मंगलवार, 31 दिसंबर 2024

कविता

 


प्रकृति हमारी माता

डॉ. राजकुमार शांडिल्य 

जन्म देती है माँ, पालन करे प्रकृति माता ।

मनुष्य का प्रकृति से रहे आजीवन नाता  ।।

पेड़ों से मिलती शुद्ध हवा और हरियाली ।

यह तन-मन में शीतलता भरे निराली ।।

सुधी कहते पूज्य वृक्ष हैं धरा का भूषण ।

जहाँ बढ़ें वृक्ष, वहाँ कम होता प्रदूषण ।।

औषधीय गुणों से ये रखें, सभी को नीरोग ।

गुणकारी, मधुरफलों का करें उपभोग ।।

पर्वतों से पवित्र नदियों का उद्गम होता ।

सागर-मिलन की चाह में न कहीं रुकती ।।

पशु-पक्षी मनुष्य सभी की ये प्यास बुझाती ।

सिंचाई से अन्न उगाकर ये भूख मिटाती ।।

कल-कल करते झरने, मन मोह लेते ।

देखते ही हृदय को सौन्दर्य से भर देते ।।

ऊँची बर्फीली चोटियाँ, चाँदी-सी हैं चमकती ।

बर्फ पिघलने पर ये आँखों में खटकती ।।

रंग-बिरंगे फूलों से, महकती हैं घाटियाँ ।

विविध खगवृन्द से, चहकती हैं वादियाँ ।

शहरों की भागदौड, शोर से ऊबता मन ।

प्रकृति की गोद में असीम शान्ति पाता जन।।

यहाँ मिलता गुणकारी, स्वादु, निर्मल जल ।

कर्मठ शरीर रहे नीरोग, बढ़ता है बल ।।

जगत्पिता सूर्य पृथ्वी पर जीवन-आधार ।

ऊर्जा और प्रकाश विना व्यर्थ सब व्यापार ।।

नभ में चमकता चाँद, ठंडक भर देता ।

असंख्य लघु तारे हैं  टिमटिमाते प्यारे ।।


डॉ राजकुमार शांडिल्य

हिन्दी प्रवक्ता

एस. सी. ई. आर. टी. चंडीगढ़

#1017 सेक्टर 20-बी

चंडीगढ़ 160020

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