हिंदी
के विकास में विद्यार्थियों और अध्यापकों का योगदान
लता देवी सिरवी
‘भाषा’ ही
एक ऐसा साधन है जिसके द्वारा मनुष्य अपने आपको दूसरों के सामने सरलता के साथ
अभिव्यक्त कर सकता है। भाषा के द्वारा मनुष्य का बौद्धिक,
मानसिक और सामाजिक विकास होता है। भाषा सीखना एक ‘कला’ है,
अपने आप को दूसरों के सामने नित-नवीन
तरीके से भाषा के द्वारा अभिव्यक्त करना ‘कौशल’
है। इस प्रकार से भाषा का संबंध जीवन कौशल के साथ है। सभी भाषाओं का अपना महत्व
है। भारत जैसे बहुभाषिक देश में तो भाषा अभिव्यक्ति,
रोज़गार, मनोरंजन आदि सभी का सशक्त माध्यम है। इस संदर्भ में यह जान
लेना आवश्यक है कि भारतीय संविधान की आठवीं अनुसूची के अंतर्गत 22 भाषाओं को
आधिकारिक तौर पर राष्ट्रभाषा का दर्जा दिया गया है और हिंदी को अनुच्छेद 351 के
अंतर्गत राजभाषा का स्थान प्रदान किया गया है। जिस प्रकार से 14,
सितंबर को ‘हिंदी दिवस’ मनाया जाता है। ठीक उसी प्रकार से 10 जनवरी को ‘विश्व
हिंदी दिवस’ मनाने की परंपरा चली आ रही है। सन्,
1975 में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने नागपुर में विश्व हिंदी दिवस को
मनाया था। इसमें 30 देशों के 122 प्रतिनिधि शामिल हुए थे। इसके बाद सन् 2006 में
प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह ने ‘विश्व हिंदी दिवस’ की
औपचारिक घोषणा की थी और तब से यह परंपरा लगातार प्रचलन में है।
केवल किसी भाषा का दिवस मना लेने से वह भाषा विकसित नहीं हो सकती है। भाषा को विकसित करने के लिए भाषा के साथ काम करना अर्थात, नवीन शब्दों को खोजना, शब्दकोश निर्माण में रुचि लेना आदि बहुत आवश्यक है। यह काम सबसे अधिक विद्यार्थियों और अध्यापकों के द्वारा किया जाना संभव है। हिंदी भाषा को विकसित करने के लिए भी कुछ मानकों पर विद्यार्थियों और शिक्षकों को काम करना होगा। नीचे उन मानकों को प्रस्तुत किया जा रहा है –
1.
व्याकरणिक
हिंदी में वार्तालाप करना- हरेक
भाषा को दो भागों में बाँटा जा सकता है- (अ) बोलचाल की भाषा (ब) व्याकरणिक भाषा।
हिंदी भाषा के ऊपर भी यह बात लागू होती है। शिक्षकों का यह दायित्व है कि वे
विद्यर्थियों को शुद्ध व्याकरणिक खड़ी बोली हिंदी में पठन-पाठन, लेखन और
वार्तालाप करने के लिए प्रेरित करें। विद्यार्थियों को भी सजग होकर इस शैली को
अभ्यास में लाने के लिए प्रयास करना होगा।
2.
हिंदी
साहित्य को विकसित करना- साहित्य
केवल मनोरंजन की वस्तु नहीं है। साहित्य के द्वारा किसी भी देश की संस्कृति-सभ्यता
की जानकारी भी मिलती है। बात हिंदी भाषा की चले तो संपूर्ण भारत को जोड़नेवाली
संपर्क भाषा भी ‘हिंदी’ है ऐसे में विविध विषयों को लेकर हिंदी भाषा में क्या लिखा
गया है? क्या लिखा जा रहा है? तथा और क्या
लिखा जाना चाहिए? इन प्रश्नों पर समय-समय पर अनुसंधान
होना चाहिए। यहाँ भी शिक्षकों और विद्यार्थियों की आवश्यकता बढ़ जाती है क्योंकि
शिक्षा के केंद्र स्कूल-कॉलेजों में साहित्य चर्चा जितनी प्रबल रूप में हो सकती है
और कहीं नहीं हो सकती।
3.
हिंदी
शिक्षण को नवीन तकनीकों के साथ जोड़ना- यह एक कटु सत्य है कि हिंदी पठन-पाठन को लेकर हमारी मानसिकता आज भी बहुत छोटी
है। कई बार लोगों के मन में यह प्रश्न आता है कि हिंदी पढ़कर क्या होगा? ऐसे में शिक्षको
का दायित्व और अधिक बढ़ जाता है । शिक्षकों को चाहिए कि वे अपने विद्यर्थियों को
केवल पुस्तकीय ज्ञान तक ही सीमित न रखें। समसामयिक हिंदी पत्रिकाओं के साथ भी अपने
विद्यार्थियों को जोड़ दें, गूगल क्लास रूम, विभिन्न हिंदी अधिवेशनों की
जानकारी भी अपने विद्यार्थियों को प्रदान करें। ताकि, विद्यार्थियों
के मन में किसी प्रकार की कोई कुंठा न रहें।
विश्व
के सभी देशों का अपना राष्ट्रध्वज, अपनी राजभाषा,
अपना राष्ट्रगान अवश्य ही होता है। इन सबके द्वारा ही देश की अपनी पहचान बनती है।
भारत की ‘राजभाषा’ हिंदी है। उसे जैसा सम्मान मिलना चाहिए वैसा अभी
तक नहीं मिल सका है। प्रयास जारी है, इस प्रयास में विद्यार्थियों और शिक्षकों का महत्वपूर्ण योगदान हिंदी भाषा को मिल रहा है।
आशा यही है कि विद्यार्थियों और शिक्षकों के प्रयास से ‘राजभाषा’
हिंदी को उसका समुचित सम्मान यथाशीघ्र मिल ही जाएगा।
लता देवी सिरवी
छात्रा - वर्ग- बी. कॉम. 1A2
क्रमांक- 107224402093
भवंस विवेकानंद कॉलेज,
सैनिकपुरी
हैदराबाद केंद्र- 500094
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