अंग्रेज़ राज का सच : ऑक्सफैम के आईने में
डॉ. ऋषभदेव शर्मा
हाल ही में आय-असमानता पर ऑक्सफैम इंटरनेशनल की रिपोर्ट
"टेकर्स, नॉट
मेकर्स" ने एक चौंकाने वाली ऐतिहासिक आर्थिक लूट का खुलासा किया है। 1765 से 1900 के बीच, ब्रिटिश उपनिवेशवाद के दौरान भारत से 648.2 खरब डॉलर की संपत्ति निकाली गई। इसमें से आधी से अधिक
संपत्ति ब्रिटेन के सबसे अमीर 10 प्रतिशत लोगों को गई। कहना न होगा कि यह कोई रहस्योद्घाटन
नहीं है,
बल्कि एक सर्वविदित सच को दोहराना मात्र है। भारतेंदु
हरिश्चंद्र ने तो सन 1875 में ही अपने प्रहसन “भारत दुर्दशा” में पीड़ा,
शोक और क्रोध के साथ चेतावनी दे दी थी कि –
“अँगरेज राज सुख साज सजे सब भारी।/ पै धन बिदेश चलि जात इहै
अति ख्वारी॥/ ताहू पै महँगी काल रोग विस्तारी।/ दिन-दिन दूनो दुःख ईस देत
हा-हारी॥/ सबके ऊपर टिक्कस की आफत आई।/ हा! हा! ‘भारत दुर्दशा’ न देखी जाई॥”
यानी,
अंग्रेजों ने भारत की सारी संपदा को बेरहमी से लूटा और बदले
में महँगाई, अकाल,
महामारी और टैक्स के रूप में दुर्दशा का उपहार दिया!
ऑक्सफैम की रिपोर्ट उपनिवेशवाद के इस घिनौने सच की स्वीकृति भर ही तो है! क्या
ब्रिटेन को इस लूट के लिए माफ़ी नहीं माँगनी चाहिए? लूट का माल लौटाने की तो ख़ैर क्या ही उम्मीद की जाए!
सयाने याद दिला रहे हैं कि 18वीं सदी के मध्य में, भारत वैश्विक औद्योगिक उत्पादन का लगभग 25 प्रतिशत योगदान करता था। लेकिन 1900 तक यह हिस्सा घटकर केवल 2 प्रतिशत रह गया। इस गिरावट का कारण ब्रिटेन की योजनाबद्ध
नीतियाँ थीं, जिनके
तहत एशियाई वस्त्र उद्योगों पर कठोर संरक्षणवादी प्रतिबंध लगाए गए और भारत के
समृद्ध उद्योगों को व्यवस्थित रूप से समाप्त कर दिया गया। इस तरह अंग्रेज़ों ने
सोने की चिड़िया के सारे पंख नोंच डाले! ईस्ट इंडिया कंपनी (जो आधुनिक बहुराष्ट्रीय
कंपनियों का प्रारंभिक रूप मानी जा सकती है)
इस आर्थिक दमन में मुख्य भूमिका निभा रही थी। कंपनी ने व्यापार पर एकाधिकार
किया,
भारी मात्रा में कर लगाए और संसाधनों का दोहन किया। इस तरह, भारत की संपत्ति बड़े पैमाने पर ब्रिटेन में स्थानांतरित हो
गई। यह संपत्ति ही तो ब्रिटेन की औद्योगिक क्रांति का आधार बनी! और इधर,
भारत गरीबी के गर्त में डूबता चला गया।
इस औपनिवेशिक लूट का भारतीय समाज पर गहरा और स्थायी प्रभाव
पड़ा। स्वदेशी उद्योगों के नष्ट होने से बड़े पैमाने पर बेरोजगारी और आर्थिक संकट
पैदा हुए। पारंपरिक कारीगर और दस्तकार ब्रिटिश निर्मित वस्त्रों का मुकाबला नहीं
कर सके,
जिससे स्थानीय अर्थव्यवस्थाएँ और आजीविकाएँ बरबाद हो गईं।
इसके अलावा, संसाधनों
की लूट ने भारत के बुनियादी ढाँचे और शैक्षिक विकास को अवरुद्ध कर दिया। परिणाम?
पिछड़ेपन की विरासत!
ऑक्सफैम की रिपोर्ट ने यह उजागर किया है कि उपनिवेशवाद की
विरासत आज भी आर्थिक असमानताओं को प्रभावित कर रही है। भारत जैसे उपनिवेशों से
संपत्ति की ऐतिहासिक लूट ने वर्तमान वैश्विक आर्थिक असंतुलनों में योगदान दिया है।
यही वजह कि आज भी दक्षिणी गोलार्ध के देश बड़ी हद तक आर्थिक निर्भरता की गिरफ्त में
हैं।
इससे यह बहस भी तेज हो गई है कि ब्रिटेन को इस ऐतिहासिक
अन्याय को स्वीकार करने और उसके लिए मुआवजा देने की नैतिक और आर्थिक ज़िम्मेदारी
निभानी चाहिए। ऐतिहासिक गलतियों को स्वीकारना और सुधारना असमानताओं को ठीक करने के
लिए जरूरी है। वैसे सब जानते हैं कि ऐसा कुछ होने वाला नहीं है। तो भी,
यह आवश्यक है कि लूट के इस इतिहास की गहन समीक्षा की जाए।
ताकि दुनिया में कहीं भी इस तरह के शोषण को फिर से होने से रोका जा सके और
अंतरराष्ट्रीय आर्थिक संबंधों में न्याय और निष्पक्षता को सुनिश्चित किया जा सके।
डॉ. ऋषभदेव शर्मा
सेवा निवृत्त प्रोफ़ेसर
दक्षिण भारत हिन्दी प्रचार सभा
हैदराबाद
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