मेरी पहचान
राकेश मेहता ‘देही’
तुम कितना मुझको जानते हो,
क्या सच में मुझे पहचानते हो ।
भूलकर गीता ज्ञान भला,
तुम किसी की कुछ भी क्यों मानते हो ।।
मस्तक मणि मैं ज्योति बिंदु प्रकाश हूँ,
शुद्ध श्रेष्ठ विचारों का मैं अदृश्य आकाश हूँ ।
मन सुमन और जीवन विमल कर,
अंतर्मन के असुरों का करता मैं विनाश हूँ ।।
सर्वशक्तिवान से मैं
लेता अनुपम ज्ञान हूँ,
गुण शक्ति रूपी रतनों की बड़ी अनोखी खान हूँ ।
खुद खुदा ने दिए हों वरदान जिसे ये,
इस दुनिया का मैं
सबसे बड़ा धनवान हूँ ।।
मैं राजा हूँ और एक संत हूँ,
अविनाशी आदि से अंत हूँ।
अजर अमर सत्य स्वरूप है मेरा,
शिव पिता समान मैं अनंत हूँ ।।
भाई भाई का प्रेम रूहानी
मैं इश्क ओ मोहब्बत हूँ,
फैलाने को जग में इसे करता खूब मशक्कत हूँ।
दीन धर्म भी सबके सबको सिखलाते जो आए सदा,
पूजा अब यही है मेरी
मैं करता यही इबादत हूँ ।।
मैं शिक्षा हूँ मैं दीक्षा हूँ,
श्रीमत से करता हर पार परीक्षा हूँ ।
व्यर्थ विस्तार की बात नहीं,
सार रूप में जीवन की
मैं बस इक समीक्षा हूँ।।
मैं फूल हूँ तो कभी शूल भी हूँ,
जल अग्नि पवन गगन और धूल भी हूँ ।
रहकर इस संसार में सदा, रखता याद अपना मूल भी हूँ ।।
बैर मिटा दो दिल से सारे देता संदेश सिर्फ ये ही हूँ,
भूल भाल के भेद सभी बनना चाहूँ सबका स्नेही हूँ ।
प्यार से कहते सब भाई राकेश मुझे पर,
देह से होकर पूरा न्यारा कहलाता मैं देही हूँ ।।
राकेश मेहता ‘देही’
5, न्यू दयाल बाग
अंबाला छावनी
133005
बहुत बहुत धन्यवाद और आभार।
जवाब देंहटाएंहिंदी दिवस का उपहार
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