‘रंगभूमि’ (प्रेमचंद)
डॉ.
सुपर्णा मुखर्जी
हिंदी
उपन्यास विधा आधुनिक साहित्य की देन है। हिंदी उपन्यास साहित्य पर बांग्ला और
अंग्रेजी उपन्यासों के स्पष्ट प्रभाव को देखा जा सकता है। अपने कथा-तत्व की
प्रमुखता की दृष्टि से उपन्यास की भारतीय परंपरा भी अत्यंत प्राचीन है। भारतीय
पुराणों,
वेदों,
रामायण,
महाभारत आदि में एक नहीं अनेक कथाओं को देखा जा सकता है। ये भारतीय उपन्यास विधा
के प्राचीन रूप को दर्शाते हैं। उपनिषद की कथाएँ उपन्यास से कम नहीं है। दंडी का
दशकुमार चरित्र तथा बाणभट्ट की कादंबरी भी अपने ढंग से उपन्यास ही है। दूसरे
शब्दों में अगर यह कहा जाए कि प्राचीन भारतीय साहित्य में उपन्यास कहलाने के लिए
जितने गुण चाहिए वह सब है तो इसमें कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी।
हिंदी
उपन्यास साहित्य में प्रेमचंद का आगमन एक नई चेतना लेकर आता है। प्रेमचंद ने अपने
उपन्यासों के द्वारा राष्ट्रीय आंदोलन,
राष्ट्रीय चेतना को संगठित रूप प्रदान किया था। प्रभा से लेकर गोदान तक के
उपन्यासों में वे क्रमश: आदर्श से यथार्थ की ओर अग्रसर होते दिखाई पड़ते हैं। प्रेमचंद
ने बेधड़क कहा, ‘मुझे
वह कहने में हिचक नहीं कि मैं और चीजों की तरह कला को भी उपयोगिता की तुला पर
तोलता हूँ,
क्योंकि जो दलित हैं,
पीड़ित हैं,
वंचित हैं- चाहे यह व्यक्ति हो या समूह,
उसकी हिमायत और वकालत करना, साहित्यकार
का फर्ज है’।1
वे
यह भी मानते हैं कि, ‘वही
साहित्य चिरायु हो सकता है जो मनुष्य की मौलिक-प्रवृत्तियों पर अवलंबित हो।
ईर्ष्या और प्रेम,
क्रोध और लोभ,
भक्ति और विराग,
दुख और लज्जा,
ये भी हमारी मौलिक प्रवृत्तियाँ हैं,
इन्हीं की छटा दिखाना साहित्य का परम उद्देश्य है और बिना उद्देश्य के तो कोई रचना
हो ही नहीं सकती’।2
उनकी
यह मान्यता उनके उपन्यासों में स्पष्टतया दृष्टिगोचर होती है। उनकी इस मान्यता को उनके
सभी उपन्यासों के ही समान ‘रंगभूमि’
उपन्यास में भी देखा जा सकता है। काशी के बाहरी भाग में बसे पांडेपुर गाँव को
प्रेमचंद ने ‘रंगभूमि’
की पृष्ठभूमि बनाया था। ग्वाले,
मजदूर,
गाड़ीवान और खोमचेवालों की इस गरीब बस्ती में एक गरीब और अंधा चमार रहता है-सूरदास।
वह है तो भिखारी परंतु पुरखों की 10 बीघा धरती भी उसके पास है,
जिसमें गाँव के ढोर चरते-विचरते हैं। सामने ही एक खाल का गोदाम है,
जिसका आढ़ती है एक ईसाई- जॉन सेवक। वह सिगरा मुहल्ले का निवासी है। इस ज़मीन पर उसकी
बहुत दिनों से निगाह है,
वह इस पर सिगरेट का कारख़ाना खोलना चाहता है। सूरदास किसी भी तरह अपने पुरखों की
निशानी उस धरती को बेचने के लिए जब राजी नहीं होता तो जॉन सेवक अधिकारियों से
मेल-जोल का सहारा लेकर उसे हिलाने की योजना बनाता है’।3
सूरदास के जमीन न बेचने की इच्छा और जॉन सेवक के किसी भी प्रकार से जमीन हड़प लेने
की इच्छा के बीच में ही अनगिनत कहानियों का जन्म होता है। ये कहानियाँ केवल कहानी
नहीं बल्कि मानव जीवन का दर्पण ही है। प्रेमचंद ने स्वयं ही लिखा है,
‘Life is a stage’.4
इसी कारण से उन्होंने अपने उपन्यास का नाम ‘रंगभूमि’
रखा है। जीवन हो? और उसमें समस्याएँ न हो?
ऐसा कैसे हो सकता है? ‘रंगभूमि’
में अनेकों प्रकार की समस्याएँ है लेकिन फिर भी यह उपन्यास बोझिल नहीं है। कथानक
को रोचक और उत्सुकतापूर्ण बनाने के लिए प्रेमचंद जी ने नाटकीय प्रसंगों और
कौतूहलपूर्ण घटनाओं को उपन्यास में लगातार स्थान प्रदान किया है। ‘रंगभूमि’
की कथावस्तु में अनेकों पेचीदगियों,
उलझनों तथा अनेकों बाधाओं को देखा जा सकता है किंतु कथावस्तु का प्रवाह कहीं रूका
नहीं हुआ है। ‘रंगभूमि’
की कथावस्तु में उस समय के संपूर्ण भारतीय समाज को देखा जा सकता है। ‘जीवन
के अधिक से अधिक जीतने रूपों को चित्रित करना संभव हो सकता था,
कथाकार ने उस सभी को अभिव्यक्त करने का पूर्ण प्रयत्न किया है- “इसमें
हमें विश्व के तीन बड़े धर्म (हिंदू,
मुसलमान एवं ईसाई),
तीन वर्ग (पूँजीपति,
वर्ग,
मध्यम वर्ग और निम्न वर्ग) तथा मानवीय जीवन की तीन अवस्थाओं में चित्रित पात्र
(वृद्ध- जॉन सेवक,
युवक-विनय,
शिशु-ईसू) उपलब्ध होते हैं”।
मूल विषय औद्योगीकरण की लपेट में और भी बहुत सी समस्याएँ उठी हैं,
जिनका विशद स्वरूप उपन्यासकार ने प्रस्तुत किया है’।5
प्रेमचंद
के उपन्यासों की विश्व प्रसिद्धि का कारण यही है कि सीधी-साधी जनभाषा में प्रेमचंद ने
बड़ी से बड़ी समस्या को रेखांकित किया है। प्रेमचंद अपनी इसी विशेषता के कारण आज भी
प्रासंगिक हैं। ‘रंगभूमि’
की बहुत बड़ी समस्या थी औद्योगीकरण बनाम कृषि सभ्यता। यह समस्या आज भी व्याप्त है।
आज भारत के पास कश्मीर से कन्याकुमारी को जोड़नेवाली हाईवे है,
गंगा नदी के नीचे से भागनेवाली मेट्रो है,
वंदे भारत एक्स्प्रेस है लेकिन स्वच्छ नदियाँ,
हरित वातावरण,
कृषकों के चेहरे की मुस्कान का कोई अतापता नहीं है। ‘रंगभूमि’
की दूसरी समस्या धार्मिक है। सोफिया और विनयसिंह जैसे चरित्र आज भी हमारे आसपास
है। धर्म का उद्देश्य होता है मनुष्य को मानवता के साथ जोड़ना,
उसे शांति प्रदान करना लेकिन धर्म के ठेकेदार ही सबसे अधिक मनुष्य से अमानुषिक काम
करवाते हैं। पशु बलि प्रथा से लेकर सती
प्रथा जैसी अनेकों उदाहरण हमारे समक्ष मौजूद है। कहने को तो मनुष्य अंतरिक्ष तक
पहुँच गया है लेकिन धरती का सीना धार्मिक युद्धों के कारण से लहूलुहान है। राजनैतिक
समस्या ‘रंगभूमि’
के भारत से लेकर वर्तमान भारत तक की समस्या है। जनता तब भी लाचार थी,
अब भी लाचार है। तब पराधीनता को लोक दोष देते थे,
अब राजनेताओं को दोष देते है। जनता को अपनी शक्ति का आभास ही नहीं है। अनुकरण करना
गलत नहीं है लेकिन अंधानुकरण अवश्य ही दोष है। पाश्चात्य संस्कृति और सभ्यता का
अंधानुकरण करना भारतीय समाज का शौक रहा है। यह शौक आज भी जीवित है। प्रेमचंद ने
केवल ‘रंगभूमि’
में ही नहीं अपनी सभी रचनाओं में इस शौक पर व्यंग्य किया है। सूरदास के माध्यम से
प्रेमचंद ने भारतीय समाज को अपनी पहचान को बनाए रखने के लिए किसी भी प्रकार के
बलिदान को देने के लिए तैयार रहने की बात ही समझाई है। तभी तो डॉ. इंद्रनाथ मदान
ने लिखा है, ‘प्रेमचंद
की कला का मूल उद्देश्य न तो चरित्र चित्रण है और न वस्तु-संगठन,
वरन सुधार है। साहित्य के दो कार्य हैं- एक जीवन की व्याख्या करना और दूसरा जीवन
को परिवर्तित करना। प्रेमचंद पिछले पर अधिक ज़ोर देते हैं’।6
निष्कर्ष
रूप में यह कहना गलत न होगा कि प्रेमचंद ने मानव जीवन की समस्याओं का गहन अध्ययन
किया था। इसी कारण से उनकी रचनाओं का चित्रपट भी विशाल था। यही प्रेमचंद को आज भी
प्रासंगिक बनाए रखे हुए है।
संदर्भ
सूची
1 रंगभूमि उपन्यास (समीक्षा एवं व्याख्या), लेखक- डॉ. जगदीश माथुर, पृष्ठ संख्या- 9
2 रंगभूमि उपन्यास (समीक्षा एवं व्याख्या), लेखक- डॉ. जगदीश माथुर, पृष्ठ संख्या- 9
3 रंगभूमि उपन्यास (समीक्षा एवं व्याख्या), लेखक- डॉ. जगदीश माथुर, पृष्ठ संख्या- 2
4 रंगभूमि उपन्यास (समीक्षा एवं व्याख्या), लेखक- डॉ. जगदीश माथुर, पृष्ठ संख्या-11
5 रंगभूमि उपन्यास (समीक्षा एवं व्याख्या), लेखक- डॉ. जगदीश माथुर, पृष्ठ संख्या-6
6 रंगभूमि उपन्यास (समीक्षा एवं व्याख्या), लेखक- डॉ. जगदीश माथुर, पृष्ठ संख्या-11
संदर्भ
ग्रंथ
रंगभूमि
उपन्यास (समीक्षा एवं व्याख्या), लेखक-
डॉ. जगदीश माथुर, हरीश
विश्वविद्यालय प्रकाशन, आगरा-282010, मूल्य-75
डॉ.
सुपर्णा मुखर्जी
सहायक
प्राध्यापक,
हिंदी
भवंस
विवेकानंद कॉलेज
सैनिकपुरी
हैदराबाद
केंद्र- 500094
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