अंक के बहाने.....
प्रो. हसमुख परमार
माँ की कोख से ही जन्म लेती हैं कवि-लेखक प्रतिभाएँ,
पर समय-समाज-शिक्षा-संवेदना और सोच ही इन्हें अच्छी तरह गढ़ती हैं-सँवारती हैं, और इन्हीं
से मिलती है इन्हें एक ख़ास धार । हर भाषा में ऐसा साहित्य मिलता है जो अभाव,
अपमान और उपेक्षा से उपजे दर्द से लिखा गया है, जो अपनी एक विशेष
पहचान रखता है । अपनी गाढ़ी संवेदना और सामाजिक सरोकारों से इस तरह के लेखन को आकार
देने वाली एक ऐसी ही प्रतिभा से मैं अवगत हुआ सितम्बर महीने के एक दैनिक समाचार पत्र
के माध्यम से, और बाद में ‘गूगल गुरु’ से इस संबंध में थोडा और ज्यादा ‘ज्ञान’ प्राप्त
किया । बस, इन्हीं दो माध्यमों के मार्फ़त जो जाना वही यहाँ बता रहा हूँ ।
रविवार-22 सितम्बर, 2024 के गुजराती दैनिक ‘दिव्य
भास्कर’ के ‘रसरंग’ शीर्षक के विशेष पृष्ठ पर ‘ राग बिन्दास’ स्तम्भ में लेखक संजय
छेल के ‘कथा दर्दना दरियानी : कुछ जिन्दगियाँ ऐसी भी’ शीर्षक से लिखे लेख में विशेषतः
तीन ऐसे लेखकों की बात है जिनका जीवन, दर्द का दरिया ही रहा,
परंतु लेखन के प्रति उनकी प्रतिबद्धता व समर्पिता तथा अपनी गहरी संवेदना और सामाजिकता
के चलते उनके लेखन में सागर सी गहराई और पूरी जीवंतता को पाठक बखूबी देख सकता है, अनुभव
कर सकता है । वे तीन लेखक हैं- मराठी के लक्ष्मण
गायकवाड, हिन्दी के शैलेश मटियानी तथा केरल
की नवोदित लेखिका धनुजाकुमारी ।
आधुनिक साहित्य जगत में
ऐसे भी कई लेखक-सर्जक हैं जो औपचारिक शिक्षा-विशेषतः उच्च अकादमिक शिक्षा से दूर रहकर
भी, साथ ही किसी अकादमिक मंच से स्थायी रूप से न जुडे रहने के कारण साहित्य की विशेष
गतिविधियों से ज्यादा अवगत न होते हुए भी, और इससे भी बड़ी बात यह कि अभावों और सामाजिक
दृष्टि से उपेक्षित-अपमानित जीवन को जीते हुए भी जिनकी भरपूर प्रखर सर्जनात्मक प्रतिभा
ने बहुत ही मूल्यवान सृजन-लेखन साहित्य जगत को दिया है । विशेष सुख-सुविधाएँ, सामाजिक
मान-सम्मान, अनुकूल परिस्थितियों आदि से वंचित, सिर्फ संघर्ष ही जिनके जीवन का पर्याय
बना तथा किसी और से कुछ आशा-उम्मीद रखे बगैर जिन्हों ने स्वयं ही अपना एक खास मार्ग बनाया, और उस पर चलते हुए अपनी प्रतिभा को निखारा ऐसे
‘अप्प दीपो भवः’ की परंपरा के लेखकों में
हम केरल की लेखिका धनुजाकुमारी का नाम ले सकते हैं ।
तिरुवनंतपुरम (केरल) के झुग्गी-झोपडी का एक इलाका ‘चेंगलचूला’ जो कि एक बदनाम बस्ती के रूप में कुख्यात है, वहाँ रहनेवाली लेखिका धनुजाकुमारी ‘हरित कर्मसेना’ यानी, ‘सफाई व्यवस्था विभाग’ में एक सफाईकर्मी है । आज लगभग 48 वर्ष की आयु तथा 9 वीं कक्षा तक पढ़ी धनुजाकुमारी को अपने पारिवारिक – सामाजिक जीवन में अभाव, अपमान तथा उपेक्षा का सामना करना पडा । अपने और अपने समाज के इस अनुभव को उन्होंने अपनी पुस्तक ‘माई लाइफ इन चेंगलचूला’ (चेकलचूलापिले एन्टे जीवितम्) यानी ‘चेंगलचूला में मेरा जीवन’ में निरुपित किया ।
धनुजाकुमारी की पुस्तक के २०२४ तक पाँच संस्करण निकले
हैं । इस पुस्तक को केरल के दो विश्वविद्यालयों-कालीकट विश्वविद्यालय और कन्नूर विश्वविद्यालय में बी.ए. तथा एम.ए. के पाठ्यक्रम में शामिल किया
गया है ।
‘चेंगलचूला
में मेरा जीवन’ पुस्तक चेंगलचूला
के सामाजिक-सांस्कृतिक जीवन का एक जीवंत दस्तावेज है । लेखिका ने इसमें सामाजिक-जातिगत
भेदभाव के दर्द को अच्छी तरह से व्यक्त किया है । साथ ही यह पुस्तक झुग्गी बस्ती चेंगलचूला पर लगाए गए बदनामी के दाग को दूर करने का भी एक प्रयास है ।
पत्रकार की लेखिका धनुजाकुमारी से हुई बातचीत का एक
अंश ( गूगल से साभार ) प्रस्तुत है- पत्रकार :- आपकी पुस्तक 2014 में प्रकाशित हुई
थी । दस साल बाद यह राज्य के दो विश्वविद्यालयों में अध्यापन सामग्री बन गई । इस विकास
पर आपका क्या कहना है ? लेखिका धनुजाकुमारी :- मुझे इस उपलब्धि पर बहुत गर्व है । मेरा
जन्म और पालन-पोषण एक झुग्गी-झोपडी में हुआ । आप जानते हों कि कैसे समुदायों को अक्सर
हाशिए पर रखा जाता है और उन्हें मुख्य धारा के समाज से अलग माना जाता है । मेरी किताब
उस हाशिए पर पडे समुदाय की आवाज़ है । हालाँकि यह किताब सिर्फ मेरे बारे में नहीं है
। यह उस पूरे झुग्गी समुदाय के जीवन संघर्षों और अनुभवों का प्रतिबिंब है, जिसमें मैं
पली बढ़ी हूँ । मैंने आसपास के माहौल, अपनी कॉलोनी आदि को मैंने देखा और सुना, उसके
बारे में लिखा है ।
प्रो. हसमुख परमार
स्नातकोत्तर हिन्दी विभाग
सरदार पटेल विश्वविद्यालय
वल्लभ विद्यानगर
(गुजरात)
ખૂબ સરસ
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुंदर और महत्वपूर्ण जानकारी ......
जवाब देंहटाएंआपकी लेखनी को नमन .... 🙏🌹
SONA
प्रतिभाएं - संपन्न परिवार में ही नहीं, निम्न परिवार में भी पाई जाती है लेकिन lime light में कम ही आ पाती है . आपके चयन को नमन
जवाब देंहटाएंप्रिय अनुज,
जवाब देंहटाएंलेखन साहित्य जगत की प्रखर सर्जनात्मक प्रतिभा की धनी लेखिका धनुजा कुमारी आज साहित्य जगत के उभरते हुए लेखकों के लिए प्रेरणास्रोत बन चुकी है।
इनकी जीवनी और समर्पण के जज्बे को आपने इस लेख में अपने शब्दों से संक्षिप्त मग़र बख़ूबी लिखा है।
धन्यवाद
पंकजकुमार एम.परमार
बड़ौदा
अभावग्रस्त परिवार में जन्मी, पली लेखिका के बारे में महत्वपूर्ण जानकारी देता प्रेरणादायी आलेख । सुदर्शन रत्नाकर
जवाब देंहटाएंबहुत ही बढ़िया लिखा।
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