शनिवार, 29 जून 2024

अर्थ-विचार

 


विलोमता

डॉ. योगेन्द्रनाथ मिश्र

अर्थ के आधार पर शब्दों के बीच दो प्रकार के संबंध होते हैं - 1. अनुलोमता का संबंध तथा 2. विलोमता का संबंध। समान अर्थ वाले शब्दों के बीच अनुलोमता संबंध होता है तथा असमान यानी विपरीत अर्थ वाले शब्दों के बीच विलोमता संबंध होता है। परस्पर विरोधी या विपरीत अर्थ वाले शब्द विलोम कहे जाते हैं। इसी तरह विलोम शब्दों के बीच तीन प्रकार के संबंध देखने को मिलते हैं

1. परिपूरकता का संबंध,

2. प्रतिलोम संबंध,

3. स्तरीकृत संबंध।

परिपूरकता का संबंध उन शब्दों के बीच होता है, जिनमें एक शब्द का अभाव दूसरे शब्द का भाव (मौजूदगी) व्यक्त करता है तथा दूसरे शब्द का भाव पहले शब्द का अभाव व्यक्त करता है। जैसे - जीवित-मृत, प्रकाश-अंधकार। अगर कोई जीवित है, तो वह मृत नहीं हो सकता और मृत है, तो जीवित नहीं हो सकता; अर्थात् एक का भाव (अस्तित्व) दूसरे के अभाव पर निर्भर है। इसमें दो ही संभावनाएँ बनती हैं। एक है तो दूसरा नहीं। प्रकाश है, तो अंधकार नहीं, अंधकार है, तो प्रकाश नहीं। दोनों एक साथ नहीं हो सकते। इसी तरह से और भी उदाहरण देखे जा सकते हैं - विवाहित-अविवाहित, सुख-दुख, दिन-रात, हानि-लाभ आदि।

प्रतिलोम संबंध उन शब्दों के बीच होता, जिनमें सापेक्ष संबंध होता है; अर्थात् एक की वजह से दूसरे का अस्तित्व होता है। एक के होने के लिए दूसरे का होना जरूरी होता है। जैसे - पति-पत्नी, आगे-पीछे, ऊपर-नीचे, दायें-बायें, खरीदना-बेचना, कहना-सुनना आदि। कोई पति तभी कहा जाएगा, जब उसकी कोई पत्नी होगी; कोई ऊपर तभी है, जब कोई उसके नीचे हो। एक अकेला न नीचे हो सकता है, न ऊपर।

स्तरीकृत संबंध वाले शब्द वास्तविक विलोम कहे जाते हैं। इस संबंध से जुड़े दो शब्द दो छोरों का काम करते हैं। उन दोनों के बीच विरोध के कई स्तर पाए जाते हैं, जहाँ प्रत्येक स्तर पर विरोध प्रकट होता है। सबसे बड़ी बात यह है कि इनके बीच विरोध या अंतर का कोई न कोई प्रतिमान पाया जाता; और उस प्रतिमान में भी कई स्तर होते हैं। साथ ही एक प्रतिमान को दूसरी जगह नहीं ले जाया जा सकता। इसी लिए हाथी और खरगोश के बीच कोई स्तरीकृत विलोमता नहीं होती। स्तरीकृत विलोमता में तुलना का भाव होता है। इसी लिए हाथी की तुलना हाथी से तथा खरगोश की तुलना खरगोश से ही की जा सकती है; क्योंकि हाथी और खरगोश के बीच तुलना का कोई प्रतिमान नहीं है। जैसे - बड़ा-छोटा। इसमें स्तरीकृत विलोमता है। यहाँ बड़ा सिर्फ बड़ा नहीं होता या छोटा सिर्फ छोटा नहीं होता। उसमें भी कम या अधिक बड़ा या कम या अधिक छोटा होने का भाव अंतर्निहित है।चाय गरम हैका विलोम होता हैचाय ठंडी है। परंतु इसका मतलब यह नहीं कि चाय गरम नहीं है। चाय के गरम होने का जो हमारा प्रतिमान है, उससे वह कम गरम है। इसी तरहपानी ठंडा है’, ‘पानी अधिक ठंडा है’, ‘पानी बहुत अधिक ठंडा हैतथापानी गरम है’, ‘पानी अधिक गरम है’ ‘पानी बहुत अधिक गरम है। इन उदाहरणों से स्तरीकृत विलोमता सरलता से समझी जा सकती है।

हिंदी में विलोम शब्दों के युग्म दो प्रकार के होते हैं

1. मूल शब्दों के युग्म तथा

2.यौगिक (व्युत्पन्न) शब्दों के युग्म (यौगिक यानी उपसर्ग, प्रत्यय से निर्मित)। राग-द्वेष, जड़-चेतन, नया-पुराना, रात-दिन, आकाश-पाताल (मूल शब्दों के युग्म); सत्य-असत्य, उचित-अनुचित, पूर्ण-अपूर्ण, सुपात्र-कुपात्र (अपात्र), चरित्रवान्-चरित्रहीन, कृतज्ञ-कृतघ्न (यौगिक शब्दों के युग्म)

डॉ. योगेन्द्रनाथ मिश्र

 

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