डॉ. अनिल कुमार
बाजपेयी काव्यांश
मेरा भारत
जहाँ नर्मदा
पावन गंगा ।
जहाँ उमंगित
रहे तिरँगा । ।
जहाँ
भगतसिँह राजगुरु हैं ।
जहाँ संस्कृति होये शुरू है । ।
जहाँ
है खेतों
में हरियाली ।
जहाँ
भोर के गाल पे लाली । ।
जहाँ झाँकते
बादल नीले ।
जहाँ पवन के हिले हिंडोले । ।
जहाँ
मुदित मुस्काये भारती ।
जहाँ नदी की
होये आरती । ।
जहाँ पिता-माता
हैं पुजते ।
जहाँ
शीश श्रद्धा से झुकते । ।
जहाँ गाय
को माने माता ।
जहाँ
किसान कहलाते दाता । ।
जहाँ नीम
पीपल की पूजा ।
क्या ऐसा
कोई देश है दूजा?
***
गीतिका छंद
2
चल
अकेला........
क्या
हुआ जो स्वप्न सारे, काँच
बनके टूटते ।
साथ चलते थे कभी
जो,
राह में हैं छूटते । ।
तू
बढ़े जा बस अकेले,रात
भी तो जा रही ।
भोर
आती मुस्कुराती,गीत
मधुरिम गा रही । ।
देख तो
खिलने लगे हैं,फूल
रेगिस्तान में ।
झूमती
गाती बहारें,
खण्डहर वीरान में । ।
हर्ष की
छाई घटाएँ ,मन
ह्रदय के खेत में ।
स्वर्ण
सी आशा चमकती,जिंदगी
की रेत में । ।
***
गीतिका छंद
3.
नर्मदे
हर
पुष्प
क्या अर्पित करूँ माँ,
कर दिया मैला तुझे ।
अर्चना
किस मुँह करूँ मैं,
लाज आती है मुझे । ।
फूल
पत्ती कीट साबुन,
सब बहाया नीर में ।
झाँक
के देखा नहीं फिर,
माँ पड़ी किस पीर में । ।
रोज
जाकर के नहाया,
वस्त्र भी धोते रहे ।
झूठ
ही आँसू बहाकर,
व्यर्थ ही रोते रहे । ।
मात्र
दर्शन लाभ से ही,
पुण्य मिल जाता जहाँ ।
आदमी
करने प्रदूषण,
क्यों चला आता वहाँ । ।
खूब
भंडारे हुए थे,
अन्न फेंका राह में ।
पाप
ही करते गये हम,
पुण्य की बस चाह में । ।
शोर
डीजे का मचाया,
भक्ति पीछे छूटती ।
क्या
नहीं इन कृत्य से माँ,
नर्मदा जी रूठती । ।
डॉ.
अनिल कुमार बाजपेयी काव्यांश
जबलपुर
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