कार्टून बनाना सबसे
कठिन विधा है
राजा दुबे
कार्टून बनाना सबसे कठिन विधा है और बकौल वरिष्ठ कार्टूनिस्ट और एक प्रखर व्यंग्यकार राजेन्द्र घोड़पकर के कार्टून बनाना यदि रुपंकर विधा है तो इसे गढ़ने के पहले क्या बनाना है इसका मंथन साहित्य की विषय वस्तु है । गोया सोचने और उसे काग़ज़ पर उकेरने की द्विपक्षीय मेधा हो तभी कोई कार्टूनिस्ट बन सकता है । इस सबके चलते ही कार्टून बनाना एक कठिन विधा है और इसकी मारक शक्ति तो इतनी जबर्दस्त होती है कि विदेश में तो कुछ विवादास्पद कार्टूनों को लेकर प्रतिक्रियावादी ताकतों ने कार्टून बनाने वालों की हत्या के फतवे तक ज़ारी किये गये थे । इतने जोखिम के बाद भी कुछ कार्टूनिस्ट मिशन कार्टून मेकिंग से जुड़े रहे और उन्होंने व्यापक ख्याति भी पाई , उन्हीं में से एक थे -" काक " । काक बनाम हरिश्चंद्र शुक्ल, देश के उन दुर्लभ कार्टूनिस्टों में से हैं जो मूलतः हिन्दीभाषी प्रमुख राष्ट्रीय समाचार पत्रों जनसत्ता, नवभारत टाइम्स, दैनिक जागरण, राजस्थान पत्रिका इत्यादि जुड़े रहे और अपने तीखे कटाक्ष से कार्टून जगत में अपनी एक अलग पहचान बनाने में सफल रहे ।
राजेन्द्र घोड़पकर
व्यंग्य की अपनी अनोखी शैली के चलते काक राष्ट्रीय और
अंतर्राष्ट्रीय और जटिल राजनीतिक विषयों को भी बहुत ही सरलता से आम आदमी से जोड़कर
अपने व्यंग्यचित्रों में प्रस्तुत करते थे। एक हिन्दी कहावत के अनुसार काक अर्थात्
कौवा वह पक्षी होता है जो किसी के झूठ पर अपनी कर्कश ध्वनि से आवाज़ उठाता है । वे
मानते थे कार्टून लक्ष्यभेदी विधा है और इससे हम उन तमाम विसंगतियों को सहज ही
व्यक्त कर सकते हैं जिसे लेखक कई शब्दों में व्यक्त करते हैं । दैनिक हिन्दुस्तान
की सम्पादक , मृणाल
पांडे ने उनके बारे में कहा था कि -" चार्ली ब्राउन की ही तरह काक की अपील
में भी मानव मूर्खता पर हँस सकने और शर्म महसूस करवाने की अभूतपूर्व क्षमता है
" । लोकसभा अध्यक्ष रहे बलराम जाखड़ ने एक बार हरिद्वार में वर्ष 1986 में कहा था कि - " मैं महज पाँच सौ सदस्यों के साथ
लोकसभा का स्पीकर (अध्यक्ष) हूँ जबकि काक लाखों
सदस्यों की लोक सभा के स्पीकर हैं" ।
उत्तर प्रदेश के उन्नाव जिले के पूरा गाँव में 16, मार्च 1940 को जन्मे काक ने
अपने कैरियर में लगभग दो दर्जन से ज्यादा समाचारपत्र और पत्रिकाओं के फ्रीलांस
कार्टूनिस्ट के रूप में कार्य किया । काक के कार्टूनिस्ट जीवन की शुरुआत 1967 में दैनिक जागरण
में छपे पहले कार्टून से हुई। दिनमान, शंकर्स वीकली, साप्ताहिक हिन्दुस्तान, नवभारत टाइम्स और जनसत्ता जैसे प्रमुख समाचारपत्रों के लिए
कार्टून बना चुके काक वर्तमान में प्रभासाक्षी डॉट कॉम के लिए कार्टून बना रहे थे
।
काक कार्टूनिस्ट्स क्लब ऑफ इण्डिया के प्रथम निर्वाचित
अध्यक्ष भी रह चुके हैं। ज़मीनी स्तर पर लोगों की समस्याओं के बारे में उनकी
शानदार समझ की वजह से काक को जनता के कार्टूनिस्ट (कार्टूनिस्ट ऑफ
मॉसेस ) के रूप में भी जाना जाता है। आर.के.लक्ष्मण के आम आदमी के विपरीत,
काक का आम आदमी एक मूक दर्शक नहीं है बल्कि एक मुखर टीकाकार
है जो बोलने का कोई भी मौका चूकता नहीं है ।
काक को अपने कार्टून्स के लिये अनेक सम्मान और पुरस्कार
मिले । वर्ष 2003 में
हिन्दी अकादमी दिल्ली द्वारा काका हाथरसी सम्मान , वर्ष 2009 में एर्नाकुलम
(कोच्चि) में कार्टून शिविर के दौरान केरल ललित कला अकादमी द्वारा और इसी साल केरल
कार्टून अकादमी द्वारा और इण्डियन इंस्टिट्यूट ऑफ़ कार्टूनिस्ट्स,
बैगलुरु द्वारा लाइफटाइम अचीवमेंट अवार्ड से सम्मानित किया
गया । वर्ष 2011
में कार्टून वॉच के तत्वावधान में कार्टून महोत्सव, नई दिल्ली में डॉ॰ ए पी जे अब्दुल कलाम द्वारा उन्हें लाइफ
टाइम अचीवमेंट पुरस्कार से सम्मानित किया गया । वर्ष 2017 में प्रेस काउंसिल ऑफ इण्डिया द्वारा पत्रकारिता में
उत्कृष्टता के लिये आपको राष्ट्रीय पुरस्कार भी दिया गया ।
काक की वर्ष 1988 में रुपा एण्ड कम्पनी द्वारा प्रकाशित, विनोद भारद्वाज द्वारा चयनित कार्टून्स की पुस्तक -"नज़रिया " और वर्ष 1999 में भारतीय रक्षा बलों को समर्पित कार्टून्स का संग्रह- " कारगिल कार्टून्स " उनके दो उल्लेखनीय कार्टून संग्रह है । काक और शेखर गुरेरा द्वारा भारतीय रेल के 150 गौरवशाली साल पूरे होने के अवसर पर बनाये गये कार्टून्स के एक संकलन - " लॉफ जजों यू ट्रेवल्स " भी बेहद चर्चित रहा ।
राजा दुबे
एफ - 310 राजहर्ष कालोनी ,
अकबरपुर
कोलार रोड
भोपाल 462042
काक का असली नाम राजेन्द्र घोड़पकर मुझे आज ही ज्ञात हुआ । वाह दुबे जी बहुत अच्छा लेख । आभार । प्रत्येक समाचार पत्र/पत्रिकाओं में जब तक कार्टून और व्यंग न हो तो वह अधूरा लगता है ।
जवाब देंहटाएं