शनिवार, 31 अगस्त 2024

कविता

धरती को ‘आया’ कहने का मतलब....

विमलकुमार चौधरी

 

सभ्यता का लेप लपेटे

दो-धारी चाल में चलते

मानव की तरह

हम नहीं है

कभी थे भी नहीं 

जंगल, पत्थर, पहाड़ ,पेड़, पत्तियाँ,

हल, बैल, खेत, कंद, पवन, औज़ार,

और भी बहुत कुछ.....  

साथी हम सबके

एक दूसरे से ; एक दूसरे के

भीतर छिपी बे-दागी को

आप जान नहीं पाओगे

धरती को ‘आया’ कहने का मतलब

सभ्य मानव तुम

नहीं समझ पाओगे...

हमारे पुरखे अपनी आदिवासियत

पहचान की ख़ातिर लड़ते रहें

वर्षों से,

संघर्षों की तपिश को तरासता

उस ‘बिरसा’ को

तुम जान नहीं पाओगे...

धरती को ‘आया’ कहने का मतलब

तुम सभ्य मानव

नहीं समझ पाओगे....

काश ! तुम समझ पाते,

अपने ही जमीन-जंगलों से,

खदेड़ना का दर्द

धरती से बिछोह का दुःख

पेड़, पत्ती और पंक्षियों के

स्पर्श का प्रेम

ज़मीर की क़ीमत को

तुम सभ्य मानव

काश समझ पाते

धरती को ‘आया’ कहने का मतलब,

तुम नहीं समझ पाओगे...

 


विमलकुमार चौधरी

पीएच.डी. शोध छात्र

स्नातकोत्तर हिंदी विभाग

सरदार पटेल विश्वविद्यालय, वल्लभविद्यानगर


2 टिप्‍पणियां:

  1. तुम सभ्य मानव
    काश समझ पाते
    धरती को ‘आया’ कहने का मतलब,
    तुम नहीं समझ पाओगे...
    वाह ! विमल भाई बहुत सुंदर एवं भावपूर्ण कविता। आदिवासियों का जीवन एवं जल-जंगल-जमीन से प्यार को काश सभ्य मानव समझ पाते...!

    जवाब देंहटाएं
  2. बढ़िया प्रस्तुति.. खूब खूब अभिनंदन 👍🏻

    जवाब देंहटाएं

सितंबर 2024, अंक 51

शब्द-सृष्टि सितंबर 202 4, अंक 51 संपादकीय – डॉ. पूर्वा शर्मा भाषा  शब्द संज्ञान – ‘अति आवश्यक’ तथा ‘अत्यावश्यक’ – डॉ. योगेन्द्रनाथ मिश्र ...