स्त्री
से किसी ने नहीं पूछा
आशीष दशोत्तर
आज
क्या खाओगे?
स्त्री
ने सबसे पूछा,
स्त्री
से किसी ने नहीं पूछा
‘आज
तुमने क्या खाया’?
‘तुम्हें
सर्दी लगेगी,
मेरी चादर भी ओढ़ लो’
स्त्री
ने सबसे कहा।
स्त्री
से किसी ने नहीं कहा -
‘तुम
भी कुछ ओढ़ लो’।
घर
लौट कर आए पति के माथे का पसीना पोंछते हुए स्त्री ने हर दिन पूछा -
‘दफ़्तर
में कोई परेशानी तो नहीं’,
स्त्री
से कभी नहीं पूछा गया -
‘तुम्हारे
माथे पर पसीना
क्यों
चिपक गया है
चिंता
की लकीरों की शक्ल में ?’
सूखती
धरा को शादाब करने
हर
बार स्त्री ही बनी भूमिजा,
मगर
भूमि में समाती स्त्री से
कभी
नहीं कहा गया -
‘बेकसूर
हो कर भी
तुम
ही क्यों समाती हो धरती में?’
स्त्री
ने सदा कहा -
‘मैं
ख़ुद मर जाऊँ मगर
तुम्हारे
कुल को जीवित रखूंगी।’
आज
कितने बच्चे पैदा करना है
और
कल कितने
इसका
फ़ैसला करते वक़्त भी
स्त्री
से एक बार भी नहीं पूछा गया -
‘तुम
कितने बच्चों को
जन्म
देना चाहती हो आख़िर ?’
आशीष दशोत्तर
रतलाम
-457001
अच्छी कविता है। सचमुच! स्त्री का जीवन ऐसे ही बीतता है।
जवाब देंहटाएंबिल्कुल यथार्थ सत्य
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