कोलकाता में हुए घृणित नृशंस कांड पर एक रचना
हे तेजोमयी माँ !!!!
सुरेश चौधरी
हे तेजोमयी माँ !!!!
समग्र तेजों को समन्वित कर
बनी तू तेजस्विता...
हे नारी शक्ति स्वरूप महिषासुर मर्दनी
क्या तेरी शक्ति का समापन हो चुका है।
जलाशय के नीलोत्पल
जिन्हें अर्पित कर कर तुझे पूजा
वे नील शतदल क्या
तुम्हें अपने आगोश में ले चुके हैं।
तुम्हें पुनः आना ही होगा माँ
रक्तबीज, शुम्भ-निशुम्भ,
महिषासुर से नर पिशाच
पुनः आ तेरी सृष्टि को विकृत कर रहें है
ये तुम्हें हर दिन विसर्जित करने का प्रयत्न कर रहे हैं।
तेरे नव-रूप का हर दिन हनन कर रहे हैं।
हे शैलसुता
तेरी बेटियाँ प्रतिदिन
हवस वासना के घृणित कृत्य से आतंकित है
हे ब्रह्मचारिणी
तेरा ब्रह्म तेज ले आ
और तेरी बालिकाओं को बचा
हे कुष्मांडा
रक्षा कर तेरे गर्भ से उत्पन्न हुई
दुर्गाएँ प्रतिदिन आहत की जा रही हैं
और नृशंस हत्या पर
दैत्य शुम्भ अट्टहास करता है
आज हर दानव यह दु:साहस करता है ।
माता ! स्कन्द माता तू
देख रक्त रंजित पुत्री सिसक रही है
आज उसके अंजर पंजर
इधर उधर बिखरे पड़े हैं
और दिख रहा है
नारी का जलता वज़ूद
एक वितृष्णा
एक घृणा ।
हे सिद्धि दात्री
हे काल रात्री
काल के भाल पर
सिंदूर लगा या लगा
रक्त
यह रक्त रंजित क्रीडा
नारी की अथाह पीड़ा
इस रक्त सिंदूर को
मत मिटाओ
तुम्हें विसर्जित होना है,
तो हो जा और विसर्जित कर
साथ में
उन दानवों को
जो नारी अस्मिता को
भोग्य समझ
भारतीय संस्कृति को रसातल ले जा रहे हैं
संहार कर माँ
महिषासुर का
रक्तबीज का
शुम्भ-निशुम्भ का।
मुक्ति दिला
मुक्ति दात्री
इन नर पिशाचों से।
सुरेश चौधरी
एकता हिबिसकस
56 क्रिस्टोफर रोड
कोलकाता 700046
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