1
दान-पुण्य
अनिता मंडा
सात
बहन-भाइयों में वह सबसे छोटी थी। कहने को सबकी लाड़ली। उतनी ही सबकी आज्ञाकारिणी।
भतीजे-भतीजियों की चहेती बुआ। भांजे-भांजियों की दुलारी मौसी। सब चाहते थे लाड़-चाव
से उसे डोली में बिठा के विदा कर दें। बस पिता के दम पर आगे पढ़ने ने सपने सँजोये
थी।
अचानक हुए हृदयाघात से पिता ही नहीं उसके सपने भी चल बसे।
उसके चीत्कार ने आसमान के कलेजे को भी चीर दिया। काली चीलें बैचेन सी उड़ रही थी।
मानों उसके सपनों के चिथड़े बिखरे हों।
भावजों की नज़र तिरछी हुई तो भाइयों ने भी बोलना बन्द ही कर
दिया। बहनों की ईर्ष्या भी खुल के सामने आ गई "हमारे लिए तो स्कूल-कॉलेज कुछ
नहीं था। माँ इसकी कब तक रखवाली करेगी।" सबने एक स्वर में कहा "शोक के
दिन पूरे होते ही घर-वर देख लो"
गणतंत्र दिवस पर स्कूल के लिए चन्दा इकट्ठा करने लोग घर-घर
घूम रहे थे। पंच ने भाई को याद दिलाया पिता की स्मृति में स्कूल में कुछ दान-पुण्य
कर दो। बड़े भाई ने पचास हजार की हामी भरी। छोटे भाई ने कोहनी मार इशारा किया
"बेइज्जती करवाओगे क्या?
कम से कम एक लाख तो दो।"
भाई
को समाज में इज्जत कमानी थी। एक कमरा बनवाने एक लाख देने का वचन सुपुर्द हुआ। चाय
बिस्किट देने आई बहन चुन्नी से आँसू छिपाती हुई भागी। अपनी किताबें छाती से लगा
भींच ली।
***
2
कठपुतली
वह दिन भर
कठपुतली का खेल दिखाता। कठपुतलियाँ उसके हाथों की इतनी अभ्यस्त हो चुकी थीं कि हाथ
में आते ही मानों स्वतः नाच उठतीं।
घर
जाते ही कठपुतलियों को एक तरफ डाल कर फ़रमाइशें करने लगता। उसे नचाने की आदत जो लग गई थी। चाय, दाल-सब्जी, मिठाई
सब उसे अपने स्वाद के हिसाब से चाहिए होते। कुछ उन्नीस-बीस हुआ नहीं कि उसका मिजाज
बिगड़ जाता। डरी-सहमी पत्नी उसका मन भाँपकर ही बातचीत करती। न मन हुआ तो चुप्पी ओढ़
लेती। सवेरे काम पर निकलता तो सारी कठपुतलियों को सँवार कर देती।
एक
शाम को वापस लाई कठपुतलियों को साज-संभाल
करके रख ही रही थी कि उसे हँसी आ गई।
"आ गई उसके इशारों पर नाचकर" वह अक्सर ही कठपुतलियों से बातें
किया करती। उस दिन पता नहीं क्या हुआ एक कठपुतली उससे सवाल कर बैठी।
"तुम
भी तो उसके इशारों पर ही नाचती हो न। फिर क्या फर्क है हममें और तुम में?"
उसे
सवाल का उत्तर नहीं सूझा।
वह
कहना चाहती थी "तुम्हारा कोई अस्तित्व नहीं है उसके बिना" पर अपने जवाब
में उसे कई सवाल खड़े दिखे। क्या उसका कोई अस्तित्व था? क्या
वो भी एक गूँगी कठपुतली ही नहीं थी?
अनिता
मंडा
दिल्ली
Marvelous
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुघड़ कहानियां
जवाब देंहटाएंशानदार शब्द संयोजन
कठपुतली बहुत पसंद आई।
बधाइयां
कठपुतली - कितनी बड़ी बात एकदम सहजता से और कम शब्दों में कह दी! वाह 👏
जवाब देंहटाएंदान पुण्य - समाज का कटु सत्य और रिश्तों का खोखलापन उजागर हुआ
बहुत ही सहज शब्दों में गहरी बातें
जवाब देंहटाएंडॉ.सिम्मी चोयल : सहज शब्दों में गहरी बातें बखूबी कहीं गई हैं 💐
जवाब देंहटाएंआप सभी का बहुत आभार।
जवाब देंहटाएंगहरे अर्थ लिए प्रश्न चिन्ह के साथ कठपुतली कहानी 🙏 समाज के खोखले को दर्शाती कहानी दान- पुण्य 🙏
जवाब देंहटाएंसमाज के खोखलेपन को दर्शाती कहानी दान-पुण्य 🙏
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