मंगलवार, 31 दिसंबर 2024

कविता

 


चाय और जीवन का नारीत्व

अश्विन शर्मा

चाय...

जैसे एक नारी का रूप,

जो धरती की कोख में पलती है,

धूप सहती है, बारिश झेलती है,

हर दर्द को अपने भीतर समेटकर,

संसार को अपनी सुगंध से महकाती है।

 

सुबह की पहली किरण संग,

वो हल्के स्वाद सी,

जैसे रिश्तों में पहली झलक –

कोमल, सौम्य, और दिल को छू लेने वाली।

 

दोपहर की तेज़ धूप में,

वो गाढ़े रंग सी बन जाती है,

जैसे नारी अपने हर रिश्ते को

मजबूती से संभाल लेती है।

 

शाम की ठहरती हवा में,

वो अपनी गर्माहट से थकान मिटाती है,

जैसे किसी माँ का आँचल

हर दर्द को सुकून में बदल देता है।

 

चाय का हर कण,

उसके धैर्य और सहनशीलता का प्रतीक है –

कभी मीठी, तो कभी हल्की कड़वाहट लिए,

पर हर बार अपनापन देती है।

 

उबलते पानी में,

जब वो अपना रंग छोड़ती है,

तो सिखाती है,

कि बलिदान में ही उसका सौंदर्य है।

 

हर सुबह, हर शाम,

उसकी उपस्थिति,

जैसे जीवन में एक नारी का होना –

साँसों की तरह अनिवार्य,

और अस्तित्व की तरह गहन।

 

चाय…

सिर्फ एक पेय नहीं,

जीवन का सार है,

उसकी सुगंध, उसका स्वाद,

हर पल में उसकी नारी शक्ति का एहसास है।

 

तो अगली बार जब चाय का प्याला उठाओ,

उसके हर घूँट में

एक नारी की कहानी सुनो।

 


अश्विन शर्मा

बेंगलुरु

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