1
चीर हरण
डॉ. अनिल कुमार बाजपेयी
रख लो मोहन लाज
तुम्हारा वरण किया है ।
दुःशासन ने आज
लाज का हरण किया है ॥
देख रही है
सभा
मौन हैं सारे
पांडव ।
करता है भयमुक्त
दुष्ट दुःशासन
तांडव ॥
हँसता वह शैतान
जोर से है चिल्लाता
।
ठोके अपनी जाँघ
दंभ पापी दिखलाता ॥
देखें सारे वीर
सभा में
योद्धा ऐसे ।
बैठा गीदड़ डरा
शेर के सम्मुख
जैसे ॥
जोड़ जोड़कर हाथ
द्रौपदी चिल्लाती
थी ।
धर्मराज थे शांत
नहीं करुणा आती थी ॥
प्रकट हुए
श्रीकृष्ण
मौन थे सभी जुआड़ी ।
दुःशासन थक गया
खींचकर लंबी साड़ी ॥
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गीतिका छंद
2
सिया के राम
पाँव में माहुर
लगाके माँ सिया सजने लगीं।
जब चली शृंगार कर के चूड़ियाँ बजने लगीं।।
देखते ही रह गए श्रीराम
अनुपम रूप को।
चाँदनी में हो
खिली जैसे सुनहरी धूप को।।
नीलवर्णी राम भी
ऐसे लगें जैसे
गगन।
साथ में थे
गौरवर्णी राम के प्यारे लखन।।
देखके सखियाँ उन्हें बस होश अपने खो चुकीं।
माँ सिया तो वाटिका
में राम की थीं हो चुकीं।।
माँ सिया जयमाल
लेकर जब बढ़ी थीं हाथ में।
रूपसी सखियाँ चलीं सब माँ सिया के साथ में।।
जब हुआ जयमाल
सारे देवगण हर्षित
हुए।
राम सा दामाद पाकर खुद जनक गर्वित हुए।।
डॉ. अनिल कुमार
बाजपेयी
जबलपुर
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