बुधवार, 30 अक्तूबर 2024

खण्ड-2

आचार्य विनोबा भावे

The main feature of the evaluation de society lies in development of human qualities Vinoba made a unique effort to inject spiritual value in collective life, through such programme as of gramdan we find as answer to this question in Vinoba’s programmes as to how a new society can be built up in the basis of moral values. Vinoba’s movement is a grand experiment and effort for the reconstruction of man and to bring about a human revolution.

Jayaprakash Narayan

भारत महान विभूतियों का देश है। समाज की सेवा एवं साधारण जन के उत्थान के लिए अपना सर्वस्व समर्पित कर देने वाली एक विभूति है – आचार्य विनोबा भावे। आधुनिक भारत के निर्माण में केवल सामाजिक-आर्थिक-राजनीतिक ही नहीं बल्कि आध्यात्मिक एवं शैक्षिक स्तर पर भी चिंतन करते हुए विभिन्न समस्याओं का समाधान खोजकर समाज को उन्नत बनाने का कार्य विनोबा भावे ने बड़े मनोभाव से किया।

विनोबा जी आध्यात्मिक संत थे। वेद, वेदान्त एवं गीता के तत्वदर्शन से संन्यासी विनोबा सर्वाधिक प्रभावित तो थे ही इसी के साथ उन पर गाँधी, संत ज्ञानेश्वर और शंकर के अद्वैतवाद का विशेष प्रभाव रहा। उन्होंने अध्यात्म को ब्रह्मविद्याशास्त्र, तत्वदर्शन, आत्मज्ञान इन सभी का पर्याय माना। उन्होंने अध्यात्मिकता को धर्म से भिन्न माना। वे एकीकृत मानवता के समर्थक थे। उन्होंने विभिन्न धर्म ग्रंथों का अध्ययन करके यह निष्कर्ष निकाला कि सभी धर्म सार रूप से एक ही है – “ईसाइयों ने ईश्वर को प्रेममय (गाड इज लव) कहा है। इस्लाम ने परमेश्वर को दयामय बताते हुये रहीम रहमानकहा है। उपनिषदों ने परमेश्वर को सत्य स्वरूप कहा है ‘सत्यम ब्रहम’।” (विनोबा साहित्य खण्ड-5, वेद चिंतन, पृष्ठ 289)

‘जय जगत’ का नारा देने वाले और गाँधी दर्शन के महान व्याख्याकार इस आध्यात्मिक चिंतक की सबसे महत्वपूर्ण बात अध्यात्म और विज्ञान के समन्वय की कल्पना है। इस सन्दर्भ में उनके द्वारा दिए दो समीकरण महत्त्वपूर्ण हैं  – 1. राजनीति + विज्ञान = सर्वनाश 2. आध्यात्मिकता + विज्ञान = सर्वोदय । उनके अनुसार आत्मज्ञान एवं विज्ञान को  संतुलन में रखने से ही मानव का विकास होगा। 

गाँधी के मानस पुत्र के रूप में विनोबा जी ने सर्वोदय समाज की स्थापना के लिये प्रेम, करूणा, सत्य एवं अहिंसा की बुनियाद पर आधारित भूदान, ग्रामदान आन्दोलनों से सहयोगात्मक क्रान्ति का सूत्रपात किया।

भूदान

सर्वोदय आन्दोलन का सर्वाधिक महत्वपूर्ण कार्यक्रम – ‘भूदान’। भूदान यज्ञ के द्वारा विनोबा ने भूमि के समान वितरण की समस्या का अहिंसक समाधान निकाला। इसकी शुरुआत आन्ध्र प्रदेश के तेलंगाना क्षेत्र के बलंगुडा जिले के पोचमपल्ली ग्राम में 1951 में हुई। भूमिहीन हरिजनों ने विनोबा जी से गुजारे भर के लिये 80 एकड़ भूमि की माँग की। श्री रामचन्द्र रेड्डी ने 100 एकड़ भूमि गरीब भाईयों के लिए दान में देने का प्रस्ताव रखा। बस यही से भूदान आंदोलन का आरंभ हुआ । 13 वर्षों तक जारी रहे इस में विनोबा भावे ने देश के विभिन्न हिस्सों (कुल 58,741 किलोमीटर की दूरी) का भ्रमण करते हुए लगभग 4.4 मिलियन एकड़ भूमि एकत्र करने में सफल हुए। जिसमें से लगभग 1.3 मिलियन को गरीब भूमिहीन किसानों के बीच वितरित हुई। द न्यूयॉर्क टाइम्स के विशेष संवाददाता रॉबर्ट ट्रूमबुल ने विनोबा को कुछ इस तरह से व्याख्यायित किया –  The God who gives away land” and “loots people with love”.

हरिजन सेवा, कुष्ठ सेवा, ऋषि खेती, आश्रम निर्माण एवं सर्वोदय पात्र जैसे विशिष्ट रचनात्मक कार्यक्रम के द्वारा मानव हृदय में परिवर्तन एवं समाज की समृद्धि का मार्ग प्रशस्त करने में विनोबा भावे का योगदान अविस्मरणीय है।

रोचक प्रसंग

1

एक बार विनोबा को आगरा के प्रसिद्ध डाकूमानसिंह के पुत्र तहसीलदारसिंह का पत्र मिला, जिसमें लिखा था- बाबा ! मुझे फाँसी की सजा मिली है। मरने से पहले मैं आपके दर्शन कर लेना चाहता हूँ।

विनोबा ने डाकुओं को अपना जीवन-मार्ग बदलने का संदेश देने का निश्चय किया। 8 मई को वे आगरा के निकट चंबल के बेहड़ों में पहुँच गए। डाकुओं के क्षेत्र में उनके मुख्य सहकारी जनरल यदुनाथ सिंह डाकुओं के पास जाकर विनोबा का संदेश पहुँचाते रहे कि डाका डालना किसी को मारना- पीटना, सताना गलत है। जो लोग अभी तक ऐसा गलत काम करते रहे हैं, वे अब इसे छोड़ दे और अपनी जिंदगी सुधार लें।

8 जून तक एक महीने का समय उन्होंने इस काम में लगाया और इसका नतीजा यह हुआ कि लुक्का, लच्छी, भगवानसिंग, तेजसिंग, कन्हई जैसे २० प्रसिद्ध डाकुओं ने विनोबा आगे अपने हथियार लाकर रख दिए और प्रतिज्ञा की कि अब ऐसा काम न करेंगे।

एक डाकू बंबई में अखबार में पढ़ा कि बाबा विनोबा चंबल के बेहड़ों में घूम-घूमकर भूलमें पडे़ भाईयोंको समझा रहें है, तो उसे अपनी अंतरात्मा से यह प्रेरणा हुई कि मैं भी बाबा के चरणों में पहुँचकर आत्म- समर्पण कर दूँ। उससे भेंट होने पर विनोबा ने अपनी प्रवचन सभा में कहा- आज जो भाई आये हैं, वे परमेश्वर के भेजे हुए ही आये हैं। हमारा कोई साथी उनके पास नहीं पहुँचा था। ईश्वर ने प्रेरणा दी और वे यहाँ चले आये। ढाई हजार वर्षों से हम भागवान् बुद्ध और डाकू अंगुलिमाल की कहानी सुनते आ रहे हैं । आज कलियुग माना जा रहा है, पर इस कलियुग में भी ऐसी कहानियाँ बन रही है, यह ईश्वर की कृपा है।

2

विनोबा कोरी गणितीय गणनाओं में आध्यात्मिक तत्व खोज लेते थे। गाँधी जी आश्रम में सुबह-शाम होने वाली प्रार्थना सभाओं में उपस्थित होने वाले आश्रमवासियों की नियमित गिनती की जाती थी। एक दिन प्रार्थना सभा के बाद जब एक कार्यकर्ता ने प्रार्थना में उपस्थित हुए आगंतुकों की संख्या बताई तो विनोबा झट से प्रतिवाद करते हुए बोले—

‘नहीं इससे एक कम थी।’

कार्यकर्ता को अपनी गिनती पर विश्वास था, इसलिए वह भी अपनी बात पर अड़ गया। आश्रम में विवादों का निपटान बापू की अदालत में होता था। गाँधी जी को अपने कार्यकर्ता पर विश्वास था लेकिन वह जानते थे कि विनोबा यूँ ही बहस में नहीं पड़ने वाले।

वास्तविकता जानने के लिए उन्होंने विनोबा की ओर देखा तो विनोबा ने कहा –’प्रार्थना में सम्मिलित श्रद्धालुओं की संख्या जितनी इन्होंने बताई उससे एक कम ही थी।’

‘वह कैसे?’

इसलिए कि एक आदमी का तो पूरा ध्यान वहाँ उपस्थित सज्जनों की गिनती करने में लगा था।’

गाँधीजी विनोबा का तर्क समझ गए। प्रार्थना के काम में हिसाब-किताब और दिखावे की जरूरत ही क्या? आगे से प्रार्थना सभा में आए लोगों की गिनती का काम रोक दिया गया।

***

आचार्य विनोबा भावे

वास्तविक नाम – विनायक नरहरि भावे

जन्म – 11 सितम्बर, 1895 (गागोदे, पेन, जिला रायगढ़)

पिता –  नरहरि शंभू राव

माता – रुक्मिणी देवी

गुरु – महात्मा गाँधी

विशेष योगदान – भूदान आन्दोलन

मृत्यु (प्रायोपवेश) – 15 नवम्बर, 1982  (वर्धा, महाराष्ट्र)

 

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

अक्टूबर 2024, अंक 52

  शब्द-सृष्टि अक्टूबर 202 4, अंक 52 विशेषांक ज्ञान, भारतीय ज्ञान परंपरा और ज्ञान साहित्य लेखन, संकलन-संयोजन एवं संपादन –   डॉ. पूर्...