बुधवार, 30 अक्तूबर 2024

खण्ड-2

 

गाँधी और गाँधीवाद

2 अक्टूबर, 1869 को गुजरात में जन्मे महात्मा गाँधी ने स्वाधीनता संग्राम, भारतीय राजनीति तथा जीवन-समाज के अन्य अनेक क्षेत्रों संबंधी चिंतन-दर्शन में अपनी बडी और महत्वपूर्ण भूमिका का निर्वाह बडी गंभीरतापूर्वक किया । वैसे आजादी की लड़ाई में तो इनकी महती भूमिका रही ही है, साथ ही इनके व्यक्तित्व ने, इनके व्यावहारिक जीवन ने, इनके चिन्तन ने, विविध क्षेत्रों में इनके वैचारिक योगदान ने भारतीय समाज में इन्हें अविस्मरणीय बनाया । “महात्मा गाँधी ने भारतीय संस्कृति पर इतनी अधिक दिशाओं में प्रभाव डाला है कि उनके समस्त अवदान का सम्यक मूल्य निर्धारित करना अभी किसी के लिए संभव नहीं दिखता । खान-पान, रहन-सहन, भाव-विचार, भाषा और शैली, परिधान, दर्शन और सामाजिक व्यवहार एवं धर्म-कर्म-राष्ट्रीयता और अंतर्राष्ट्रीय भारत में जो भी आचार और विचार प्रचलित हैं, उनमें से प्रत्येक पर कहीं न कहीं गाँधी जी की छाप है ।” ( संस्कृति के चार अध्याय, दिनकर, पृ-617 )

‘मेरा जीवन ही मेरा संदेश है’ सूत्र को, मंत्र को देने वाले इस महात्मा के विचार मात्र कहने-लिखने तक ही सीमित नहीं थे बल्कि व्यवहार में, आचरण में भी प्रयोग रूप में आए अतः उनके विचार हमेशा प्रासंगिक रहे हैं । गाँधी के विचारों को उनके चिंतन-दर्शन को गाँधीवाद के नाम से जाना जाता है । “ गाँधी जी मूलतः दार्शनिक कम और कर्मयोगी अधिक थे । उनके जीवन दर्शन को ही ‘गाँधीवाद’ की संज्ञा दी गई है । इसी चिन्तन-चेतना ने हमारे आधुनिक हिन्दी साहित्य को व्यापक रूप में प्रभावित किया है । गाँधी-इर्विन समझौते के पश्चात महात्मा गाँधी जी ने कहा था कि गाँधी मर सकता है, पर गाँधीवाद सदा जीवित रहेगा । ” (बृहत् साहित्यिक निबंध, डॉ.यश गुलाटी, पृ-683)

समाज, संस्कृति, साहित्य, धर्म, भाषा, राजनीति, आर्थिक व्यवस्था, शिक्षा, उद्योग-रोजगार, विज्ञान, नैतिकता प्रभृति विषय-क्षेत्रों से संबंधी गाँधी जी का चिंतन बहुत ही गंभीर, स्तरीय एवं समाजोपयोगी रहा है ।

सफाई, सचाई, पवित्रता, स्वच्छता संबंधी उनके विचार तथा उसी के अनुरूप व्यवहार गाँधी व्यक्तित्व का महान गुण था । “हमें आत्मा का बोध है, इसलिए हमारी सफाई भीतर-बाहर दोनों की होनी चाहिए । पर अंदर की सफाई तो सचाई है । सचाई ही सबसे बड़ी पवित्रता, इसलिए  स्वच्छता है । हम बाहर से साफ-सुथरे हों और अन्तर मैला हो तो या तो यह आडम्बर मात्र है या दम्भ है या विषय भोग की निशानी है । इसलिए संयमी स्त्री-पुरुषों की स्वच्छता यदि अन्तर की पवित्रता का लक्षण हो तभी योग्य है ।” (‘अंतिम जन’ पत्रिका, अगस्त-2023, पृ. 05)

साहित्य के क्षेत्र में गाँधी जी को तीन संदर्भों में देखा जा सकता है । एक- लेखक-विचारक के रूप में- इनकी प्रसिद्ध आत्मकथा तथा इनके द्वारा लिखे विविध लेख साथ ही भाषा एवं साहित्य संबंधी इनके विचार इत्यादि, कम मात्रा में ही सही पर साहित्य जगत को इनका यह अवदान विशेष उल्लेखनीय कहा जा सकता है । दो- अपने विचार-चिंतन से साहित्य को प्रभावित करने वाले गाँधी । इस प्रकार का साहित्य परिमाण और गुणवत्ता उभय दृष्टियों से महत्वपूर्ण रहा है । तीन-गाँधी का जीवन, व्यक्तित्व, कार्य आदि की साहित्य में मौजूदगी-महात्मा गाँधी केन्द्रित साहित्य ।

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