काव्य-प्रभा
डॉ. पुष्पा रानी
वर्मा
पीड़ा
की अविरल धारा
करुणा-कानन
से बहकर
स्नेह
सरीखे प्रस्तर से
जब
बार-बार टकराती है
निर्झर
के निर्मल रव-सी
तब
कविता उमड़ी आती है ।
सूरज
से कुछ शर्माकर
हँसती
हुई सुबह जब आती
तुहिन
-बिंदु के आँचल से
नव
तरुओं का मुख धो जाती
मलयज
की मृदुल हिलोरों में
जब
वासंती कुछ गाती है
दूर
क्षितिज में बाल अरुण -सी
तब
कविता मुस्काती है।
प्रेम-ज्योति
की प्रथम किरण
प्रियतम
की छवि बनकर आती
मन-मन्दिर
के नीरव तम में
अनुराग-शिखा
जब बल खाती
उषा
का लावण्य लिए तब
कविता
रसवंती-सी गाती है।
फुटपाथों
पर पड़ी जिंदगी
लाचारी
की रोटी खाती
शर्म
हया को निगल समूचा
दुत्कारों को सहती
जाती
पैसे
-पैसे को हाथ पसारे
जब
दया -धर्म चिल्लाती है
नयनों
से रिसकर कविता
तब
पानी-सी बह जाती है।
लहू
से लथपथ लाश जिगर की
लिपट
तिरंगे में घर आती
वीर
चक्र पाँवों में रखकर
वेबस
विधवा रो न पाती
पाषाण बनी माँ की मूरत
जब
मुख से बोल ना पाती है
मूक
हृदय की तप्त वेदना
तब
कवि का हृदय जलाती है।
यह
भावों की खेती है
दिव्या
कृपा से उग आती
नवरस
का अवगुंठन पा
कुंद
कली- सी खिल जाती
यूँ
तो धरती के कण-कण में
काव्य-प्रभा
की छाया है
पर
वीरों की बात न हो तो
कलम
मेरी अकुलाती है ।
भारत
माँ को नमन करूँ जब
तब कविता
बन जाती है।।
डॉ.
पुष्पा रानी वर्मा
सेवा
निवृत्त उपनिदेशक
हरिद्वार
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