विश्व
में हिन्दी के बढ़ते कदम
डॉ.
शिवजी श्रीवास्तव
प्रत्येक
वर्ष 10 जनवरी को विश्व हिन्दी दिवस का आयोजन वैश्विक स्तर पर हिन्दी को एक अन्तरराष्ट्रीय
भाषा के रूप में प्रतिष्ठित करने के उद्देश्य से किया जाता है। इस दिवस की औपचारिक
घोषणा तो 10 जनवरी, 2006 को तत्कालीन प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह ने की थी
किन्तु अनौपचारिक रूप से इस दिवस की आधारशिला 10 जनवरी, 1975 को नागपुर में आयोजित
होने वाले प्रथम विश्व हिन्दी सम्मेलन के अवसर पर ही रख दी गई थी। तत्कालीन
प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी की प्रेरणा से ‘राष्ट्रभाषा प्रचार समिति
वर्धा’ के सहयोग से आयोजित इस प्रथम विश्व हिन्दी सम्मेलन ने विश्व के
हिन्दी-सेवियों का ध्यान अपनी ओर आकृष्ट किया था । इस सम्मेलन के प्रमुख
उद्देश्यों में हिन्दी को संयुक्त राष्ट्र संघ में आधिकारिक भाषा के रूप में
सम्मिलित कराना तथा दुनिया भर में हिन्दी भाषा को बढ़ावा देना था। आँकड़े बताते हैं
कि धीरे-धीरे ही सही हिन्दी विश्व में अपनी स्थिति मजबूत करती जा रही है। दुनिया की
भाषाओं में हिन्दी तीसरे नंबर की बड़ी भाषा
है, सम्पूर्ण विश्व में हिन्दी बोलने वालों की संख्या लगभग सत्तर करोड़ है, दुनिया
के 132 देशों में भारतीय मूल के करीब दो करोड़ लोग हिन्दी माध्यम से अपना काम करते
हैं। भारत के अतिरिक्त फ़िजी में भी हिन्दी को राजभाषा का दर्जा प्राप्त है। मॉरीशस
,त्रिनिदाद ,गुयाना और सूरीनाम में हिन्दी को क्षेत्रीय भाषा के रूप में मान्यता
है।
भारत सरकार द्वारा संयुक्त राष्ट्र संघ में
हिन्दी भाषा को आधिकारिक रूप में सम्मिलित कराने हेतु लगातार प्रयास किए जा रहे
हैं।हमारे देश के अनेक नेताओं ने विभिन्न अवसरों पर संयुक्त राष्ट्र सभा में हिन्दी
में अपने संबोधनों द्वारा सम्पूर्ण विश्व को हिन्दी की शक्ति से अवगत कराया। सर्वप्रथम
4अक्तूबर, 1977 में तत्कालीन ‘जनता पार्टी’ सरकार के विदेश मंत्री श्री अटल बिहारी
बाजपेयी जी ने भारत सरकार के प्रतिनिधि के रूप में अपना वक्तव्य हिन्दी में दिया
था जिसका सारे देश में बहुत स्वागत हुआ। जब अटल बिहारी वाजपेयी द्वारा संयुक्त
राष्ट्र महासभा में हिन्दी में भाषण देना एक ऐतिहासिक घटना थी क्योंकि उस समय तक किसी
भी नेता ने संयुक्त राष्ट्र के मंच से हिंदी में वक्तव्य नहीं दिया था। यह एक
साहसिक कदम था, क्योंकि अटल जी जानते थे कि इस अवसर का
उपयोग हिंदी भाषा की वैश्विक पहचान को मजबूत करने के लिए किया जा सकता है। उसके
पश्चात भारत के प्रधानमंत्री के रूप में
अटल बाजपेयी जी ने दूसरी बार सन 2002 में इस अंतरराष्ट्रीय मंच से हिन्दी में ही अपने
विचार रखे । अटल जी की इस परम्परा को प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी ने आगे
बढ़ाया। उन्होंने भी संयुक्त राष्ट्र महासभा में अपने वक्तव्य सदैव हिन्दी में ही
दिए। सन 2019 में तत्कालीन विदेश मंत्री श्रीमती सुषमा स्वराज ने भी संयुक्त
राष्ट्र महासभा में अपना भाषण हिन्दी में ही दिया।
भारत के प्रतिनिधि नेताओं द्वारा हिन्दी में
दिए गए अनेक महत्त्वपूर्ण भाषणों द्वारा विश्व-मंच पर निरंतर हिन्दी की महत्ता को
स्थापित तो किया ही गया साथ ही भारत सरकार द्वारा संयुक्त राष्ट्र संघ में हिन्दी
को मान्यता दिलाने हेतु अन्य प्रयास भी किए जाते रहे। ।सन 2018 में संयुक्त
राष्ट्र में हिन्दी को बढ़ावा देने के लिए संयुक्त राष्ट्र और भारत सरकार के बीच दो
साल की अवधि के लिए एक स्वैच्छिक वित्तीय योगदान संबंधी अनुबंध पर हस्ताक्षर किए गए थे बाद में वर्ष 2019 में इस अनुबंध की अवधि को 5 वर्ष के
लिए आगे बढ़ाया गया वर्तमान में यह मार्च 2025 तक के लिए लागू है। इस अनुबंध के अनुसार संयुक्त राष्ट्र ने फ़ेसबुक,ट्विटर और इंस्टाग्राम
के साथ-साथ संयुक्त राष्ट्र समाचार की एक हिन्दी वेबसाइट पर हिन्दी सोशल मीडिया
अकाउंट शुरू किया है। इसके अलावा संयुक्त राष्ट्र अपने कार्यक्रमों को यू एन
रेडियो वेबसाइट पर हिन्दी में प्रसारित करता है,साउंड क्लाउड पर एक साप्ताहिक
हिन्दी समाचार बुलेटिन जारी करता है,यू. एन. ब्लॉग को हिन्दी में प्रकाशित करता है इसके साथ
ही एंड्रॉएड एवं आई.ओ.एस. मोबाइल फोन ऑपरेटिंग सिस्टम दोनों के लिए यू. एन. न्यूज
रीडर मोबाइल एप्लीकेशन को हिन्दी में भी उपलब्ध कराया गया है। तकनीक के इस युग में
तकनीकी सुविधाओं में हिन्दी का प्रयोग हिन्दी विकास की दिशा में बढ़ते हुए प्रभावी
कदम के परिचायक हैं।
भारत
सरकार विदेशों में हिन्दी भाषा को बढ़ावा देने के लिए भी अनेक स्तरों पर निरंतर
प्रयासरत है।भारत सरकार के निरंतर प्रयासों का ही परिणाम रहा कि 10 जून 2022 को
संयुक्त राष्ट्र महासभा में पारित
बहुभाषावाद संबंधी एक प्रस्ताव में पहली बार हिन्दी भाषा का उल्लेख हुआ ।
प्रस्ताव में बहुभाषावाद को बढ़ावा देने के लिए आधिकारिक भाषाओं के अतिरिक्त हिन्दी,बांग्ला उर्दू को भी संयुक्त
राष्ट्र की सहकारी कामकाज की भाषा के रूप में स्वीकार किया गया। इस प्रस्ताव में
कहा गया है कि संयुक्त राष्ट्र के सभी जरूरी कामकाज और उसकी सूचनाओं को इसकी
आधिकारिक भाषाओं के अलावा दूसरी भाषाओं जैसे हिन्दी,बांग्ला और उर्दू में भी जारी
किया जाए। यहाँ यह उल्लेख करना अनिवार्य है कि बहुभाषावाद को संयुक्त राष्ट्रसंघ
के बुनियादी मूल्यों में गिना जाता है। यह संयुक्त राष्ट्र के कामकाज के तरीके में
एक बड़े बदलाव का संकेत है।
इसी
कड़ी में 10 जनवरी 2023 को पेरिस में संयुक्त राष्ट्र शैक्षिक,वैज्ञानिक और
सांस्कृतिक संगठन [ यूनेस्को ] सहित दुनिया भर में ‘विश्व हिन्दी दिवस’ मनाया गया
ताकि हिन्दी को एक अंतरराष्ट्रीय भाषा के रूप में प्रस्तुत किया जा सके और दुनिया
भर में इसके उपयोग को बढ़ावा दिया जा सके। यहाँ उल्लेखनीय है कि सन 2022 में
यूनेस्को ने अपनी वेबसाइट पर ‘भारत के यूनेस्को विश्व धरोहर स्थलों’ का विवरण
हिन्दी में प्रकाशित करने की सहमति व्यक्त की। हिन्दी भी यूनेस्को की कामकाजी
भाषाओं में से एक है।
शासकीय
स्तर पर हिन्दी के विकास और विश्व मंच पर उसके प्रयास सराहनीय हैं पर इन प्रयासों
की पृष्ठभूमि में हिन्दी की अपनी शक्ति को अनदेखा नहीं किया जा सकता। विश्व में
निरंतर हिन्दी भाषा-भाषियों की बढ़ती हुई संख्या ने विश्व बाजार में भी हिंदी को
स्वीकार करने हेतु बाध्य किया है। अनेक बहुराष्ट्रीय कंपनियाँ भी हिन्दी के
महत्त्व को स्वीकार करते हुए अपने सामानों को हिन्दी में बेच रही हैं। तकनीक के
क्षेत्र में भी हिन्दी अपना वर्चस्व बढ़ा रही है, कंप्यूटर प्रयोग हेतु अनेक विकसित
हिन्दी फॉन्ट अब उपलब्ध हैं।प्रत्येक क्षेत्र में हिन्दी का बढ़ता प्रभाव आश्वस्त करता है कि निकट
भविष्य में विश्व में हिन्दी एक सशक्त एव
प्रभावी भाषा के रूप में अपना स्थान बनाने में समर्थ होगी।
डॉ.
शिवजी श्रीवास्तव
सेवानिवृत्त
एसोशिएट प्रोफेसर
श्री
चित्रगुप्त पी.जी.कॉलेज
मैनपुरी(उ.प्र.)-205001
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