मंगलवार, 25 फ़रवरी 2025

व्याकरण विमर्श

 


विभक्ति, परसर्ग और प्रत्यय

डॉ. योगेन्द्रनाथ मिश्र

ये तीनों व्याकरणिक इकाइयाँ हैं। यानी इनका व्याकरणिक महत्त्व है। इनकी व्याकरणिक भूमिका है।

ये तीनों शब्द से छोटी इकाइयाँ हैं।

पहले प्रत्यय की बात करते हैं।

एक ध्वनि (वर्ण) या एक से अधिक ध्वनियों (वर्णों) के समूह को प्रत्यय कहते हैं, जो किसी शब्द के साथ जुड़कर नये नये शब्द तथा शब्दों के रूप बनते हैं।

प्रत्यय शब्द का प्रयोग अधिक व्यापक है।

प्रत्ययों का स्वतंत्र प्रयोग नहीं होता। वे किसी शब्द के साथ जुड़कर प्रयुक्त होते हैं।

कार्य के आधार पर प्रत्यय दो प्रकार के होते हैं -

१. शब्द साधक प्रत्यय तथा २. रूप साधक प्रत्यय।

शब्द साधक प्रत्यय एक प्रकार के शब्द से दूसरे प्रकार का शब्द बनाते हैं तथा रूप साधक प्रत्यय एक ही शब्द के विविध रूप बनाते हैं।

'सुंदर' विशेषण शब्द है। उसके साथ 'ता' प्रत्यय जोड़ने से सुंदरता भाववाचक संज्ञा बनती है।

'पढ़ना' क्रिया है। इसके साथ 'आई' प्रत्यय जोड़ने पढ़ाई भाववाचक संज्ञा बनती है।

'नौकर' जातिवाचक संज्ञा है। इसके साथ ई प्रत्यय जोड़ने से नौकरी भाववाचक संज्ञा बनती है।

इस तरह ता, आई, ई शब्द साधक प्रत्यय हैं।

इसी तरह -

लड़का शब्द के साथ ए तथा ओं प्रत्यय जोड़ने से लड़के, लड़कों लड़का शब्द के बहुवचन रूप बनते हैं।

लड़की शब्द के साथ आँ ओं प्रत्यय जोड़ने से लड़कियाँ लड़कियों लड़की शब्द के रूप बनते हैं।

ए आँ ओं रूप साधक प्रत्यय हैं।

शब्द में स्थान के आधार पर प्रत्यय तीन प्रकार के होते हैं -

१. पूर्वप्रत्यय, २. मध्यप्रत्यय, ३. अंत्यप्रत्यय।

शब्द के आरंभ में जुड़ने वाले प्रत्यय पूर्वप्रत्यय।

शब्द के अंदर या बीच में जुड़ने वाले प्रत्यय मध्यप्रत्यय।

शब्द के अंत में जुड़ने वाले प्रत्यय अंत्यप्रत्यय।

सभी उपसर्ग पूर्वप्रत्यय की कोटि में आते हैं। पूर्वप्रत्ययों को अंग्रेजी में प्रिफिक्स कहा जाता है।

संस्कृत-हिंदी में अंत्यप्रत्ययों को सिर्फ प्रत्यय कहा जाता है।

विभक्ति संस्कृत व्याकरण का शब्द है। संस्कृत एक योगात्मक भाषा है।

विभक्ति प्रत्यय रूप साधक प्रत्यय हैं। अर्थात् एक ही प्रकार के शब्द के विविध रूप बनाने वाले प्रत्यय।

संस्कृत में संज्ञा, सर्वनाम, विशेषण, क्रिया तथा अव्ययों के साथ विभक्ति प्रत्ययों को जोड़कर पद बनाया है।

पद ही वाक्य में प्रयुक्त होते हैं।

पद बनाए बिना किसी शब्द का प्रयोग वाक्य में नहीं होता।

यह संस्कृत व्याकरण की व्यवस्था है।

हिंदी में ऐसा नहीं है।

संस्कृत में पदसाधक या रूपसाधक प्रत्ययों को विभक्ति कहा जाता है। यानी विभक्तियाँ प्रत्यय ही हैं। संस्कृत में विभक्ति या विभक्ति प्रत्यय कहा जाता है।

परसर्ग हिंदी व्याकरण में प्रयुक्त होते हैं।

हिंदी व्याकरण में ने को से का (के/की) में पर ये छ परसर्ग हैं।

यह ध्यान रखना जरूरी है कि परसर्ग प्रत्यय नहीं होते। वे प्रत्यय से बड़ी इकाई होते हैं। हिंदी में परसर्गों को व्याकरणिक शब्द कहा जाता है।

प्रत्यय शब्द के साथ संपृक्त होते हैं। वे जिस शब्द के साथ प्रयुक्त होते हैं, उसका अंग बन जाते हैं। शब्द से अलग प्रत्यय की कोई अहमियत नहीं होती। शब्द से अलग प्रत्यय की कोई अर्थवत्ता नहीं होती। लेकिन परसर्गों के साथ ऐसा नहीं है। परसर्ग शब्द का अंग या घटक नहीं होते। वे स्वतंत्र रूप से अपनी व्याकरणिक भूमिका निभाते हैं।

परसर्ग वाक्य में प्रयुक्त शब्दों के बीच एकसूत्रता का निर्माण करते हैं।

 

डॉ. योगेन्द्रनाथ मिश्र

40, साईंपार्क सोसाइटी, वड़ताल रोड

बाकरोल-388315,

आणंद (गुजरात)

 

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