स्वर्ण नगर
(मूल तमिल लेखक- पुदुमैपित्तन)
अनुवादक - डॉ. सफ्राम्मा
क्या आपने स्वर्ण नगर के बारे में सुना है?
हमारे परियों के स्वप्न जैसे वहाँ कुछ भी नहीं है। पूर्व
जन्म के कर्म का फल के अनुसार ही सबको न्याय मानकर मन ही मन सन्तुष्ट होना ही है।
कुछ महाराजाओं को लौकिक सुख प्रदान करनेवाले मानव मधुमक्खियों के लिए वास्तव में
यह स्वर्ण नगर ही है।
रेलवे पटरियों के बगल में शराब डीपो की ओर जानेवाली गली ही
वहाँ का मुख्य रास्ता है। जब सामने कोई गाड़ी न हो, तब हाथ पकड़कर चार लोगों की पंक्ति असानी से जा सकती है। इस
सड़क में खरगोश के मेहराब की तरह बहुत सारे आन्तरिक मोड़ हैं।
इस दिव्य क्षेत्र का दर्शन करना है,
तो बारिश की रिमझिम के समय आप वहाँ जाएँगे,
तो अद्भुत दृश्य देखने को मिलेगा। रास्ते में कीचड़ फैला
रहता है। सड़क के किनारे नगरपालिका की गंगा तो नहीं, यमुना बहती है। यमुना नदी ही काली होती न! तब तो वही। फिर
लोहे की बाड़ है। उससे थोड़ा ऊपर रेलवे ट्रैक है।
दूसरी तरफ, मानव-पिंजर की कतारें। हाँ, रहने के लिए। पानी का नल तो है। पानी?
बिजली की लैट या सामान्य तेल का दीपक भी गहरे अँधेरे में,
खास तौर से अमावास्य के दौरान जलाना पर्याप्त है।
स्वर्ण नगर में रहने वाले बच्चों को मछली पकड़ने का खेल
बहुत पसन्द है। पर उस नगरपालिका के जल में मछली कहाँ?
किसी धनी घरों से आए सड़े हुए फल और खराब हुए वड़े जैसे कुछ
खाने के पदार्थ लुढ़क कर आएँगे। यही उन बच्चों का मछली पकड़ने का राज है।
बच्चों को रेल की पटरियों के किनारे खेलने में बहुत आनंद
आता है। बाड़ वहाँ होती है। लेकिन क्या बच्चे यह नियम जानते हैं - वहाँ मत जाना।
पर अगर मरखप गए तो माँ-बाप का बोझ तो थोड़ा कम होगा ही। लक्सों या मेल्लिन्स बूट
के जो बच्चे हैं, वे उस बाड़ के तार के बीच से न जा सकेंगे। पर उन बच्चों की कतार बाड़ के तार
के बीच में से जाकर उस दुआ और सुगलती लोगों की पटरियों में खड़े बहुत खुश होकर
चिल्लाते हैं - गुड मार्निंग सर। यहीं से उन्हें बुनियादी अंग्रेजी शिक्षा मिलती
है।
शाम पाँच बजे के बाद ही स्वर्ण नगर में रौनक नज़र आती है।
तब से ही वहाँ की महिलाएँ अपना काम शुरू करेंगी। शराब की गाड़ियाँ,
पानी भरने आती औरतें। वहाँ पानी भरना तो एक युद्ध है।
जवानी में ही पके हुए भूरे रंग बालों का सिर,
धुँधली आँखें, अगर वह उजाला होने तक स्पिंडिल (बिजली के बल्व की किरण)
देखेंगी तो उनकी आँखें कैसी होंगी? आँखें लोहे से बनी हुई हैं क्या?
श्रम के स्वास्थ्य से बनी आन्तरिक सुन्दरता। स्वास्थ्य?
वह कहाँ से? वैक्टेरियाँ, विष कीटाणु, कालरा आदि वहाँ से ही उत्पन्न होते हैं। किसी तरह जीने की
चाहत है,
तो सब कुछ हो जाएगा। पुराने ज़माने में मानव बाघों,
शेरों के साथ गुफाओं में जीता था। उन्होंने उसे मार डाला।
मानव ने उन्हें मार डाला। इसलिए दुर्बल होकर, अपना वंश विकसित किये बिना मर गया क्या?
मानव जीवन ही एक बड़ा शिकार है,
तो क्या है?
गले में एक काली डोरी श्रम-जीवन का प्रतीक है। इसे लेकर
चिन्ता की कोई खास बात नहीं है। वह एक अलग दुनिया है साहब। वहाँ के धर्म भी अलग
हैं।
अम्मालू एक मील में मजदूरी करनेवाली बीस या बाईस से कम
उम्रवाली युवती है। उसके पति के पास खुद की झटका गाड़ी है। अम्मालू,
उसका पति मुरुकेसन, उसकी माँ, भाई, उसका घोड़ा - कुल मिलाकर पाँच सदस्य हैं उसके परिवार में। इन दोनों की कमाई
में उनका खाना (घोड़ा सहित), घर का किराया, पुलिस का मामूल (रिश्वत), मुरुकेसन के भाई के गाँजे का खर्चा - सब इसके भीतर ही है।
परिवार में सभी पियक्कड़ हैं। सब शराब पीते हैं। डल सीजन में भूख को भुलने का
दूसरा तरीका। भूख साब जी! भूख! भूख लगने पर सब कुछ भूल जाएँगे। जो लेखक आराम से
लिखा है। आप एक दिन वहाँ होंगे, तभी उस शब्द का अर्थ अपने पेट के ज़रिये जान पाएँगे।
एकदम खुशी के मारे उस दिन मुरुकेसन और उसका घोडा दारू पीकर
तेजी से दौड़ लगाता है। गाड़ी ठोकर खाकर उलट गयी। घोड़ा बहुत अधिक घायल हो गया।
मुरुकेसन को भी गहरी अन्दरुनी चोट लगी। जब मुरुकेसन को घर लाया गया,
तो वह बेहोश था। शराब पीने के कारण उसे दर्द महसूस नहीं
हुआ। अम्मालू ने सूजन पर कुछ जड़ी बूटियाँ पीसकर लगाई। फिर होश में आकर मुरुकेसन
ने धीमे स्वर में दूध दलिया माँगा था। अम्मालू के हाथ में तो एक कौड़ी न थी। घर
में भी कुछ नहीं। दूध के लिए क्या करेगी? मजदूरी देने के लिए तो दो दिन और है। सोचते हुए अम्मालू
पानी लेने के लिए जाती है।
अँधेरी रात। पंचांग के अनुसार आज तो चन्द्रमा निकलना चाहिए।
लेकिन वह तो बादलों में गायब हो गई थी।
नल के पास हमेशा की तरह शोर था। किसी तरह पानी भर लिया। घर
वापस आ रही थी। दूध दलिया ही उसके मन को बेचैन कर रही थी।
बहुत दिनों से अम्मालू पर नज़र रखने वाला आदमी गली के कोने
में खड़ा था। उसे देखकर उचक रहा था। दोनों अँधेरे में गायब हो गये। अम्मालू ने तीन
चौथाई रुपये कमाये हैं। हाँ, पति के लिए दूध दलिया बनाने के लिए।
सतीत्व! सतीत्व के नाम से गाते है न कुछ लोग,
यही है साब, स्वर्ण नगर।
डॉ. सफ्राम्मा
द अमेरिक्कन कॉलेज,
मदुरै, तमिलनाडु
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