हान कांग और उनका लेखन
प्रो. गोपाल शर्मा
दक्षिण कोरियाई लेखिका हान कांग को
साहित्य का 2024
का नोबेल पुरस्कार उनके ऐतिहासिक उतार-चढाव का सामना करने वाले और मानव
जीवन की सौम्यता को उजागर करने वाले गहन काव्यात्मक गद्य के लिए दिया गया। यह पुरस्कार
जीतने वाले पहले और एकमात्र एशियाई पुरुष हमारे अपने गुरुदेव टैगोर थे, जिन्होंने 1913 में यह पुरस्कार प्राप्त
किया था। कांग को "द वेजिटेरियन" उपन्यास के लिए सबसे
पहले अंतरराष्ट्रीय मान्यता प्राप्त हुई
थी। उनके लेखन को दुनिया ने पहचाना और
सराहा था। मूल रूप से 2007 में प्रकाशित, यह उपन्यास पहली बार 2015 में
अंग्रेजी में प्रकाशित हुआ और इसने एक साल बाद 2016 में अंतर्राष्ट्रीय मैन बुकर
पुरस्कार जीता।
यहाँ उनके उसी प्रसिद्ध उपन्यास
"द वेजिटेरियन" से एक अंश दिया गया है। इससे आपको उनके गद्य और लेखन की
गहराई का एहसास होगा।
जिस कुत्ते
ने मेरे पैर में अपने दाँत गड़ाए , वह पिताजी की मोटरसाइकिल से बंधा हुआ
है। माँ के द्वारा बताए एक पुराने
पारम्परिक घरेलू नुस्खे को अपनाते हुए उसी कुत्ते की जली हुई पूँछ को अपनी
पिंडली के घाव पर बाँधकर मैं बाहर
जाता हूँ औरघर के दरवाजे पर खड़ा हो
जाता हूँ । मैं नौ साल का हूँ, और गर्मी की तपिश दम घोंट रही है।
सूरज ढल चुका है, और अभी भी मेरे शरीर से पसीना बह रहा है। कुत्ता भी हांफ रहा
है। उसकी लाल जीभ लटक रही है। एक सफ़ेद, सुंदर सा दिखने वाला कुत्ता, मुझसे भी बड़ा। जब तक इस कुत्ते
ने साहूकार की बेटी को नहीं काटा, तब तक गाँव में हर कोई यही सोचता था
कि यह कुत्ता ऐसा कोई गलत काम नहीं कर
सकता।
पिताजी कहते हैं कि इस कुत्ते को
न तो वे पेड़ से बाँधेंगे और न
ही लैंप से झुलसाने वाले हैं या
कोड़े मार-मार कर इसे अधमरा करने
वाले हैं । वे कहते हैं कि उन्होंने कहीं सुना था
कि कुत्ते को मौत की हद तक दौड़ाते रहने से उसका मांस लज़ीज़ और नरम हो
जाता है।
मोटरसाइकिल
का इंजन चालू किया जाता है, और पिता जी एक गोलाकार में गाड़ी
चलाना शुरू करते हैं। कुत्ता उससे बंधा साथ साथ
पीछे-पीछे दौड़ता है। दो चक्कर, तीन चक्कर, वे चक्कर लगाते हैं।
बिना एक भी
मांसपेशी हिलाए मैं गेट के अंदर खड़ा होकर व्हाइटी नामक उस कुत्ते
को ताकता रहता हूँ। उसकी आँखें बाहर उबल आती हैं।
वह साँस लेने की भरसक कोशिश करता
है। धीरे-धीरे खुद को थकाता चला जाता है
। हर बार जब जब उसकी चमकती आँखें मेरी आँखों से मिलती हैं तो मैं और भी ज़्यादा
गुस्से से उसे घूरता हूँ।
नामुराद कुत्ते
,
तुम
मुझे काटोगे?
पाँच चक्कर
लगाने के बाद,
कुत्ते
के मुँह से झाग निकलने लगता है। रस्सी के अनवरत दबाव से उसके गले से खून टपकने
लगता है । बुरी तरह क्षतिग्रस्त गले से
लगातार कराहते हुए असहाय
कुत्ते को ज़मीन पर बार बार घसीटा जाता है।
छह चक्कर
लगाने के बाद,
कुत्ता
काले-लाल रंग के उस चकत्ते को उगल देता है
जो उसके गले और खुले मुँह से टपक रहा है । सातवें चक्कर के पूरा होने पर
पिताजी उस अधमरे हो गए कुत्ते को पीछे
मुड़कर देखते हैं जो अब मोटर साइकल के पहिये से लिपटा सा झूल रहा है। मैं खून से लथपथ कुत्ते के चारों अशक्त पैरों को देखता
हूँ। इसकी मरणासन्न उभरी हुई पलकों और
तेजहीन आँखों से खून और पानी की धार चू रही है ।
उस शाम
हमारे घर पर दावत जमी थी। बाज़ार की गलियों से वे सभी अधेड़ उम्र के आदमी आये जिन्हें
मेरे पिताजी बुलाने लायक समझते थे।
कहावत है कि कुत्ते के काटने से हुए घाव को ठीक करने के लिए आपको उसी कुत्ते को
खाना पड़ता है,
और
मैंने अपने लिए उसका एक कौर उठाया। नहीं, वास्तव में मैंने चावल के साथ एक
पूरा कटोरा कुत्ते का गोश्त खा लिया।
जिसे
पेरिला जड़ी के बीज पूरी तरह से छिपा नहीं पाए थे उस जले हुए मांस की गंध ने मेरी
नाक में चुभन पैदा कर दी थी । मुझे याद है कि
वे दो आँखें मुझे घूर रही थीं। जब कुत्ते को दौड़ाया जा रहा था, जब वह झाग के साथ खून की उल्टी कर
रहा था,
और
कैसे जब वे दो आँखें बाद में सूप की सतह
पर टिमटिमाती-
टकोरते
हुई दिखाई दीं। लेकिन मुझे परवाह नहीं है। मुझे वास्तव में परवाह नहीं है।
(द वेजीटेरियन, ग्रांटा बुक्स, 2024 पृष्ठ 41-42)
यह अनुवाद मैंने किया है। वास्तव में इस आलेख के लिखने से पहले ही मैं “चेसिकजुइजा” (द वेजीटेरियन) का हिंदी में अनुवाद कर चुका
हूँ। उपरोक्त पंक्तियाँ उस कोरियन उपन्यास का अंश है जिसके अंग्रेजी
अनुवाद को 2016 में बूकर पुरस्कार मिला। ठीक वैसे ही जैसे 'रेत
समाधि'
के अंग्रेजी अनुवाद ‘द टॉम्ब ऑफ़ सैंड' के अनुवाद को 2022 में मिला था। गीतांजलि श्री द्वारा
लिखित और डेज़ी रॉकवेल द्वारा अनूदित ‘टॉम्ब
ऑफ़ सैंड’ ने अंतर्राष्ट्रीय बुकर पुरस्कार
जीता,
जो यह पुरस्कार जीतने वाला हिंदी में
लिखा गया पहला उपन्यास है। फर्क यह है कि 'द वेजीटेरियन' नामक इस उपन्यास को इतनी प्रसिद्धि
मिली कि उपन्यासकार हान कांग को 2024 का नोबेल पुरस्कार भी मिल गया। यह इतनी बड़ी बात है कि कई
वजहों से हमें इसका संज्ञान लेना जरुरी
है।
हान कांग दूसरी ऐसी प्रतिभाशाली
साहित्यकार हैं जिन्हें यह पुरस्कार मिला।
हमारे लिए यह गर्व की बात है कि साहित्य का नोबेल पुरस्कार भारत के
कवीन्द्र रवींद्र को उनकी कृति गीतांजलि के लिए 1913 में मिला था। लेकिन तब से लेकर यह किसी भारतीय को
तो क्या किसी एशियाई को नहीं मिला। गुरुदेव का वह कथन भी अब सजग पाठकों को बरबस ही
याद आ गया है जो उन्होंने वर्षों पूर्व कोरिया के लिए कविता के शिल्प में प्रस्तुत
किया था। रवींद्रनाथ ठाकुर ने 1929 में अपनी प्रसिद्ध कविता *द लैम्प ऑफ द ईस्ट* में
कोरिया के फिर से उदय होने की भविष्यवाणी की थी। कोरिया के
समाचार पत्र *द डोंग-ए इल्बो* में प्रकाशित इस कविता ने कोरियाई जनता को
प्रेरणा दी और देश के प्रति गर्व को पुनर्जीवित किया। आज यह कविता कोरियाई स्कूलों
में पढ़ाई जाती है और सियोल में रवींद्रनाथ ठाकुर की प्रस्तर प्रतिमा के आधार-
स्थल पर अंकित है।
प्राची के स्वर्णकाल में,दीप-वाहक था देश कोरिया
प्रदीप्त होगा जब दीपक यह,प्रोज्ज्वल होगा पुनः एशिया.
कोरियाई लेखिका को नोबेल पुरस्कार
मिलने का समाचार कोरिया के लिए एक लंबे समय से प्रतीक्षित सपना साकार होने जैसा
है। सियोल के चोंगनो इलाके में स्थित कोरियाई साहित्य प्रेमियों के लिए एक
तीर्थस्थल के समान क्योबो बुकस्टोर इस पल
का साक्षी बनने के लिए दशकों से प्रतीक्षा कर रहा था। विशाल स्टेडियम जैसी इस
दुकान में लाखों किताबें सजी रहती थीं, लेकिन
एक दीवार खाली थी। उस दीवार पर सुनहरे अक्षरों में लिखा था, "नोबेल विजेता कोरियाई लेखक के लिए
आरक्षित।" अब वह खाली दीवार अपने अभीष्ट अर्थ को पा गई।
क्योबो की वर्षों की प्रतीक्षा समाप्त हुई, और कोरियाई साहित्य के प्रति प्रेम
और गर्व ने नई ऊंचाई छू ली। यह केवल एक लेखिका की उपलब्धि नहीं, बल्कि पूरे कोरियाई साहित्य की
वैश्विक मान्यता का क्षण है।
क्या आप अब आप हान कांग के बारे में कुछ विस्तार से न जानना
चाहेंगे ?
हान कांग का जन्म नवंबर 1970 में
ग्वांगजू मेट्रोपॉलिटन सिटी में हुआ था। उनके
पिता के अनुसार लेखिका का नाम हान नदी ( हैंगंग) के नाम पर रखा गया था। बचपन
में ही इनको ऐसा पारिवारिक वातावरण मिला कि ये कविता लिखने लगीं।बचपन में ही इनको
ऐसा पारिवारिक वातावरण मिला कि ये कविता लिखने लगीं।
प्यार
कहाँ है?
यह
दिल के अंदर छुपा एक गाना है।
प्यार
क्या है?
यह
दिलों को जोड़ने वाला अफसाना है।
हान ने
पुंगमून गर्ल्स हाई स्कूल में पढ़ाई की और योनसेई विश्वविद्यालय में कोरियाई
साहित्य विभाग से स्नातक की उपाधि प्राप्त की। 1993 में, जिस वर्ष उन्होंने कॉलेज से स्नातक
किया,
उन्होंने चार कविताओं के साथ एक कवि
के रूप में शुरुआत की,
जिसमें 'विंटर इन सियोल', त्रैमासिक 'साहित्य और समाज' के शीतकालीन अंक के लिए चुना गया, उनकी लघु कहानी 'स्कारलेट एंकर' (फाल्गुन दच्छ) इनमें शामिल थी। इसके बाद इनका उपन्यास 'रेड एंकर” 1994 में आया। इसी
वर्ष हान को सियोल शिनमुन स्प्रिंग साहित्यिक प्रतियोगिता के लिए चुना गया, जिससे उनका उपन्यासकार के रूप में
पदार्पण हुआ।
हान कांग का परिवार 'साहित्यिक परिवार' के रूप में प्रसिद्ध है। हान कांग के
पिता उपन्यासकार हान सेउंग-वोन (85) हैं, जिन्होंने
'अजे-ए-जे बारा-ए-जे', 'चूसा' और 'द लाइफ ऑफ दासन' जैसे उपन्यास प्रकाशित किए, और उनके बड़े भाई हान डोंग- रिम भी एक
उपन्यासकार हैं जिन्होंने 'घोस्ट' प्रकाशित किया था। उनके छोटे भाई, हान कांग-इन भी सियोल इंस्टीट्यूट ऑफ
आर्ट्स में रचनात्मक लेखन विभाग से स्नातक होने के बाद उपन्यास लिख रहे हैं और
कार्टून बना रहे हैं। हान का विवाह होंग योंग-ही से हुआ था। वे एक साहित्यिक आलोचक और क्यूंग ही साइबर
यूनिवर्सिटी में प्रोफेसर हैं। हान ने 2024 में पत्रकारों को बताया था कि उनका
तलाक कई सालों पहले हो चुका है। हान का एक
पुत्र है। पुत्र के सहयोग से वे
2018 से नवंबर 2024 तक सियोल में एक किताबों की दुकान चलाती रही हैं। अब वे इसके प्रबंधन से दूर हो गई हैं ।
हान ने
एक साक्षात्कार के दौरान कहा था कि वे समय-समय पर भयंकर माइग्रेन से पीड़ित
रहती हैं। यह पीड़ा उन्हें विनम्र बनाए रखती है। हान ने तभी डिनर खत्म
किया था,
जब
उन्हें अकादमी से अपने नोबेल पुरस्कार जीतने की खबर मिली। उन्होंने कहा कि वे
"बहुत हैरान हैं और बिल्कुल
सम्मानित महसूस कर रही हैं । "इस फोन कॉल के बाद मैं अपने बेटे के साथ चाय
पीना चाहूँगी - मैं शराब नहीं पीती इसलिए - मैं अपने बेटे के साथ चाय पीने जा रही
हूं और आज रात चुपचाप इसका जश्न मनाऊँगी।"
सरलता,
सहजता की प्रतिमूर्ति ही कहेंगे हम
इन्हें। और क्या कहें ?
चलें, उनके कृतित्व की कुछ विस्तार से
चर्चा की जाए।
हान कांग को उनकी कृति द
वेजिटेरियन के लिए सबसे अधिक जाना
जाता है। यह उपन्यास एक साधारण महिला की कहानी के माध्यम से पितृसत्ता, सामाजिक अपेक्षाओं और व्यक्तिगत
स्वतंत्रता के मुद्दों को उठाता है। । चेसिकजुइजा (2007; अंग्रेजी अनुवाद द वेजिटेरियन, 2015) उनका पहला उपन्यास था जिसका
अंग्रेजी में अनुवाद किया गया और इसने 2016 में अंतर्राष्ट्रीय बुकर पुरस्कार
जीता। इसकी शुरुआत 1997 में लघु कहानी ‘द
फ्रूट ऑफ माई वुमन’ के रूप में हुई थी। । 2003 से 2005 तक अपना तीसरा उपन्यास, 'द वेजिटेरियन' लिखते समय लेखिका कुछ दर्दनाक सवालों से जूझ रही थी: क्या कोई
व्यक्ति कभी पूरी तरह से निर्दोष हो सकता है? हम हिंसा को किस हद तक नकार सकते हैं? उस व्यक्ति का क्या होता है जो
मनुष्य नामक प्रजाति से संबंधित होने से इनकार करता है?
'द वेजिटेरियन' की मुख्य पात्र येओंग-ह्ये हर तरह की हिंसा से इनकार करते हुए मांस न खाने
का चुनाव करती है। अंत में वह पानी के अलावा सभी खाद्य और पेय पदार्थ को
अस्वीकार करने लगती थी। , यह विश्वास करते हुए कि वह एक पौधे में बदल गई है,
वह
खुद को बचाने की कोशिश में मौत की ओर तेजी से बढ़ने लगती है । येओंग-ह्ये और
उसकी छोटी बहन इन-ह्ये भयानक दुःस्वप्नों और टूटन के माध्यम से निशब्द चिल्लाती हैं, लेकिन अंत में खुद को एक साथ पाती
हैं। उपन्यास के अंतिम दृश्य में कथानायिका एक एम्बुलेंस में होती
है,
क्योंकि उसे उम्मीद है कि येओंग-ह्ये
इस कहानी की दुनिया में जीवित रहेगी। एम्बुलेंस
हरी भरी पहाड़ी सड़क से नीचे भागती
है, जबकि सतर्क बड़ी बहन खिड़की से
बाहर प्रतिक्रिया की प्रतीक्षा में,देखती रह जाती है।
कुछ आलोचकों ने मुख्य पात्र के
विद्रोह और उसके परिवार की प्रतिक्रिया को औपनिवेशिक विद्रोह और साम्राज्यवाद की
हिंसा के रूपक के रूप में व्याख्यायित किया है ।
यह
उपन्यास बताता है कि पारंपरिक भोजन विकल्पों से किनारा करना किसी को उसके परिवेश और जीवन से कैसे प्रभावित और दूर कर सकता है । इस कथानक को विद्वान आलोचक सत्ता और स्वतंत्रता के लिए महिलाओं की लड़ाई
के लिए एक उत्तर आधुनिक रूपक के रूप में देख रहे हैं। 2009 में उपन्यास को लिम
वू-सियोंग द्वारा निर्देशित एक फिल्म में भी रूपांतरित किया गया था।
‘द वेजिटेरियन’ के बाद आया उपन्यास "इंक एंड
ब्लड" इन प्रश्नों के उत्तरों की खोज जारी रखता है। हिंसा को नकारने के लिए
जीवन और दुनिया को नकारना असंभव है। आखिरकार, हम पौधे तो नहीं बन सकते। फिर हम
कैसे आगे बढ़ सकते हैं?
अपने पाँचवें उपन्यास ‘हुइराबेओ
सिगन’ (अंग्रेजी अनुवाद ग्रीक लेसन, 2023) में
उपन्यासकार कुछ दूसरे सवालों के
जवाब खोजती हैं : अगर हमें इस दुनिया में जीना है, तो कौन से पल ऐसा संभव बनाते हैं? अपनी वाणी खो चुकी एक महिला और एक दृष्टिहीन पुरुष किस तरह आपस में तादात्म्य स्थापित करते
हैं, यह इस उपन्यास का कथ्य है। जब उनके
अकेले रास्ते एक-दूसरे से मिलते हैं तो क्या होता है। हान
कांग का यह उपन्यास प्रेम, भाषा, और
अस्तित्व के सवालों को गहराई से छूता है।
एक अन्य
उल्लेखनीय उपन्यास सोनीओनी ओंडा (2014; अंग्रेजी
अनुवाद ह्यूमन एक्ट्स, 2016) में, हान कांग
ने ग्वांगजू विद्रोह की अपनी यादों को ताजा किया है।
अंतिम
शब्द ‘ओंडा’ क्रिया ‘ओड़ा’ अर्थात
आना का वर्तमान काल है। हान ने विस्मृति के गर्भ से एक घटना को बाहर करके
सबको उस घनीभूत पीड़ा से दो चार किया है
जिसको सदा याद रखना देश के लोकतंत्र को चिर स्थायी रखने के लिए जरुरी था। उपन्यास के कथानक के माध्यम
से वे इन प्रश्नों के उत्तरों को खोजने के लिए तत्पर होती हैं :
क्या
वर्तमान अतीत की मदद कर सकता है?
क्या
जीवित लोग मृतकों को बचा सकते हैं?
उपन्यास में
उन्होंने कुछ क्षण में महसूस किया कि अतीत वास्तव में वर्तमान की मदद कर रहा है, और मृतक
जीवित लोगों को बचा रहे हैं। इस उपन्यास में जब बालक डोंग-हो अपनी माँ का हाथ
खींचकर उसे सूर्य की ओर ले जाता है तो पाठक को इसका एहसास होता है।
हुईन
(2016; अंग्रेजी अनुवाद द व्हाइट बुक, 2017)
में, हान एक खंडित कथा का उपयोग एक अनाम महिला की बहन की
प्रशंसा करने के लिए करता है, जो पैदा
होने के दो घंटे से भी कम समय में मर गई थी। यह उपन्यास हान कांग की सबसे अनूठी
कृतियों में से एक है। यह पूरी तरह से श्वेत रंग के प्रतीकों पर आधारित है। श्वेत
कपड़ा, बर्फ, दूध, और जीवन
व मृत्यु जैसे विषय इसमें महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। यह पुस्तक लेखिका के निजी
अनुभवों और उनके परिवार के इतिहास से प्रेरित है। इसे स्मृति, शोक और
पुनर्निर्माण के एक भावुक चित्रण के रूप में देखा जाता है।
'वी डू
नॉट पार्ट' (2025) कोरियाई इतिहास के एक छिपे हुए अध्याय के साथ शक्तिशाली
रूप से तालमेल बिठाते हुए दो महिलाओं के बीच मित्रता की कहानी कहती है।
वी डू
नॉट पार्ट तीन महिलाओं, क्यूंघा, इनसियन
और इनसियन की दिवंगत मां ग्योंगहा के अंतर्संबंधित जीवन के ऐतिहासिक आघात की खोज
पर आधारित है। 'ह्यूमन
एक्ट्स' की तरह, उपन्यासकार
ने नरसंहार से बचे लोगों के बयान पढ़कर
क्रूर विवरणों से ध्यान हटाए बिना यथासंभव
संयमित रहकर उन्होंने वह लिखा जो उपन्यास 'वी डू
नॉट पार्ट' के रूप में पाठकों के सामने आया।
लेखक ने
उपन्यास को तीन प्रतीकात्मक खंडों में विभाजित किया है: पक्षी, रातें और
आग। प्रत्येक खंड ग्योंगहा की यात्रा में एक महत्वपूर्ण बदलाव को दर्शाता है। शुरू
में, वह अपने दर्द का सामना करने से बचती है, लेकिन
जैसे-जैसे कहानी आगे बढ़ती है, वह अपने
जीवन और अपने आस-पास के लोगों पर अतीत के प्रभाव के बारे में अधिक से अधिक जागरूक
होती जाती है। हान कांग मानों यह कहना चाहती हैं
-
गर्माहट ही जीवन की पहचान है,
जहाँ प्रेम हो, वहीं
आसमान है।
ठंड तो बस अंत की कहानी है,
जो हर जीव को एक दिन आनी है।
हान कांग
की लघु कथाएँ उनके उपन्यासों की तरह ही मार्मिक और विचारोत्तेजक हैं। वे रोजमर्रा
की घटनाओं को गहराई से देखते हुए मानवीय व्यवहार और समाज के जटिल पहलुओं को उजागर
करती हैं। ने यजा उई उल्मै (द फ्रूट ऑफ़ माई
वुमन ) हान की वह प्रसिद्ध कहानी है जिसने
उनके ‘द वेजीटेरियन’ को
पुख्ता कथानक दिया। इस कहानी का यह वाक्य ' मेरा
मानना है कि मनुष्य को एक पौधा बन जाना चाहिए। " बड़ा चर्चित हुआ है। हान अपनी लगभग सारी कहानियों और कथानकों को
'नारी' जीवन के
इर्द गिर्द बुनती हैं। पर 'अबला
जीवन' की उनकी कहानियों में ' आंचल में
दूध और आँखों में पानी" जैसी लिजलिजी भावनाएं प्रायः नहीं हैं। हान की कहानियां स्त्री के मर्म को उद्घाटित करती हैं।
"क्या यह
सच है कि मनुष्य मूल रूप से क्रूर है? क्या
क्रूरता का अनुभव ही एकमात्र चीज़ है जिसे हम एक प्रजाति के रूप में साझा करते हैं? क्या हम
जिस गरिमा से चिपके रहते हैं वह आत्म-भ्रम के अलावा कुछ नहीं है, जो खुद
से एकमात्र सत्य को छिपाती है: कि हममें से हर एक को एक कीट, एक हिंसक
जानवर, एक मांस का टुकड़ा बनने में सक्षम
बनाया जा सकता है? अपमानित होना, वध किया
जाना - क्या यह मानव जाति का अनिवार्य हिस्सा है, जिसे
इतिहास ने अपरिहार्य के रूप में पुष्टि की है?"
हान कांग
के साहित्य की एक विशेषता यह है कि उनकी कृतियाँ जीवन और मृत्यु के गहरे दार्शनिक
प्रश्नों को छूती हैं। उनकी कहानियाँ पाठकों को आत्मा और शरीर के संबंध, हिंसा और
करुणा के द्वंद्व, और स्मृतियों के भार के बारे में
सोचने का अवसर देती हैं।उनकी रचनाएँ यह भी दिखाती हैं कि साहित्य केवल मनोरंजन का
साधन नहीं है। यह समाज के गहरे मुद्दों को उजागर करने, इतिहास
को जीवित रखने और व्यक्तिगत व सामूहिक अनुभवों को बाँटने का एक सशक्त माध्यम हो
सकता है। भारतीय पाठकों के लिए, हान कांग
की कहानियाँ एक पुल का काम करती हैं, जो
उन्हें कोरियाई संस्कृति और मानवता की व्यापकता से जोड़ती हैं। उनकी कहानियों में प्रकृति का गहरा
प्रभाव दिखाई देता है। उनकी लेखनी में कई बार शांति और हिंसा का अद्वितीय मेल
देखने को मिलता है,
जो पाठकों को विचारशील और गहराई से
प्रभावित करता है। उनकी भाषा में काव्यात्मकता है, जो उनकी कविताओं और गद्य दोनों में
झलकती है।
भारतीय पाठकों के लिए हान कांग का
लेखन बेहद प्रासंगिक है। उनकी कहानियाँ
हमें यह सोचने पर मजबूर करती हैं कि सामाजिक व्यवस्था और परंपराएँ हमारी व्यक्तिगत
स्वतंत्रता और मानवीय अस्तित्व को किस हद तक प्रभावित करती हैं। उनकी कहानियों में
पात्र अपनी पहचान, स्वतंत्रता और अस्तित्व के लिए
संघर्ष करते हैं, जो भारतीय समाज के संदर्भ में भी
गहराई से जुड़ाव महसूस कराते हैं।
और अंत में, 7 दिसंबर 2024 को
नोबेल व्याख्यान में हान कांग ने अपनी रचना प्रक्रिया के विषय में जो कहा उसे
देखें और जानें कि बड़े साहित्यकार कैसे लिखते हैं
-
जब मैं लिखती हूँ, तो मैं अपने शरीर का उपयोग करती हूँ। मैं देखने, सुनने, सूंघने, चखने, कोमलता, गर्मी, ठंड और दर्द का अनुभव करने, अपने दिल की धड़कनों को महसूस करने और अपने शरीर को भोजन और पानी की ज़रूरत महसूस करने, चलने और दौड़ने, अपनी त्वचा पर हवा, बारिश और बर्फ़ को महसूस करने, हाथ पकड़ने जैसी सभी संवेदी बारीकियों का उपयोग करती हूँ। मैं उन ज्वलंत संवेदनाओं को अपने वाक्यों में शामिल करने की कोशिश करती हूँ जो मैं एक नश्वर प्राणी के रूप में महसूस करती हूँ जिसके शरीर में रक्त बह रहा है। मानो मैं एक विद्युत प्रवाह भेज रही हूँ। और जब मैं महसूस करती हूँ कि यह प्रवाह पाठक तक पहुँच रहा है, तो मैं चकित और भावुक हो जाती हूँ। इन क्षणों में मैं फिर से भाषा के उस धागे का अनुभव करती हूँ जो हमें जोड़ता है, कैसे मेरे प्रश्न उस विद्युत, जीवित चीज़ के माध्यम से पाठकों से जुड़ रहे हैं। मैं उन सभी के प्रति अपनी गहरी कृतज्ञता व्यक्त करना चाहती हूँ जो उस धागे के माध्यम से मुझसे जुड़े हैं, साथ ही उन सभी के प्रति भी जो इस तरह से संपर्क साध सकते हैं। ( © THE NOBEL FOUNDATION 2024)
प्रो. गोपाल शर्मा
6-3-120/23 एन पी ए कॉलोनी
शिवरामपल्ली
हैदराबाद - 500052
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