भीकम सिंह
1
तन नींद में
शाम का थका-माँदा
मन प्यार में ,
होना चाहे हार में
थोड़ा कम ना ज्य़ादा।
2
चारों ओर से
यादों की घटा घिरी
आज सबेरे
उगने लगी प्रीत
फिर से धीरे-धीरे ।
3
दिन-ब-दिन
ऑंखों में चलती है
तेरी जुस्तजू
हर तरफ यादें
और यादों में है तू ।
4
गर्म होठों की
वहीं छुअन जगी
ऑंखों में फिर
होने लगी मन में
बरसात -सी फिर ।
5
मैं भी चाॅंद - सा
फॅंस गया धरा से
प्रेम करके,
तारें भी छोड़ गए
एक-एक करके ।
6
तेरी यादों का
सिलसिला जारी है,
अभी शायद
मन ने समझा है
ये भी जिम्मेदारी है।
7
ऑंखों में ख़्वाब
बस तेरे उभरे
अनेकों बार
जैसे किसी श्राप से
मन हुआ लाचार ।
8
याद आई है
एक जरा - सी भूल
सालों के बाद
ऑंसुओं की धार से
फिर भीगी है रात ।
9
मेरी यादों में
हर पल रहती
तेरी भनक
प्रेम भरी रातों की
बीती हुई खनक ।
10
तेरे स्वप्न को
याद करते हुए
बीते हैं पौष
ऑंखों के सारे भाव
पड़े रहे खामोश ।
भीकम सिंह
‘अभिधा’ गली नं. 5
जारचा रोड, गुर्जर कॉलोनी
दादरी, गौतमबुद्ध नगर (उ. प्र.)
बहुत सुंदर
जवाब देंहटाएंBahaut Sundar👍
जवाब देंहटाएंवाह! बहुत सुंदर ताँका। हार्दिक बधाई ।सुदर्शन रत्नाकर
जवाब देंहटाएं