शुक्रवार, 10 जनवरी 2025

कविता

 


बेजुबान

           डॉ. शिप्रा मिश्रा

 

ये धरती तो सबकी थी

क्यूँ भूल ग‌ए तुम मानव!!

अपनी ही स्वार्थ-सिद्धि में

क्यूँ हो ग‌ए तुम दानव!!

 

क्या तुम्हें याद दिलाना होगा

अपने हिस्से का दायित्व?

बेजुबान वनवासी पर

क्या तुम्हारा ही स्वामित्व?

 

पशुओं को क्यूँ समझ लिए

तुम अपने घर की सज्जा!

आधुनिकता के नाम पर

क्या तनिक न आई लज्जा?

 

कुछ तो सीखो अपने पूर्वजों से

पंछियों का घरौंदा उजाड़ते थे?

झूठी शक्ति का कर प्रदर्शन

निरपराधों को ऐसे मारते थे?

*** 



डॉ. शिप्रा मिश्रा

बेतिया, प.चंपारण (बिहार)


कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

फरवरी 2025, अंक 56

  शब्द-सृष्टि फरवरी 202 5 , अंक 5 6 परामर्शक की कलम से : विशेष स्मरण.... संत रविदास – प्रो.हसमुख परमार संपादकीय – महाकुंभ – डॉ. पूर्वा शर्...