प्रकृति हमारी माता
डॉ. राजकुमार शांडिल्य
जन्म देती है माँ, पालन करे प्रकृति माता ।
मनुष्य का प्रकृति से रहे आजीवन नाता ।।
पेड़ों से मिलती शुद्ध हवा और हरियाली ।
यह तन-मन में शीतलता भरे निराली ।।
सुधी कहते पूज्य वृक्ष हैं धरा का भूषण ।
जहाँ बढ़ें वृक्ष, वहाँ कम होता प्रदूषण ।।
औषधीय गुणों से ये रखें, सभी को नीरोग ।
गुणकारी, मधुरफलों का करें उपभोग ।।
पर्वतों से पवित्र नदियों का उद्गम होता ।
सागर-मिलन की चाह में न कहीं रुकती ।।
पशु-पक्षी मनुष्य सभी की ये प्यास बुझाती ।
सिंचाई से अन्न उगाकर ये भूख मिटाती ।।
कल-कल करते झरने, मन मोह लेते ।
देखते ही हृदय को सौन्दर्य से भर देते ।।
ऊँची बर्फीली चोटियाँ, चाँदी-सी हैं चमकती ।
बर्फ पिघलने पर ये आँखों में खटकती ।।
रंग-बिरंगे फूलों से, महकती हैं घाटियाँ ।
विविध खगवृन्द से, चहकती हैं वादियाँ ।
शहरों की भागदौड, शोर से ऊबता मन ।
प्रकृति की गोद में असीम शान्ति पाता जन।।
यहाँ मिलता गुणकारी, स्वादु, निर्मल जल ।
कर्मठ शरीर रहे नीरोग, बढ़ता है बल ।।
जगत्पिता सूर्य पृथ्वी पर जीवन-आधार ।
ऊर्जा और प्रकाश विना व्यर्थ सब व्यापार ।।
नभ में चमकता चाँद, ठंडक भर देता ।
असंख्य लघु तारे हैं
टिमटिमाते प्यारे ।।
डॉ राजकुमार शांडिल्य
हिन्दी प्रवक्ता
एस. सी. ई. आर. टी. चंडीगढ़
#1017 सेक्टर 20-बी
चंडीगढ़ 160020
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