जब शब्दों के अर्थ निकलते हैं
मोहिनी शर्मा
जब शब्दों के अर्थ निकलते हैं,
तब अर्थ के मान तय होते हैं।
सही शब्दों के सार्थक अर्थ, मान बढ़ाते हैं ।
वहीं गलत शब्दों के निरर्थक अर्थ,
बेमानी हो जाते हैं ।
अगर समान शब्दों का केवल क्रम बदलते हैं,तब भावार्थ बदल ही जाता है ।
उदाहरणार्थ- काफी अकेला हूँ या अकेला काफी हूँ ,
में भावार्थ
नकारात्मक और सकारात्मक की भेंट चढ़ जाता है ।
शब्दों के अर्थ का ज्ञान ही,उचित-अनुचित का प्रयोग
सिखाता है ।
शब्दों के प्रयोग
से पहले,
अर्थ की पहुँच का
ध्यान रहे ।
शब्दों के अर्थ दूर तक जाते हैं,
या तो यह मरहम बनते हैं या फिर नश्तर बन जाते हैं ।
शब्दों को परोसने से पहले, स्वयं स्वाद जरूर चखो तुम,
अगर यह स्वादिष्ट लगे, तब ही इसका प्रयोग करो तुम ।
वर्ना रसहीन शब्द
प्रयोग के जिम्मेदार तुम स्वयं बनोगे ।
फिर अपने आप को शब्दों के जाल में तुम खुद बुनोगे
आओ, इस ओर विशेष ध्यान करें , जब शब्दों के प्रयोग के अर्थ निकलते हैं,
तब इसमें
हमारे संस्कार झलकते हैं,
तब इसमें
हमारे संस्कार झलकते हैं ।
मोहिनी शर्मा
( सेवानिवृत्त शिक्षिका )
शिक्षा
विभाग यू .टी .चंडीगढ़
वाह !वाह!बिल्कुल सही!🙏🏼
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हटाएंVery nice Mohini keep it up God bless you 👍👍👍👌👌👌🌹🌹🌹
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हटाएंबहुत खूब मैडम जी...
जवाब देंहटाएंअनुपमा
🙏
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर कविता Ma'am
जवाब देंहटाएंMohini Sharma -- आप सभी का मन से धन्यवाद 🙏
जवाब देंहटाएंBahut ache thoughts and message - Manuj Puja
जवाब देंहटाएं🙏
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