शुक्रवार, 10 जनवरी 2025

स्मृति शेष

 

अनंत गौरवगाथा की विरासत

सौंप गये श्याम बेनेगल

राजा दुबे

फिल्मकार श्याम बेनेगल के बारे में फिल्म इतिहास के अथ्येता यासिर उस्मान की यह टिप्पणी उनके समग्र अवदान को अभिव्यक्त करने की दिशा में एक शाश्वत वक्तव्य मानी जायेगी कि - “श्याम बेनेगल, वो फिल्मकार थे जिन्होंने सार्थक सिनेमा की शाम नहीं ढलने दी।” श्याम बेनेगल के बारे में यदि हम यह कहें कि वे सार्थक सिनेमा के पर्याय थे तो यह कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी । सत्तर के दशक में जब गीत-संगीत का मुग्धकारी दौर मद्धम पड़ रहा था और सुपर स्टार राजेश खन्ना के रोमांस का जादू भी फीका पड़ रहा था तब अमिताभ बच्चन का यंग एंग्रीमेन के रूप में प्राकट्य हुआ ।

कहने को चुनौती देने वाला एंग्री यंग मैन आ चुका था मगर उसका ग़ुस्सा भी यथार्थ से ज़रा दूर, फ़िल्मी ही था। सही मायने में व्यवस्था के खिलाफ गुस्सा क्या होता है , यह श्याम बेनेगल ने बताया।

यह बात आज विस्मयकारी लग सकती है कि विज्ञापन की दुनिया से आये एक फ़िल्मकार ने सिनेमा को केवल विशुद्ध मनोरंजन का साधन मानने से साफ़ इनकार कर दिया। यह फ़िल्मकार थे श्याम बेनेगल, जिन्होंने फ़िल्मों को समाज को आईना दिखाने और बदलाव लाने के एक माध्यम के रूप में देखा । यही नज़र थी जिसके साथ श्याम बेनेगल ने वर्ष 1974 में अपनी पहली फ़िल्म ‘अंकुर’ के साथ मुख्यधारा की मसाला फ़िल्मों के समानांतर एक अमिट लक़ीर खींच दी ।

बेनेगल ‘अंकुर’ की पटकथा को तेरह वर्षों से बनाने की कोशिश कर रहे थे लेकिन कोई उसमें दिलचस्पी नहीं दिखाता था । इसी अंकुर ने हिंदी फिल्मों में एक नई उम्मीद, एक क्रांतिकारी न्यू वेव का आगाज़ किया, जिसे भारतीय फ़िल्म इतिहास में समानांतर सिनेमा कहा गया, इसके अग्रदूत श्याम बेनेगल ही थे। ‘अंकुर’ में श्याम बेनेगल ने सही मायनों में व्यवस्था के खिलाफ़ गुस्से को एक व्यावहारिक अन्दाज में प्रस्तुत किया।

वर्ष 1975 में श्याम बेनेगल ने एक बाल फिल्म ‘चरणदास चोर’ बनाई थी लेकिन उनका मूल लक्ष्य अगले वर्ष अर्थात् वर्ष 1976 में पूरा हुआ, जब उन्होंने सत्यजीत राय की तरह अपनी सिनेत्रयी का निर्माण किया । ‘अंकुर’ और ‘निशांत’ के बाद ‘मंथन’ इसकी तीसरी कड़ी थी। उनकी इस फिल्म का प्रसारण चीन के राष्ट्रीय टेलीविजन नेटवर्क पर भी किया गया।

तेलंगाना (आंध्रप्रदेश) के कृषक विद्रोह की पृष्ठभूमि में निर्मित ‘अंकुर’ फिल्म ने सिनेमा को राजनीतिक, सामाजिक धरातल पर अभिनव अर्थ प्रदान किए। फिल्म के अंतिम दृश्य में एक बच्चा सूर्या की हवेली पर पत्थर फेंकता है। क्रांति का यह नवांकुर शोषण की उपज है। ‘अंकुर’ ने बर्लिन, स्टार्टफोर्ड, लंदन फिल्मोत्सवों में शामिल होकर 43 राष्ट्रीय एवं अंतरराष्ट्रीय सम्मान जीते।

उनकी फिल्म ‘निशांत’ वर्ष 1945 में घटित एक सच्ची घटना पर आधारित थी। यह उन दिनों की कहानी है, जब जमींदार प्रथा अपने चरम पर थी। गाँव का एक जमींदार परिवार अपनी समृद्धि के बूते पर ग्रामीणों का दमन करता है। ‘निशांत’ कान और लंदन फिल्म समारोह में प्रदर्शित होने के बाद मेलबोर्न फेस्टिवल में गोल्डन फ्लेम पुरस्कार से सम्मानित की गई। विश्व फिल्म पत्रिका ने इसे सर्वश्रेष्ठ फिल्म, पटकथा और श्रेष्ठ सहायक अभिनेत्री का पुरस्कार दिया। फिल्म में गिरीश कर्नाड, अमरीश पुरी, अनंत नाग और शबाना आजमी की प्रमुख भूमिकाएँ थीं।

श्याम बेनेगल की कोई भी फिल्म , केवल फिल्म नहीं होती थी, हर फिल्म सोद्देश्य होती थी । गुजरात के विश्वप्रसिद्ध दुग्ध सहकारिता आन्दोलन पर केन्द्रित उनकी फिल्म ‘मंथन’ विकासशील देशों के जमीनी परिवर्तन का महत्वपूर्ण दस्तावेज कही गई । इसलिए इसे तृतीय सिनेमा की प्रतिनिधि कृति भी निरूपित किया गया। फिल्म को सर्वश्रेष्ठ हिन्दी फिल्म के राष्ट्रीय अवॉर्ड के अलावा अंतरराष्ट्रीय फिल्म समारोह से आमंत्रण भी प्राप्त हुआ।

नारीवादी आन्दोलन की प्रतिनिधि कृति के रूप में श्याम बेनेगल ने निर्देशकीय कैरियर के आरम्भ में ‘भूमिका’ बनाई थी। मराठी रंगमंच की ख्यात अभिनेत्री हंसा वाडकर के जीवन पर आधारित थी। स्मिता पाटिल, अमरीश पुरी, नसीर, अनंत नाग, कुलभूषण खरबंदा अभिनीत इस फिल्म को सर्वश्रेष्ठ फिल्म और स्मिता पाटिल को सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री का राष्ट्रीय अवार्ड मिला था। इस फिल्म को अल्जीरिया में आयोजित फेस्टिवल ऑफ इमेज ऑफ वूमन हेतु आमंत्रित किया गया था। इस विवादास्पद फिल्म को भारत में नारीवादी आंदोलन की प्रतिनिधि कृति के बतौर देखा गया।

विश्वचर्चित फीचर फिल्मों के अलावा श्याम बेनेगल  ने क्लोज टू नेचर, फ्लोटिंग जाएंट, क्वायट रिवॉल्यूशन जैसे वृत्तचित्रों का निर्माण भी किया। राय और नेहरू पर उनके वृत्तचित्र अत्यधिक सराहे गए। छोटे पर्दे पर श्याम द्वारा निर्मित यात्रा, कथासागर और  भारत एक खोज़ जैसे धारावाहिक प्रसारित हो चुके हैं। भारत एक खोज के बारे में  तो यह कहा जाता है कि यदि आप भारत के इतिहास और‌ उसकी संस्कृति को जानना चाहते हैं तो इस धारावाहिक को आद्योपांत देखना चाहिये।

 


राजा दुबे

एफ - 310 राजहर्ष कालोनी ,

अकबरपुर

कोलार रोड

भोपाल 462042

1 टिप्पणी:

  1. रवि कुमार शर्मा, इंदौर10 जनवरी 2025 को 1:36 pm बजे

    वाह दुबे जी बहुत अच्छा लेख. श्याम बेनेगल जी ने बॉलीवुड को अविस्मरणीय फिल्में दी है,उनका योगदान हम भूल नहीं सकते । जय हो श्याम बेनेगल जी की ।

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