जीवन
और मृत्यु
डॉ. राजकुमार शांडिल्य
श्वासों
का रुक जाना मृत्यु,चलना
है जीवन।
निकल
जाएँ श्वास तो मिट्टी है नश्वर तन।।
मृत्यु
अटल सत्य है धनी हों चाहे निर्धन।
कोई
नहीं खरीद सकता है जीवन--क्षण।।
बुद्धि
से प्रभूत यश-वैभव पाते हैं जन।
सुख-सम्पदा
में भी क्यों चंचल रहता मन।।
दु:खों
से घिरे हुए हैं कुछ मरना चाहते।
कुछ
स्वस्थ मुस्कुराते हुए स्वर्ग चले जाते।
कुछ
जीवित भी अपयश से ही मर जाते।
पुण्यकर्मों
के यश से कुछ अमर हो जाते।
भोग-विलास
को ही कुछ समझते जीवन।
मनीषी
परहित में त्याग देते अन्न-धन।
संग्रह
नहीं त्याग है संस्कृति का आधार।
अतिसंग्रह
कहलाता है कुत्सित व्यापार।।
कुछ
मनुष्य मांस-भक्षण से सन्तोष पाते।
धिक्कार
उन्हें,परपीड़ा
नहीं समझ पाते।।
सरल
निश्छल होता बचपन में जीवन।
फिर
बढ़ती है कुटिलता और उलझन।।
ज्ञान
और कला से मनुष्य करे धनार्जन।
धर्मकार्य,जीवन-यापन
में चाहिए धन।।
डॉ.
राजकुमार शांडिल्य
हिन्दी
प्रवक्ता
एस.
सी. ई. आर. टी. चंडीगढ़
#1017
सेक्टर 20-बी चण्डीगढ़
160020
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