पुरस्कृत प्रतिभा :
विनोद कुमार शुक्ल को
ज्ञानपीठ पुरस्कार
राजा दुबे
सुप्रसिद्ध साहित्यकार विनोद कुमार शुक्ल को वर्ष 2024 के लिये ज्ञानपीठ पुरस्कार के लिये चुना
गया है । यह सम्मान पाने वाले छत्तीसगढ़ के वे पहले लेखक हैं। अट्ठासी साल के श्री
शुक्ल अपनी सरल भाषा और संवेदनशील लेखन के
लिए जाने जाते हैं। उन्होंने - "नौकर की कमीज " और " दीवार में एक
खिड़की रहती थी" जैसी प्रसिद्ध औपन्यासिक कृतियाँ लिखीं। चयन समिति ने उनकी
अनूठी लेखन शैली और हिंदी साहित्य में उनके अप्रतिम योगदान के लिए यह पुरस्कार
देने का निर्णय लिया।
ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित किये जाने की घोषणा पर श्री
शुक्ल ने कहा कि यह भारत का, साहित्य का एक बहुत बड़ा पुरस्कार है । इतना बड़ा पुरस्कार मिलना यह मेरे लिए खुशी की
बात है ।भारतीय भाषाओं में उत्कृष्ट साहित्य रचने वाले रचनाकारों को ज्ञानपीठ
पुरस्कार प्रदान किया जाता है । इस पुरस्कार के तहत ग्यारह लाख रुपये की सम्मान
निधि ,
वाग्देवी की काँस्य प्रतिमा और प्रशस्ति पत्र प्रदान किया
जाता है ।
लेखक, कवि और उपन्यासकार शुक्ल
की पहली कविता वर्ष 1971 में " लगभग जयहिंद " शीर्षक से प्रकाशित हुई थी
। उनके प्रमुख उपन्यासों में ," नौकर की कमीज ", " दीवार में एक खिड़की रहती थी " और " खिलेगा तो
देखेंगे " शामिल हैं।शुक्ल के उपन्यास
"नौकर की कमीज " पर प्रसिद्ध फिल्मकार मणि कौल ने वर्ष 1999 में इसी नाम से एक
फिल्म बनायी थी। इस फिल्म के बारे में सुप्रसिद्ध पत्रकार रवीश कुमार का मानना है
कि आपके उपन्यास " नौकर की कमीज़ "
इसलिये महान रचना नहीं है क्योंकि उस पर फ़िल्म बनी है बल्कि इसलिये महान
रचना है क्योंकि आज़ नौकरियों में इन्सान
की गरिमा घिसती हुई एकदम् मिटने की कगार
पर है और आपने इस रचना के माध्यम
से उस गरिमा को पुनर्प्रतिष्ठित करने का बड़ा काम किया है ।
उनके रचनाकर्म का जहाँ तक सवाल है - उनके उपन्यास -"
नौकर की कमीज ," "
खिलेगा तो देखेंगे " और " दीवार में एक खिड़की
रहती थी ", हिन्दी
के सबसे बेहतरीन उपन्यासों में माने जाते हैं । उनकी कहानियों के संग्रह "
पेड़ पर कमरा " और " महाविद्यालय " की भी बहुत चर्चा रही ।उनकी कविताओं की
किताबों में - " वह आदमी चला गया नया गरम कोट पहनकर ",
" आकाश धरती को खटखटाता
है " और " कविता से लम्बी कविता " जैसी कृतियाँ तो बेहद लोकप्रिय
हुई हैं । आपने बच्चों के लिए भी किताबें लिखी हैं - " जिनमें हरे पत्ते के
रंग की पतरंगी " और " कहीं खो
गया नाम का लड़का " जैसी किताबें शामिल हैं, जिन्हें बच्चों ने बहुत पसन्द किया है । उनकी किताबों का
अनुवाद कई भाषाओं में हो चुका है और उनका साहित्य दुनिया भर में पढ़ा जाता है ।
कविकर्म के औचित्य पर उनकी यह पंक्तियाँ भी महत्वपू्र्ण
मानी जा रही हैं –
"
मुझे बचाना है
एक-एक कर
अपनी प्यारी दुनिया को
बुरे लोगों की नज़र है
इसे खत्म कर देने पर "
वे आज भी लेखन में सक्रिय हैं ,उम्र के इस मुकाम पर आपका यह कहना कि - " मुझे लिखना
बहुत था ,
बहुत कम लिख पाया । मैंने देखा बहुत,
सुना भी बहुत , महसूस भी किया बहुत , लेकिन लिखने में थोड़ा ही लिखा ,कितना कुछ लिखना बाकी है ...इस बचे हुए को लिख लेता अपने
बचे होने तक "
यह वाक्यांश उनकी सृजनात्मकता की इच्छा को दर्शाता है ।वे
आज भी लेखन में सक्रिय हैं, खासतौर पर बच्चों के लिए लिखना उन्हें पसंद है। उनका मानना है कि "लिखना
एक छोटी चीज़ नहीं है, इसे निरन्तर करते रहना चाहिए और पाठकों की प्रतिक्रिया पर भी ध्यान देना
चाहिए।" विनोद कुमार शुक्ल की
यह निरन्तरता बनी रहे
इसी शुकामना के साथ, सादर अभिवादन ।
उन्हें साहित्य अकादमी पुरस्कार,
राष्ट्रीय मैथिलीशरण गुप्त सम्मान और अंतरराष्ट्रीय साहित्य
में उनके योगदान पर वर्ष 2023 के " पेन-नोबोकोव अवॉर्ड फॉर अचीवमेंट इन इंटरनेशनल
लिटरेचर " से भी सम्मानित किया गया था । उनका लेखन सरल भाषा,
गहरी संवेदनशीलता और अद्वितीय शैली के लिये जाना जाता है।
वह हिन्दी साहित्य में अपने प्रयोगधर्मी
लेखन के लिये प्रसिद्ध हैं।
राजा दुबे
एफ - 310 राजहर्ष कालोनी ,
अकबरपुर
कोलार रोड
भोपाल 462042
वाह दुबे जी,शानदार लेख । श्री विनोद कुमार शुक्ल को हिंदी साहित्य में दिये गये योगदान के लिये सदैव याद रखा जावेगा । वे इस सम्मान के हकदार थे, उन्हें सम्मानित कर हम सब भी गौरवान्वित हो गये है ।
जवाब देंहटाएंअच्छा लेख है।बधाई!
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