आनंदवर्धक छंदाधारित मुक्तक
1
कटु सत्य
डॉ. अनिल कुमार बाजपेयी ‘काव्यांश’
चाटुकारों की जहाँ जय हो रही ।
योग्यता छुपके वहाँ पर रो रही ।।
राष्ट्र फिर कैसे बढ़े बतला जरा ।
चैन सुख सब शांति भी खो रही ।।
बाँट दो सब जातियों को धर्म को ।
कौन पूछे अब
तुम्हारे कर्म को ।।
भीड़ के ही शोर की बस गूँज है ।
बोल दो चुप ही रहे अब मर्म को ।।
बाहुबल धन की सदा ही जीत है ।
झूठ सत्ता का
पुराना मीत है ।।
लट्ठ के सँग भैंस
तो जाती सदा ।
क्यों दुखी होते
यही तो रीत है ।।
हे प्रभो रक्षा
करो हनुमान जी ।
कर रहे नित आपका ही ध्यान जी ।।
आपसे ही तो
किरण उम्मीद की ।
आप ही हैं शक्ति का प्रतिमान जी ।।
***
गीतिका छन्दाधारित मुक्तक
2
सच्चा साहित्य
है वही साहित्य
सच्चा,
मैल मन का धो सके।।
निर्धनों की पीर को जो,
शब्द बनकर ढो सके ।।
प्रेम, प्रेमी, इश्क, मजनू,
पर लिखा तो क्या लिखा।
यूँ लिखो पत्थर ह्रदय भी,
देख उनको रो सके।।
डॉ. अनिल कुमार बाजपेयी ‘काव्यांश’
जबलपुर
सुन्दर मुक्तक, हार्दिक बधाई 💐💐
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