लघुता में समग्रता समेटे लघुकविता संग्रह - ‘बोलो ना निर्झर’
नीरू मित्तल ‘नीर’
गद्य एवं पद्य की विभिन्न विधाओं में निरंतर साहित्य सृजन
में संलग्न रहने वाली प्रतिष्ठित एवं वरिष्ठ साहित्यकारा श्रीमती सुदर्शन रत्नाकर
जी का नवीन लघुकविता संग्रह ‘बोलो ना निर्झर’ जब हस्तगत हुआ तो हृदय-कमल प्रस्फुटित हो उठा। हरियाणा
साहित्य अकादमी द्वारा महाकवि सूरदास आजीवन साहित्य साधना सम्मान 2019,
श्रेष्ठ महिला रचनाकार 2013, और ‘दोष किसका था’ कहानी संग्रह के लिए श्रेष्ठ कृति पुरस्कार से सम्मानित रत्नाकर जी स्वभाव से
पानी की तरह निर्मल हैं और उनकी यही निर्मलता उनकी रचनाओं में भी दृष्टिगोचर होती
है। ‘बोलो ना निर्झर’ कविता संग्रह में 100 लघुकविताएँ हैं जो भाव लालित्य की दृष्टि से गागर में सागर
के समान हैं। यह पुस्तक उन्होंने वरिष्ठ साहित्यकार प्रो. रूप देवगुण जी को सादर
और सस्नेह समर्पित की है। प्रत्येक लघुकविता प्रो. रूप देवगुण जी के द्वारा
स्थापित लघुकविता के मानकों पर खरी उतरती है। पुस्तक की भूमिका नोएडा के वरिष्ठ
साहित्यकार रामेश्वर कांबोज हिमांशु द्वारा लिखी गई है।
बहुआयामी कविताएँ अनेकों विषयों को छूती हुई सुख-दुख की गहन
अनुभूतियों से गुज़रकर हृदय के तारों को झंकृत कर जाती हैं। कभी मन माँ के प्रति
श्रद्धा से भर जाता है, कभी पुत्री के प्रति स्नेहिल भाव उभर कर आता है और कभी बूढ़े बरगद के पेड़ पर
चलती कुल्हाड़ी का दर्द उभर जाता है। कभी प्रकृति का सौंदर्य काव्य में मुखरित हो
जाता है और कभी मिलना-बिछड़ना, समय का बलवान होना हृदय को कचोट जाता है। इस काव्य निर्झर
में बहते हुए पाठक विभिन्न भावों से गुजरता रहता है।
माँ के प्रति अपनी कोमल निर्मल भावना प्रदर्शित करते हुए कवयित्री
कहती हैं –
“आँचल तेरी ममता की छाँव का नहीं भूलता/ बड़ी याद आती है/
जब बिटिया मुझे माँ बुलाती है/ जैसे बुलाती थी मैं” (मीठी
सी याद)।
सुदर्शन जी ने निरंतर घटते जीवनमूल्य और बढ़ती व्यक्तिवादी
सोच से क्षुब्ध होकर लिखा है –
“गली-गली में/ घूम रहे हैं लोग/ मुँह छुपाए मुखौटा लगाए/
पतन समाज का/ अंधी दौड़ रुकेगी कहाँ” (मुखौटे)।
प्रकृति का जीवंत चित्रण आपकी कविताओं में मिलता है,
प्रकृति से आपका अनोखा संबंध दर्शाती पंक्तियाँ –
“हटाकर झीना सा आँचल/ ताकते हो आसमान से/ तो चाँदनी में नहा
उठती है वसुंधरा/ नटखट कहीं के/
फिर छुप जाते हो बादलों की ओट में/ और दे जाते हो चकमा
हमें” (नटखट कहीं के)।
एक और कविता में चाँदनी से अपना संबंध बताते हुए लिखा है –
“चाँद जब आसमान से उतरकर/ खिड़की से झाँकते हुए,
मेरे बिस्तर पर आते हो/
तुम्हारी चाँदनी का धब्बा/ मेरे कमरे की दीवार पर लटक जाता
है/
तो मैं भी रोशन हो जाती हूँ चाँद/ मैं भी चाँदनी में नहाकर
तुम हो जाती हूँ” (चाँदनी का धब्बा)।
प्रेम में पिघल कर बहना, प्रेम को प्रति क्षण बाँटते रहना,
अपना वज़ूद समेट किसी सागर की गहराइयों में समाकर विलुप्त हो
जाना,
ऐसे प्यार की सुन्दर अभिव्यक्ति है –
“और मैं भी हिमखंड सी पिघलती/ नदी बन जाऊँ/ निरंतर गतिशील
बहती/
अंजुरी-अंजुरी प्यार बाँटती/ सागर की गहराइयों में/ कहीं खो
जाऊँ” (प्रतीक्षा)।
राजनीति में नेताओं के द्वारा चुनाव के बाद जनसाधारण को
उपेक्षित कर दिए जाने पर कटाक्ष करते हुए पंक्तियाँ देखिए –
“वह जो कल, जोड़े कर/ आए थे मेरे घर/ आज वे जानते नहीं/ क्योंकि उनकी
पहचान/
खास हो गई है/ जनता को छोड़ दिया है उन्होंने/ और कुर्सी
उनके साथ हो गई है” (एहसास की राख)।
कवि का हृदय विशाल होता है और उसके एहसासों और संवेदनाओं से
कविता के मोती जन्म लेते हैं, इन्हीं भावों को सामने रख सुदर्शन जी लिखती हैं –
“तब निकलते हैं अथाह मोती/ विष और अमृत के पात्र/ विष कवि
स्वयं पीता है, अमृत
बाँटता है/
दर्द वह सहता है/ तभी तो होता है कविता का जन्म” (कविता का
जन्म)।
जीवन की क्षणभंगुरता को प्रतीकात्मक रूप से प्रकट करते हुए
सुंदर कविता देखिए –
“नादान माना कहाँ/ हठीला था/ अपनी ही करता गया/ हश्र तो
होना था/
मिट्टी से जन्मा था/ मिट्टी में मिल गया” (हश्र तो होना
था)।
स्त्री हमेशा दूसरों के अनुरूप ढलती रहती है,
सहती रहती है। दूसरे का नाम, दूसरे का घर अपना लेती है। पर कभी तो वह खुद की अहमियत भी
जान ही लेती है –
“जीती रही गुमनाम ज़िंदगी/ पर कब तक/ वह जगी/ और उसने बना
ली/
अपने चारों ओर पक्की दीवार/ जिस पर कील ठोकना भी मुमकिन न
था” (वज़ूद)।
कवयित्री आशावादी चिंतन के साथ रचनाधर्मिता निभाते हुए
लघुता में ही सार्थकता, समष्टि और व्यापकता तक पहुँच जाती हैं। कला शिल्प की दृष्टि से सरलता में
गहनता से अपनी बात कहना रत्नाकर जी की विशिष्टता है। भाव-सौष्ठव प्रधान रचनाओं से
सुसज्जित यह लघुकविता संग्रह साहित्य जगत में अपना विशिष्ट स्थान बनाएगा,
ऐसा मुझे पूर्ण विश्वास है।
***
पुस्तक : बोलो न निर्झर(लघुकविता संग्रह), लेखिका : सुदर्शन रत्नाकर,
प्रकाशक : अयन प्रकाशन, नई दिल्ली, मूल्य : ₹320, पृष्ठ : 118
नीरू मित्तल ‘नीर’
कोठी नंबर 40
सेक्टर 15
पंचकूला 134 113
9878
779 743
सटीक एवं सुंदर विश्लेषण। हार्दिक बधाई एवं आभार नीरू मित्तल जी।
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