शनिवार, 31 अगस्त 2024

कविता

मिट्टी के चूल्हे

डॉ. सुषमा देवी

मिट्टी के चूल्हों पर प्यार तभी तक पकता था

मन से मन का नाता तभी तक जुड़ता था

जब

गहराई प्रेम की न नापी जाती थी

निःस्वार्थ प्रीत की जलती रहती बाती थी

अदहन जब दाल की बटलोई में खदकता था

अहरे पर रख कर भात भी बगल में पकता था

कोई तरकारी मिलकर काटी जाती थी

फिर उसमें प्यार का तड़का थोड़ा लगता था

तावे पर बरसाती पानी के छीटें पड़ते थे

रोटी पर चिट्टे संग छींटें भी सजते थे

सब मिल कर भोजन का आनंद उठाते थे

बातों की छोर न कोई पाते थे

गुड़ की भेली भी सबको अंत में मिलती थी

जीवन की मिठास सभी में घुलती थी।

 



डॉ. सुषमा देवी

एसोसिएट प्रोफेसर, हिंदी विभाग

बद्रुका कॉलेज, काचीगुडा, हैदराबाद-27, तेलंगाना.

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