‘शब्दसृष्टि’ के पृष्ठ
प्रो. हसमुख परमार
साहित्यिक पत्र-पत्रिकाएँ मूलतः भाषा व
साहित्य से संबद्ध बहुआयामी सर्जनात्मक-विवेचनात्मक प्रतिभा से हमें परिचित कराती
हैं । विविध
शैलियों-विधाओं में वर्णित-समीक्षित विषयवस्तु के आधार पर इन पत्र-पत्रिकाओं की
स्तरीयता पर बात करना एक अलग विषय है, और वैसे भी सृजन-लेखन-संपादन की उत्कृष्टता
के मानक एक नहीं एकाधिक हैं जो बडे ऊँचे हैं और युग-भूगोल-विधा के अनुसार इनमें
परिवर्तन व विविधता भी संभव है । ऐसी स्थिति में, और इस निकष पर हर एक
सर्जक-समीक्षक व संपादक के लिए पूर्णतया खरा उतरना संभव नहीं है। खैर, औदात्य अपेक्षित है, किंतु सबके लिए वहाँ
पहुँचना मुश्किल, ऐसे में हम यह जरूर चाहेंगे कि बतौर भाषा व साहित्य सेवी
(सर्जक-समीक्षक-संपादक) का ‘कद’ भले छोटा हो पर भाषा व साहित्य के प्रति
अनुराग-लगाव और समर्पण-प्रतिबद्धता के मामले में उनका ‘कद’ ऊँचा होना जरूरी ।
अपने द्वारा संपादित सामग्री के ‘स्तर’ का तो हर
संपादक आग्रही होता ही है, जिसके लिए वह सदैव प्रयत्नशील रहता है । किंतु कभी कभी नवोदित व युवा
कवियों-लेखकों-समीक्षकों को एक मंच देकर इन्हें प्रोत्साहित करने की सद् भावना के
चलते संपादक अपने कुछ मापदण्डों में थोडी छूटछाट भी लेता है । इस तरह एक तरफ साहित्य जगत में स्थपित व
बहुस्वीकृत साहित्यसेवियों व भाषाचिंतकों की लेखनी का सहयोग पाकर पत्रिकाएँ जहाँ
गौरवान्वित होती हैं वहाँ दूसरी तरफ कुछ नवीन प्रतिभाओं को मुखर होकर
प्रचारित-प्रसारित होने में ये पत्रिकाएँ बडी सहायक बनती हैं ।
हम
देखते हैं कि साहित्य में उसके कुछ निश्चित, निर्धारित व परंपरागत विषयों के साथ साथ
ज्ञान-विज्ञान की अनेकों डिसिप्लिन जैसे – दर्शन, इतिहास, मनोविज्ञान, राजनीति,
धर्म-अध्यात्म, आयुर्वेद , योग, नीतिशास्त्र , समाज विज्ञान, पर्यावरण प्रभृति से
संदर्भित विविध विषयों की भी प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष रूप से प्रस्तुति होती रहती है।
दरअसल इन ज्ञान-विज्ञान संबंधी स्वतंत्र पुस्तकों व पत्रिकाओं के साथ-साथ हिन्दी
की साहित्यिक पत्रिकाओं में ज्ञान संदर्भित साहित्य रूपों से जुडी रचनाओं के अलावा
उक्त विषयों से जुड़े वैचारिक लेखों-टीका-टिप्पणियों व पुस्तक परिचय को दिया जाता
रहा है । इस तरह साहित्यिक पत्रिकाओं में साहित्य व हिंदी भाषा के साथ-साथ इतिहास,
कला, दर्शन, विज्ञान, राजनीति, धर्म-अध्यात्म जैसे विषयों से संबंधी लेखन की भी एक सुदृढ़ परंपरा रही है ।
हिन्दी साहित्यिक पत्रिकाओं की उपरोक्त
विशेषताओं को हम कमोवेश ‘शब्दसृष्टि’ पत्रिका के अंको तथा उसके लगभग हर अंक के
पृष्ठों से गुजरते हुए देख सकते हैं । अपनी कुछेक सीमाओं-मर्यादाओं तथा कुछ कमियों
के बावजूद ‘शब्दसृष्टि’ अपने एक अच्छे खासे रूप-कलेवर के साथ अग्रसर हो रही है ।
अपने विगत अंकों की तरह ‘ शब्दसृष्टि’ का यह 57
वाँ अंक भी विधागत व विषयगत विविधता लिये हुए है । काव्य के कुछेक परंपरागत विषयों
व शैलियों के साथ-साथ थोड़े बहुत प्रयोगशीलता के संस्पर्श के साथ कुछ कविताएँ हैं, जिनमें
– होली के रंग, मस्ती व संदेश को बताती मालिनी त्रिवेदी पाठक, भारतीय नारी का
गौरवगान तथा इसकी यथार्थ स्थिति-छवि को रेखांकित कर रहे सुरेश चौधरी तथा मीनूबाला,
अपने भावलोक तथा जीवन यथार्थ से संबद्ध कुछ विशेष विचार व संवेदना के क्षणों को
हाइकु में पिरोती प्रीति अग्रवाल, संवेदना और वैचारिकी के योग से सजी अनिता मंडा की
उम्दा अभिव्यक्ति, पारिवारिक जीवन मूल्यों से समृद्ध दौर का स्मरण कर रहे विवेक मेहता,
अपनी निजी अनुभूति-जगत व जीवन को लेकर विचार- गाँव के प्रति अपने आकर्षण की वजह
तथा इंसानी जीवन को शेयर मार्केट की स्थिति व शब्दावली में बताते डॉ.नरेश सिहाग,
डॉ. अनिल कुमार बाजपेयी के ‘कटु सत्य’ तथा ‘सच्चा साहित्य’ का तो कहना ही क्या !
उम्दा, तथा शब्द और उसके अर्थ को लेकर मोहिनी शर्मा के विचार बड़े ही उत्कृष्ट और
उपयोगी ।
अपनी बड़ी ही सहज और सुंदर गद्यशैली में
डॉ.पूर्वा शर्मा तथा श्रीराम पुकार शर्मा ने क्रमशः पलाश व गुलमोहर के फूलों की शोभा तथा तत्संबंधी
कुछेक महत्वपूर्ण संदर्भों का निरूपण किया है । डॉ. शिप्रा शर्मा की कहानी की
संवेदना तथा उसकी एकदम जज्बाती अंदाज में प्रस्तुति बड़ी ही सराहनीय ।
‘शब्दसृष्टि’
के नियमित स्तंभ – शब्द संज्ञान तथा व्याकरण विमर्श जिसके लेखक
डॉ.योगेन्द्रनाथ मिश्र, जिनके विशद, गहन व विस्तृत भाषा चिंतन का लाभ ‘शब्दसृष्टि’
तथा उसके पाठकों को पहले से मिलता रहा है।
प्रासंगिक एवं समसामयिक विषयों के संदर्भ में ‘सामयिक टिप्पणी’ वाला स्तंभ ‘शब्दसृष्टि’ के शुरू होने से लेकर आजतक डॉ. ॠषभदेव शर्मा जी ही संभालते रहे हैं। ॠषभदेव के विचार, अनुभव तथा विषय-विवेचन कौशल ‘शब्दसृष्टि’ के पृष्ठों को और ज्यादा सार्थक व सुशोभित करते हैं ।
अंत में, ‘शब्दसृष्टि’ के इस 57 वें अंक के प्रकाशन अवसर पर संपादिका डॉ.पूर्वा शर्मा तथा अपनी लेखनी से इस ई-पत्रिका को अमूल्य सहयोग प्रदान कर रहे तमाम कवियों-लेखकों को हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएँ । साथ ही ‘शब्दसृष्टि’ के सुधी पाठकों व समर्थकों के प्रति आत्मीय आभार !!!
प्रो. हसमुख परमार
स्नातकोत्तर हिन्दी विभाग
सरदार पटेल विश्वविद्यालय
वल्लभ विद्यानगर
"शब्द श्रष्टि" का यह अंक भी अन्य अंकों की भांति संग्रहणीय और अद्भुत है । पूरी लेखन टीम को बधाई । अंक का आवरण भी अत्यंत सुंदर लग रहा है । वाह वाह ...
जवाब देंहटाएंनिःसंदेह, डॉ. पूर्वा शर्मा अत्यंत मनोयोगपूर्वक समर्पित भाव से 'शब्द सृष्टि' का जिस प्रकार से नियमित प्रकाशन कर रही हैं वह अभिनंदननीय है। इस आलेख में आपने उनके प्रयासों की सम्यक विवेचना की है। आपको एवं डॉ. पूर्वा जी को बधाई।
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