डॉ. योगेन्द्रनाथ मिश्र
‘पर्यायता’ शब्द और अर्थ के संबंध की एक अवधारणा है। विश्व की सभी भाषाओं
में शब्द और अर्थ का संबंध तीन रूपों में व्यक्त होता है - (1) एक शब्द एक अर्थ - अर्थात् एकार्थता; (2) एक शब्द अनेक अर्थ - अर्थात् अनेकार्थता; (3) एक अर्थ अनेक शब्द - अर्थात् पर्यायता।
संप्रेषण-क्रिया और बोधगम्यता की दृष्टि से एकार्थता एक आदर्श स्थिति
है। इसमें किसी प्रकार के भ्रम की गुंजाईश नहीं रहती। परंतु ऐसी स्थिति आज की भाषाओं
में नहीं पाई जाती। ऐसी स्थिति आदिम मानव की भाषाओं में भले ही रही हो।
पर्यायता अनेकार्थता की विपरीत स्थिति है। अनेकार्थता में एक
शब्द के अनेक अर्थ होते हैं, जबकि पर्यायता में एक अर्थ के लिए अनेक शब्द होते हैं। कई शब्द
जब एक ही अर्थ व्यक्त करते हैं, तब वे एक-दूसरे के पर्याय कहे जाते हैं।
परंतु यहीं प्रश्न यह उठता है कि ‘अर्थ’ क्या चीज है? यह बहुत मुश्किल प्रश्न है, जिसका सटीक उत्तर अभी तक नहीं मिल सका है। इसका कारण यह है कि ‘शब्द’ की सत्ता भौतिक है, जबकि ‘अर्थ’ की सत्ता मानसिक है। शब्द
को हम बोलते हैं; सुनते हैं; लिखते हैं; पढ़ते हैं। परंतु अर्थ
तो वक्ता-श्रोता तथा लेखक-पाठक के मन में स्थित होता है। शब्द
के स्वरूप यानी उसके आकार-प्रकार का स्पष्ट बोध संभव है; लेकिन अर्थ के साथ ऐसा नहीं है।
किसी शब्द का अर्थ उसके प्रयोग से या संदर्भ से निर्धारित होता
है - स्पष्ट होता है। किसी
शब्द का अर्थ कोई पूछता है, तब हम कहते हैं कि इसका प्रयोग कहाँ हुआ है? संदर्भ के बिना किसी शब्द
का पूरा अर्थ बताना प्रायः मुश्किल होता है। इसी लिए शब्द प्रयोगधर्मी माने गए हैं।
किसी शब्द का पूर्ण अर्थ जानने के लिए उसके प्रयोग के सारे संदर्भों
का ज्ञान आवश्यक है; परंतु शब्द के प्रयोग के सारे संदर्भों को जानना संभव नहीं है। शब्द के प्रयोग
के सारे संदर्भों की कोई सीमा नहीं होती। इसी लिए भाषा-चिंतक यह मानते है कि किसी भी भाषा में पूर्ण पर्यायता की स्थिति
नहीं होती। पूर्ण पर्यायता के लिए आवश्यक है कि कोई शब्द जितने संदर्भों में प्रयुक्त
होता है, उन सारे संदर्भों में
उसका पर्याय शब्द प्रयुक्त हो सके। परंतु ऐसा होता नहीं है। कोई शब्द अपने पर्याय के
प्रयोग के कुछ ही संदर्भों में प्रयुक्त हो सकता है। ‘मनुष्य’ और ‘आदमी’ शब्द हिन्दी में पर्याय माने जाते हैं। ‘मनुष्य को जीने के लिए
हवा-पानी की सबसे अधिक जरूरत है।’ तथा ‘आदमी को जीने के लिए हवा-पानी की सबसे अधिक जरूरत है।’ ये दो वाव्य हैं। इन दोनों
वाक्यों में ‘आदमी’ और ‘मनुष्य’ शब्द एक-दूसरे के स्थान पर प्रयुक्त हुए हैं।
परंतु ‘आदमी बनो’ को ‘मनुष्य बनो’ नहीं कह सकते।
पर्यायता दो प्रकार की होती है - पूर्ण पर्यायता तथा अपूर्ण पर्यायता। पूर्ण पर्यायता की स्थिति
विश्व की लगभग सभी भाषाओं में बहुत कम पाई जाती है। पूर्ण पर्यायता वाले शब्द प्रायः
सभी संदर्भों में स्थानापन्न हो सकते हैं। रोग-बीमारी, बुखार-ज्वर, भीगा-गीला, आज्ञा-आदेश, खाना-भोजन, सब्जी-तरकारी, संतरा-नारंगी, कद्दू-सीताफल, कठिन-मुश्किल जैसे युग्म पूर्ण पर्यायता के उदाहरण कहे जा सकते हैं।
ज्यादातर शब्द अपूर्ण पर्याय होते हैं। वे एक-दूसरे के अर्थ को पूरी तरह से आच्छादित
नहीं कर सकते।
अब गौर करने की बात यह है कि जो शब्द ऊपर से पूर्ण पर्याय लगते
हैं, उनमें भी सूक्ष्म अर्थ-भेद पाए जाते हैं। ऐसे अर्थ-भेद के पाँच वर्ग बनाए जा सकते हैं - 1. क्षेत्रीय या बोलीगत भेद, 2. शैलीगत भेद, 3. मूल्यपरक या सांस्कृतिक
भेद, 4. सहप्रयोगात्मक प्रतिबंध
संबंधी भेद, 5. व्यातिप्तगत भेद।
बहुत से ऐसे शब्द होते हैं, जो पूर्ण पर्याय लगते हैं; परंतु उनमें बोलीगत भेद होता है। वे एक ही भाषा-क्षेत्र के अलग-अलग हिस्सों में बोले जाते हैं। जैसे - ऊँख-गन्ना, नेनुवा-घेंवड़ा, अरवी-घुइयाँ, बैगन-भंटा, भिंडी-रामतरोई, कद्दू-सीताफल आदि।
शैलीगत भेद के बहुत से उदाहरण हिंदी में उपलब्ध होते हैं। जैसे - पुस्तक-किताब, मेहनत-परिश्रम, आरंभ-शुरुआत, अपराध-गुनाह, उन्नति-तरक्की, लाभ-फायदा, हानि-नुकसान आदि।
पिता या महिला का प्रयोग गरिमा का बोध कराता है; जबकि बाप या औरत का प्रयोग
बहुत साधारणता का या तुच्छता का बोध कराता है। इसी तरह पानी सामान्य प्रयोग है; जबकि जल पवित्रता के भाव
से जुड़ा हुआ है। इसे मूल्यपरक भेद कहा जाता है।
‘भोजन’ और ‘खाना’ वैसे पूर्ण पर्याय कहे जा सकते हैं; परंतु ‘भोजन’ के साथ ‘करना’ क्रिया का तथा ‘खाना’ के साथ ‘खाना’ क्रिया का ही प्रयोग होगा - भोजन करना तथा खाना खाना। इसी तरह लाभ-हानि, फायदा-नुकसान का प्रयोग हम लाभ-नुकसान या फायदा-हानि के रूप में नहीं करते। ऐसा सहप्रयोगात्मक प्रतिबंध के कारण
होता है।
इनके अलावा सबसे ज्यादा संख्या उन शब्दों की है, जो एक-दूसरे के अर्थ-क्षेत्र को ‘ओवरलैप’ करते हैं। जैसे - 1. रवि-भानु-आदित्य-दिनकर-दिनेश-दिवाकर-भास्कर-सविता-मार्तंड-प्रभाकर; 2. चंद्रमा-चंद्र-निशाकर-राका-रजनीश-कलाधर-राकेश आदि। ये सभी शब्द एक-दूसरे के पूर्ण पर्याय भले लगते हों; परंतु ऐसा है नहीं। ये सभी एक-दूसरे को ‘ओवरलैप’ करते हैं।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें