिए हर्ष
व गौरव का विषय है । ‘भगवद्गीता’ तथा ‘नाट्यशास्त्र’ को मिली यह
वैश्विक महत्ता भारतीय दर्शन, कला, ज्ञान, संस्कृति
तथा भाषा की गौरव-गरिमा में, उसकी महानता-महत्ता में गुणात्मक वृद्धि करती है । उक्त
दोनों ग्रंथ- एक ज्ञान व दर्शन का ग्रंथ तथा दूसरा प्रदर्शन कला संबंधी । इस तरह
इन दोनों रचनाओं का विश्व विरासत सूची में समावेश मतलब भारत की मेधा-मनीषा और कला
संबंधी कौशल-प्रतिभा का विश्व मंच से बहुमान-सम्मान ।
आर्ष काव्य ‘महाभारत’ के ही क्रोड से जन्मी सिर्फ
भारत की ही नहीं अपितु विश्व की महान व सर्वोत्कृष्ट रचना ‘भगवद्गीता’ ज्ञान
का नवनीत है । कुरुक्षेत्र की युद्धभूमि पर श्रीकृष्ण द्वारा अर्जुन को दिया गया
उपदेश इस रचना का केन्द्रीय प्रतिपाद्य विषय है जो कुल अठारह अध्यायों में विभक्त
है ।
गीता सुगीता कर्तव्या किमन्यैः शास्त्र विस्तरैः ।
या स्वयं पद्मनाभस्य मुखपद्माद्विनीः सृता ।।
एक जगविख्यात ज्ञान व दर्शन के ग्रंथ के रूप में ‘भगवद्गीता’
ज्ञान के साथ-साथ कर्म और भक्ति के स्वरूप-उद्देश्य व महत्त्व को भी बखूबी बताता
है,
अतः कहा गया है कि गीता की विषयवस्तु मुख्यतः ज्ञानयोग,
कर्मयोग और भक्तियोग की मीमांसा है । प्रश्नोत्तर या
संवादशैली तथा श्लोकों के रूप में रचित-निर्मित व विकसित इस रचना की अनेकों
व्याख्याएँ-टिकाएँ देश दुनिया में प्रचलित
हैं ।
‘गीता’ की
लोकप्रियता, स्तरीयता
व सर्वोपरीता का एक बड़ा प्रमाण है कि गिनेस वर्ल्ड रिकॉर्ड के अनुसार दुनिया की
बेस्टसेलर पुस्तकों में बाइबल और कुरान के बाद तीसरे क्रम पर ‘भगवद्गीता’
का नाम लिया जाता है । एक अखबारी समाचार के मुताबिक ‘गीता’ की अनुमानतः
सत्तर करोड प्रतियाँ बिकी और वितरित हुई हैं ।
भरत मुनि प्रणीत ‘नाट्यशास्त्र’ भारतीय नाट्यशास्त्र
या संस्कृत काव्यशास्त्र का प्रथम उपलब्ध ग्रंथ है, अतः भारतीय नाट्यशास्त्र या काव्यशास्त्र के आद्याचार्य के
रूप में भरत मुनि का नाम लिया जाता है । भरत मुनि का समय अनुमानतः 2 री शती ई.पू. से 2 री शती ई. के बीच है । कुछेक संस्कृत साहित्य के इतिहास
लेखकों ने नाट्यशास्त्र का रचनाकाल 3 री शती ई.पू. से प्रथम शती ई.पू. के बीच माना है । 36 अध्यायों में विभक्त इस ग्रंथ का केन्द्रीय विवेचित विषय
नाटक है,
अर्थात् प्रदर्शन कला का एक बृहद् ग्रंथ । नाट्य चिंतन के
अति प्रौढ़ इस ग्रंथ में नाटक के सभी पक्षों का सटीक विवेचन मिलता है ।
“नाट्यशास्त्र का प्रमुख प्रतिपाद्य नाटक और रंगमंच का
आंतरिक एवं बाह्य व्यवस्थापन है, जिसके अंतर्गत प्रेक्षागृह की संरचना,
नृत्य, संगीत, अभिनय आदि विषयों का समावेश हुआ है । इस ग्रंथ में पहली बार
‘रस’ के अंगों– विभाव, अनुभाव और संचारी भावों का स्पष्ट उल्लेख मिलता है । यथा
संदर्भ कुछ अलंकारों, गुणों, काव्यदोषों
की भी चर्चा हुई है । भरत मुनि का रस सूत्र- ‘विभावानुभाव व्यभिचारिसंयोगाद्र
रस निष्पति ।’- काव्यशास्त्र को उनकी सबसे बडी देन है,
इस सूत्र के आधार पर ही उत्तरवर्ती आचार्यों ने रस के
स्वरूप और उसकी आस्वादन प्रक्रिया को जानने-समझने का प्रयास किया है ।” (भारतीय
एवं पाश्चात्य काव्यशास्त्र की रूपपरेखा, तेजपाल चौधरी, पृ.51)
भरत मुनि के रस
विषयक चिंतन के चलते उनको रसवाद (रस सिद्धांत) का प्रतिष्ठापक अथवा प्रथम
प्रतिपादक माना जाता है ।
नाटक के संबंध में भरत मुनि का कहना है कि – “ न ऐसा कोई
ज्ञान है,
न शिल्प है, न विद्या है, न ऐसी कोई कला है, न कोई योग है, न कोई कार्य ही है जो इस नाट्य में प्रदर्शित न किया जाता
हो । ”
भरत मुनि के ‘नाट्यशास्त्र’ को पंचम वेद कहा है ।
ॠग्वेद,
यजुर्वेद, सामवेद और अथर्ववेद से क्रमशः पाठ्य,
अभिनय, संगीत और रस को लेकर नाट्यशास्त्र की रचना की गई ।
जग्राह पाठ्यं
ॠग्वेदात्सामथ्यो गीतमेव च ।
यजुर्वेदादभिनयान रसाना भवर्णादपि ।।
इन दो ग्रंथों से पूर्व विश्व स्मृति रजिस्टर में शामिल
भारतीय प्रविष्टियों ( अभिलेखों-दस्तावेजों)----गूगल से प्राप्त तथ्यात्मक जानकारी
के अनुसार इन प्रविष्टियों में--तमिल आयुर्वेदिक पांडुलिपियाँ- पारंपरिक तमिल
चिकित्सा ज्ञान (आईएएस तमिल मेडिकल पांडुलिपि संग्रह ) 1997 ई. में यूनेस्को स्मृति रजिस्टर में स्थान प्राप्त करने
वाला यह ताड के पत्तों पर लिखा गया दस्तावेज आयुर्वेदिक चिकित्सा पद्धति तथा जडी
बूटियों,
हर्बल जडो-फूलों-फलों-पत्तियों से दवाइयाँ बनाने का विशेष
ज्ञान दर्शाता है । वर्ष 2005 में इस रजिस्टर में स्थान दिया गया ‘शैव पांडुलिपियों’
को । यह पांडुलिपियाँ मूलतः शिव से संबंधित धार्मिक-दार्शनिक विषय वस्तु को लेकर
हैं जो शैव धर्म-दर्शन व इतिहास के साथ साथ एक विशेष सांस्कृतिक धरोहर की जानकारी
देती हैं । भारतीय साहित्य- विश्व साहित्य के महान ग्रंथ ‘ॠग्वेद’ को वर्ष 2005’
में शामिल किया गया
। ‘विद्यते ज्ञायतेऽनेनेति वेदः।’
वेद अर्थात् ज्ञान । भारतीय ज्ञान साहित्य की परंपरा में सर्वप्रथम उल्लेख वेदों
का होता है और चार वेदों में प्रथम ॠग्वेद । कहा गया है कि वेद (ॠग्वेद) सबसे
प्राचीन रचना है । इस ग्रंथ का वैशिष्ट्य इस बात में है कि धर्म व अध्यात्म के साथ
साथ यह हमें दर्शन, संस्कृति, सभ्यता,
नैतिकता , समाज जीवन, इतिहास आदि से संदर्भित महत्वपूर्ण जानकारी भी प्रदान करता
है ।
यूनेस्को के
विश्व स्मृति रजिस्टर में शामिल की गई अन्य भारतीय रचनाओं तथा शामिल किये गए वर्ष-तारीख-ऐ-खानदान-ए-तिमुरिया
(2011),
लघुकालचक्रतंत्रराजटिका
विमलप्रभा (2011), शांतिनाथ चरित्र (2013) - जैन धर्म के सोलहवें तीर्थंकर शांतिनाथ के जीवन व उनके समय
को बताने वाला जैन धर्म का ग्रंथ), गिलगित पांडुलिपि(2017), मैत्रेयवरकण (2017), अभिनव पांडुलिपियाँ ( 2023-भारतीय दर्शन, काव्यशास्त्र, सौंदर्यशास्त्र, साहित्य सिद्धांत संबंधी अभिनव गुप्त की पांडुलिपियाँ ) तथा
2024 में ‘रामचरितमानस’,
‘पंचतंत्र’ तथा सहृदयलोक-लोकन को उक्त विश्व स्मृति दस्तावेजी
सूची में दर्ज किया गया । हिन्दी साहित्य की एक अमर, अप्रतिम व अनमोल धरोहर के रूप में तुलसीदास कृत
‘रामचरितमानस’ की ख्याति रही है । प्रसिद्ध रामकथा पर केन्द्रित साहित्य कृतियों
में यह कृति शीर्षस्थ है । तुलसी की महानता के द्योतक कुछ मत-अभिमत-कलिकाल का
वाल्मीकि (नाभादास), बुद्धदेव के बाद सबसे बड़ा लोकनायक (ग्रियर्सन) तुलसी की रचनाशैली के संबंध में
आ.रामचंद्र शुक्ल लिखते हैं- “ हिन्दी
काव्य की सब प्रकार की रचनाशैली के ऊपर गोस्वामीजी ने अपना ऊँचा आसन प्रतिष्ठित
किया है । यह उच्चता और किसी को प्राप्त नहीं ।” इसमें कोई संदेह नहीं कि ‘रामचरितमानस’
भारतीय धर्म, दर्शन,
भक्ति, लोक, संस्कृति को लेकर भारतीय साहित्य का शीर्षस्थ ग्रंथ है । शिवमंगल सिंह सुमन ने
तो यहाँ तक कहा कि यदि किन्हीं कारणों से हिन्दुओं के तमाम धर्मग्रंथ नष्ट हो जाएँ
,
लेकिन यदि ‘मानस’ बच जाय तो हिन्दू धर्म पुनः
पल्लवित हो सकता है । ”
भारतीय साहित्य
के अंतर्गत कथा-कहानियों के उद्भव-विकास के प्रथम सोपान में हम ‘पंचतंत्र’
की कहानियों को देखते हैं । मनुष्य पात्रों के साथ मानवेतर जीवों-पशु-पक्षियों की
पात्रसृष्टि को लेकर रची-गढ़ी गई ये कहानियाँ मूलतः नीतिकथाएँ-बोधकथाएँ हैं जिसकी रचना अनुमानतः 300 ई. पू. के आसपास पं.विष्णुशर्मा द्वारा की गई । पाँच
तंत्रों (भागों) में विभक्त ये कहानियाँ मुख्यतः शिक्षाप्रद है । मानव-समाज को
उपदेश देने या उसमें नैतिक मूल्यों का विकास करना इन कहानियों मूल उद्देश्य रहा है
। इस तरह भारतीय नीतिकथाओं- बोधकथाओं में पंचतंत्र का स्थान प्रथम व प्रमुख है
।
प्रो. हसमुख परमार
स्नातकोत्तर हिन्दी विभाग
सरदार पटेल विश्वविद्यालय
वल्लभ विद्यानगर
महत्त्वपूर्ण आलेख। बधाई प्रो. हसमुख परमार जी 💐
जवाब देंहटाएंमहत्वपूर्ण, ज्ञानवर्धक आलेख। बधाई ।सुदर्शन रत्नाकर
जवाब देंहटाएंआम लोगों के लिए महत्वपूर्ण जानकारी । ये ग्रंथ भारत का गौरव है ।
जवाब देंहटाएंगौरव की अनुभूति कराता बहुत सारगर्भित लेख, हार्दिक बधाई आदरणीय 💐🙏
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