मंगलवार, 25 फ़रवरी 2025

कविता

 


डॉ. अनिल कुमार बाजपेयी काव्यांश

 1

मेरा भारत

जहाँ   नर्मदा   पावन  गंगा ।

जहाँ   उमंगित  रहे  तिरँगा । ।

 

जहाँ भगतसिँह   राजगुरु हैं ।

जहाँ  संस्कृति होये शुरू है । ।

 

जहाँ है  खेतों  में हरियाली ।

जहाँ भोर के गाल पे लाली । ।

 

जहाँ  झाँकते  बादल  नीले ।

जहाँ  पवन के हिले हिंडोले । ।

 

जहाँ मुदित मुस्काये भारती ।

जहाँ  नदी  की होये आरती । ।

 

जहाँ  पिता-माता  हैं  पुजते ।

जहाँ शीश श्रद्धा से   झुकते । ।

 

जहाँ  गाय  को  माने  माता ।

जहाँ किसान कहलाते दाता । ।

 

जहाँ  नीम  पीपल  की पूजा ।

क्या  ऐसा  कोई  देश है दूजा?

***

गीतिका छंद

2

चल अकेला........

 

क्या हुआ जो स्वप्न सारे, काँच बनके टूटते ।

साथ  चलते थे कभी  जो, राह में हैं छूटते । ।

तू बढ़े जा बस अकेले,रात भी तो जा रही ।

भोर आती मुस्कुराती,गीत मधुरिम गा रही । ।

 

देख  तो  खिलने  लगे हैं,फूल रेगिस्तान में ।

झूमती गाती  बहारें,  खण्डहर   वीरान  में । ।

हर्ष  की  छाई  घटाएँ ,मन ह्रदय के खेत में ।

स्वर्ण सी आशा चमकती,जिंदगी की रेत में । ।

***

गीतिका छंद

3.

नर्मदे हर

 

पुष्प क्या अर्पित करूँ माँ,

                  कर दिया मैला तुझे ।

अर्चना किस मुँह करूँ मैं,

                   लाज आती है मुझे । ।

फूल पत्ती कीट साबुन,

                     सब बहाया नीर में ।

झाँक के देखा नहीं फिर,

                माँ पड़ी किस पीर में । ।

 

रोज जाकर के नहाया,

                      वस्त्र भी धोते रहे ।

झूठ ही आँसू बहाकर,

                      व्यर्थ ही रोते रहे । ।

मात्र दर्शन लाभ से ही,

                पुण्य मिल जाता जहाँ ।

आदमी करने प्रदूषण,

                 क्यों चला आता वहाँ । ।

खूब भंडारे हुए थे,

                     अन्न फेंका राह में ।

पाप ही करते गये हम,

               पुण्य की बस चाह में । ।

शोर डीजे का मचाया,

                     भक्ति पीछे छूटती ।

क्या नहीं इन कृत्य से माँ,

                    नर्मदा जी रूठती । ।



डॉ. अनिल कुमार बाजपेयी काव्यांश

जबलपुर

 

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