हिंदी
में शब्दों के लिंग की पहचान के नियम :
डॉ. योगेन्द्रनाथ मिश्र
सवाल
उठता है कि हिंदी में शब्दों के लिंग की पहचान कैसे होती है कि कौन-सा
संज्ञा शब्द किस लिंग में है?
हिंदी
में ऐसा कोई नियम या उपाय नहीं है, जिससे
उसके सारे शब्दों के लिंग की पहचान सरलता से हो सके। इस मामले में अंग्रेजी भाषा के
नियम बहुत ही सरल हैं। अंग्रेजी में प्राणीवाचक सभी संज्ञाएँ पुल्लिंग/स्त्रीलिंग
में होती हैं तथा अप्राणीवाचक अर्थात् निर्जीव पदार्थों की बोधक संज्ञाएँ नपुंसकलिंग
में होती हैं। प्राणीवाचक में भी जिस संज्ञा शब्द से भौतिक जगत के पुरुष
(नर) प्राणी
का बोध होता है, उसे
पुल्लिंग (मैस्कुलाइन
जेंडर) कहा
जाता है, जिस
संज्ञा शब्द से भौतिक जगत के स्त्री (मादा)
प्राणी का बोध होता है,
वह स्त्रीलिंग
(फेमिनाइन जेंडर)
कहा जाता है। जो प्राणीवाचक शब्द पुरुष-स्त्री
दोनों के लिए प्रयुक्त होते हैं, उन्हें
उभयलिंग (कॉमन
जेंडर) कहा
जाता है। ऐसे में अंग्रेजी में किसी प्रकार की दुविधा की गुंजाईश नहीं रहती। वहाँ शब्दों
के लिंग के निर्धारण या पहचान एकमात्र आधार है अर्थ;
यानी भौतिक जगत या मनोजगत में विद्यमान पदार्थ।
परंतु
हिंदी में ऐसी स्थिति नहीं है। हिंदी में ऐसा कोई नियम नहीं है,
जिससे उसके सभी संज्ञा शब्दों का लिंग-निर्धारण
सरलता से किया जा सके।
हालाँकि
पंडित कामताप्रलाद गुरु से लेकर आज तक के व्याकरण लेखकों ने शब्दों के लिंग की पहचान
के लिए कुछ नियम सुझाए हैं। वैसे उन्हें नियम नहीं कहा जा सकता। सिर्फ सौ-पचास
शब्दों को अर्थ के आधार पर वर्गीकृत रूप में सूचीबद्ध किया गया है। जैसे
- पहाड़ों के नाम पुल्लिंग/नदियों
के नाम स्त्रीलिंग/अनाजों
के नाम पुल्लिंग/रत्नों
के नाम पुल्लिंग/शरीर
के अंगों के नाम पुल्लिंग/धातुओं
के नाम पुल्लिंग/पेड़ों
के नाम पुल्लिंग/दिनों
के नाम पुल्लिंग/महीनों
के नाम पुल्लिंग/ग्रहों
के नाम पुल्लिंग/तिथियों
के नाम स्त्रीलिंग/व्यंजनों
(खाद्य पदार्थ) के
नाम स्त्रीलिंग ...।
साथ ही बड़ी संख्या में उनके अपवाद भी दिए गए हैं।
फिर
भी, कुछ सुनिश्चित आधोरों पर थोड़े
नियम अवश्य बनाए जा सकते हैं, जिनसे
बहुत सारे शब्दों के लिंग की पहचान हो सरलता से हो सकती है
-
1.
शब्द के अर्थ के आधार पर।
2.
शब्द की आकृति के आधार पर।
3.
शब्द की रचना के आधार पर।
4.
बहुचवन बनाने वाले प्रत्ययों के अधार पर
1.
शब्द के अर्थ के आधार पर :
सामान्यतः
प्राणीवाचक शब्दों के लिंग की पहचान उनके अर्थ के आधार पर की जा सकती है।
एक
सामान्य नियम के अनुसार, भौतिक
जगत में, जिन
प्राणीवाचक शब्दों से पुरुष (नर)
का बोध होता है,
उन्हें पुल्लिंग तथा जिन शब्दों से स्त्री
(मादा) का
बोध होता है, उन्हें
स्त्रीलिंग कहा जाता है। जैसे :
पुल्लिंग
: पुरुष,
आदमी, घोड़ा,
गदहा, मोर,
लड़का, पुत्र,
बेटा, हाथी,
शेर, हिरन,
कुत्ता आदि।
स्त्रीलिंग
: स्त्री,
औरत, घोड़ी,
गदही, शेरनी,
लड़की, बेटी,
हथिनी, कुतिया,
मोरनी, पुत्री
आदि।
परंतु
यह नियम उन्हीं प्राणीवाचक शब्दों पर लागू पड़ता है,
जो जोड़े या युग्म के रूप में भाषा में मौजूद हैं। जैसे
- पुरुष-स्त्री,
नर-नारी,
घोड़ा-घोड़ी,
शेर-शेरनी,
लड़का-लड़की,
बेटा-बेटी
मोर-मोरनी,
कुत्ता-कुतिया,
चूहा-चुहिया,
माता-पिता,
पति-पत्नी
... आदि।
परंतु
हिन्दी में थोड़े ऐसे भी प्राणीवाचक शब्द मौजूद हैं,
जो युग्म या जोड़े के रूप में नहीं हैं। एक ही शब्द से पुरुष-स्त्री
(नर-मादा)
का बोध बोता है। एक ही शब्द दोनों के लिए प्रयुक्त होता
है। जैसे - कौआ/कौवा
(पु.), कोयल
(स्त्री.), गीध/गिद्ध
(पु.), चील
(स्त्री.), उल्लू
(पु.), गिलहरी
(स्त्री.), छिपकली
(स्त्री.), मगर/मगरमच्छ
(पु.), मछली
(स्त्री.), जोंक
(स्त्री.), खरगोश
(पु.), भालू
(पु.), भेड़िया
(स्त्री.), चीता
(पु.), मच्छर
(पु.), खटमल
(पु.), जूँ
(स्त्री.) मक्खी
(स्त्री.), चींटी
(स्त्री.), चींटा
(पु.), मैना
(स्त्री.), तीतर
(), बटेर,
तितली, केंचुआ
...।
ये
सभी शब्द (तथा
और भी) प्राणीवाचक
शब्द हैं। परंतु ये सभी एकल शब्द हैं। जोड़े के रूप में नहीं हैं। अर्थात् एक प्रकार
के प्राणी के पुरुष-स्त्री
(नर-मादा)
के लिए अलग-अलग
शब्द नहीं हैं। एक ही शब्द से नर-मादा
दोनों का बोध होता है। ऐसे में अर्थ के आधार पर इसके लिंग की पहचान नहीं हो सकती। जैसे
‘शेर’ शब्द
इसलिए पुल्लिंग है, क्योंकि
पुरुष (नर)
प्राणी का बोध कराता है और
‘शेरनी’ शब्द
इसलिए स्त्रीलिंग है, क्योंकि
वह स्त्री (मादा)
प्राणी का बोध करता है,
वैसी स्थिति ‘चील’,
‘उल्लू’ आदि
शब्दों के साथ नहीं है। कारण कि एक ही शब्द से पुरुष-स्त्री
दोनों का बोध होता है। ‘चील’
शब्द क्यों स्त्रीलिंग है,
इसका जवाब अर्थ के आधार पर नहीं मिल सकता। जैसे
‘शेर शब्द क्यों पुल्लिंग है’
का जवाब मिलता है।
आशय
यह कि ऐसे शब्दों के लिंग की पहचान का आधार प्रयोग है।
ऐसे
शब्दों को पं. कामताप्रसागद
गुरु ने ‘नित्य
पुल्लिंग’ तथा
‘नित्य स्त्रीलिंग’
कहा है। लेकिन यह धारणा सही नहीं है। कारण कि जो युग्म शब्द
हैं, वे भी
‘नित्य पुल्लिंग’
तथा ‘नित्य
स्त्रीलिंग’ हैं।
गुरु जी के अनुसार जैसे ‘उल्लू’
शब्द नित्य पुल्लिंग है,
वैसे ही ‘लड़का’
शब्द भी तो नित्य पुल्लिंग है। क्या
‘लड़का’ शब्द
का प्रयोग कभी आप स्त्रीलिंग में करते हैं?
इन
एकल शब्दों में कुछ ऐसे भी हैं, जो
युग्म होने का भ्रम पैदा करते हैं। जैसे - चींटा-चींटी।
व्याकरण की पुस्तकों में ‘चींटा-चींटी’
के बीच परस्पर पुल्लिंग-स्त्रीलिंग
का संबंध बताया गया है। यानी ‘चींटा’
का स्त्रीलिंग
‘चींटी’।
हम सभी जानते हैं कि ये दोनों अलग-अलग
प्रजातियाँ हैं। दोनों के बीच पुल्लिंग-स्त्रीलिंग
का संबंध कैसे हो सकता है! न
तो ‘चींटा’
शब्द ‘चींटी’
का पुल्लिंग है,
न ‘चींटी’
शब्द ‘चींटा’
शब्द का स्त्रीलिंग है।
यह
भूल एक बड़े कोशकार (अरविंद
कुमार : अरविंद
सहज समांतर कोश) ने
भी की है। ‘चींटा’
का अर्थ उन्होंने
‘बड़ी चींटी’ लिखा
है तथा ‘चींटी’
का अर्थ ‘छोटा
चींटा’ लिखा
है।
2.
शब्द की आकृति के आधार पर :
1.
एक सामान्य नियम के अनुसार हिंदी के ज्यादातर
‘तद्भव’ तथा
‘देशज’ आकारांत
शब्द पुल्लिंग होते हैं तथा ईकारांत ‘तद्भव’
और ‘देशज’
शब्द स्त्रीलिंग होते हैं।
पुल्लिंग
: लड़का,
घोड़ा, लोटा,
थैला, नाला,
गुस्सा, पत्ता,
कपड़ा, चमड़ा,
उजाला, बछड़ा,
रुपया, खजाना,
गाना, तराना,
काफिला, इलाका,
लिफाफा, किनारा,
तमाशा, किराया,
इरादा, आटा,
काँटा, झंडा,
डंडा, कूड़ा,
कोड़ा, धोखा,
झूला, आइना,
किला, कबीला,
कस्बा, दीया,
भौंरा, कंधा,
कंघा, दाना,
इक्का, धक्का,
मुक्का, ताँगा,
तबला, कारखाना,
मुर्गा, फंदा,
धंधा, जंघा,
पहिया, जाँघिया,
दरवाजा, छाता,
नाका, डाका,
कचरा, कोयला,
टोकरा, कुहरा,
घंटा, भाड़ा,
तौलिया, गोला,
बगुला, मेला,
ठेला, रेला,
प्याला, मसाला
आदि।
स्त्रीलिंग
: लड़की,
लकड़ी, छड़ी,
नाली, गाली,
प्याली, रोटी,
लौकी, गोभी,
घोड़ी, मुर्गी,
थैली, कहानी,
कोठी, खिड़की,
कुर्सी, लाठी,
साड़ी, मिठाई,
पत्ती, कंघी,
टोकरी, गोली,
घंटी, चौकी,
बीमारी, आँधी,
झोंपड़ी, नौकरी,
लड़ाई, पडाई,
लिखाई, टोपी,
इमली, उँगली,
सरदी, गरमी,
सब्जी, मर्जी,
दीवाली, होली,
सीढ़ी, पीढ़ी,
खाई, कमाई,
गाड़ी, घड़ी,
जड़ू, बूटी,
खाँसी, खुशी,
फाँसी, चूड़ी,
पूड़ी, खिचड़ी,
कढ़ी, पूँजू,
मूली, जिंदगी,
छुरी, मजबूरी,
कलई, बरफी,
बीड़ी, चाभी,
दाढ़ी, ककड़ी,
बकरी आदि।
परंतु
इनके कुछ अपवाद भी हैं :
(1)
पानी, घी,
जी, दही,
मही, हाथी,
साथी, मोती
- ये सभी ईकारांत होते हुए भी पुल्लिंग हैं।
(2)
हवा, दवा,
सजा, बला,
दगा, दफा
- ये सभी आकारांत होते हुए भी स्त्रीलिंग हैं।
2.
तद्भव ऊकारांत शब्द पुल्लिंग होते हैं :
आलू,
भालू, डाकू,
आँसू, गेहूँ,
कोल्हू, बालू,
डमरू, तमाकू,
चाकू, घुँघरू,
लट्टू, तराजू
आदि।
2.
अकारांत तत्सम शब्द सामान्यतः पुल्लिंग होते हैं। जैसे :
चित्र,
मित्र, अंकन,
अंकुश, काव्य,
कलश, मुख,
सुख, शंख,
बोध, क्रोध,
शोध, प्रबोध,
एकांत, वचन,
कवच, रूप,
रंग, सूर्य,
चंद्र, साधन,
विनियोग, प्रयोग,
संयोग, सरोवर,
अपराध, प्रभाव,
संसार, विश्व,
पालन, पोषण,
नयन, दमन,
विकार, उपा,
विकास आदि।
3.
आकारांत तथा इकारांत तत्सम शब्द हिंदी में सामान्यतः स्त्रीलिंग
में प्रयुक्त होते हैं। जैसे :
सीता,
गीता, रमा,
लता, दशा,
माया, प्रार्थना,
कृपा, लज्जा,
घटना, रचना,
भावना, प्रस्तावना,
वेदना, क्षमा,
शोभा, सभा,
कविता, आशा,
निराशा, कन्या,
भाषा, कथा,
व्यथा, मर्यादा,
शिक्षा, दीक्षा,
भिक्षा, रक्षा,
प्रजा, श्रद्धा,
आज्ञा, अनुज्ञा,
हिंसा, ज्वाला,
मात्रा, यात्रा,
समस्या, मिथ्या,
सूचना, अर्चना,
उषा, चेष्टा,
क्रिया, महिमा,
गरिमा, विद्या,
प्रिया, इच्छा,
माला, योजना,
सेना, वेश्या,
माता, तपस्या
आदि।
रति,
मति, गति,
प्रति, ऋद्धि,
सिद्धि, प्रसिद्धि,
बुद्धि, शुद्धि,
निधि, विधि,
उक्ति, सूक्ति,
मुक्ति, युक्ति,
शक्ति, दृद्धि,
सृष्टि, प्रविष्टि,
पुष्टि, उन्नति,
प्रगति, लिपि
आदि।
अपवाद
: दाता,
विधाता, नेता,
अभिनेता, प्रणेता,
ब्रह्मा, राजा,
कर्ता, भोक्ता,
प्रयोक्ता, विधि
(ब्रह्मा), ऋषि,
कपि, शशि,
रवि, मुनि,
पति, गिरि
आदि।
4.
अकारांत तद्भव,
देशज तथा विदेशी शब्द पुल्लिंग तथा स्त्रीलिंग दोनों में
बड़ी संख्या में हैं -
पुल्लिंग
: अरमान,
अनार, अनाज,
अंधड़, अंगूर,
आँचल, इंतजार,
इन्साफ, इलजाम,
कपूर, कंबल,
कफन, कड़ाह,
कब्ज, करवट,
काजल, काठ,
काँच, गज,
गजट, कोट,
गुलाब, गिलास,
गोंद, गेंद,
चंगुल, चक्कर,
चप्पल, चम्मच,
जेठ, जासूस,
जमाव, जेल,
खेल, झूमर,
डग, तेल,
तेवर, थन,
थल, दफ्तर,
दरबार, देहात,
वजन, सिर,
होटल आदि।
स्त्रीलिंग
: अकड़,
अक्ल, अदालत,
अदावत, अफवाह,
अपील, अफीम,
अरहर, आग,
आफत, ईमद,
इज्जत, उड़ान,
कटार, कतार,
किस्मत, कसम,
कसरत, कोख,
कोयल, खैरात,
खोट, खोज,
खोह, गजल,
गागर, जलन,
जमावट, झंझट,
झील, ट्रेन,
डाल, तबियत,
तोप, दहाड़,
दीवार, दहशत,
दरार, पंचायत,
नींद, पंगत,
नफरत, पतवार,
बरसात, मैल,
बैठक, लकीर आदि।
विशेष
: उकारांत तत्सम संज्ञाएँ पुल्लिंग
तथा स्त्रीलिंग दोनों में होती हैं। इसलिए किसी एक के लिए नियम-निर्देश
नहीं किया जा सकता है :
पुल्लिंग
: मधु,
अश्रु, तालु,
साधु, मेरु,
सेतु, साधु,
हेतु।
स्त्रीलिंग
: वायु,
वस्तु, ऋतु,
मृत्यु, आयु,
धातु।
3.
शब्द की रचना में प्रयुक्त प्रत्ययों के आधार पर :
1.
‘-ता’ प्रत्यय
से बनने वाली भाववाचक संज्ञाएँ सदा स्त्रीलिंग में होती हैं :
सुंदरता,
कुरूपता, लघुता,
दीर्घता, विशालता,
कटुता, मृदुता,
महत्ता, अधिकता,
कृत्रिमता, नवीनता,
पुरातनता, प्राचीनता,
आधुनिकता, पवित्रता,
नीचता, महानता,
सरसता, नीरसता,
उष्णता, शीतलता,
कृशता, निर्बलता,
सबलता, उच्चता
आदि।
2.
‘-त्व’ प्रत्यय
के योग से बनने वाली भाववाचक संज्ञाएँ सदा पुल्लिंग में होती हैं :
समत्व,
लघुत्व, गुरुत्व,
देवत्व, दीर्घत्व,
महत्त्व, कवित्व,
सतीत्व, सत्त्व,
पुरुषत्व, स्त्रीत्व,
पशुत्व, व्यक्तित्व,
बंधुत्व, अपनत्व
आदि।
3.
‘-आई’ प्रत्यय
से बने शब्द (भाववाचव
संज्ञाएँ) सदैव
स्त्रीलिंग में होते हैं :
लिखाई,
पढ़ाई, कताई,
बुनाई, कटाई,
चढ़ाई, उतराई,
सिलाई, कमाई,
पिसाई, लंबाई,
चौड़ाई, मोटाई,
ऊँचाई, गहराई,
भलाई, बुराई
आदि।
4.
‘-नी’, ‘-इन’,
‘-आनी, ‘-आइन’
प्रत्यों से बनी संज्ञाएँ स्त्रीलिंग में होती हैं :
शेरनी,
मोरनी, चोरनी,
भीलनी, ऊँटनी,
डाकिनी, धोबिन,
तेलिन, चमारिन,
जमादारिन, लुहारिन,
सुनारिन, साँपिन,
देवरानी, जेठानी,
सेठानी, पंडितानी,
नौकरानी, ठकुराइन,
पंडिताइन, मास्टराइन,
डाक्टराइन आदि।
5.
‘-आवट’ तथा
‘-आहट’ प्रत्ययों
से बनी भाववाचक संज्ञाएँ स्त्रीलिंग में होती हैं :
बनावट,
जमावट, मिलावट,
गिरावट, लिखावट,
थकावट, घबराहट,
अकुलाहट, सनसनाहट,
गुर्राहट आदि।
6.
‘-पा’ तथा
‘-पन’ प्रत्ययों
से बनी भाववाचक संज्ञाएँ पुल्लिंग में होती हैं :
बुढ़ापा,
मोटापा, रंडापा,
बचपन, लड़कपन,
छुटपन आदि।
4.
बहुचवन बनाने वाले प्रत्ययों के अधार पर :
हिन्दी
में बहुवचन के पाँच प्रत्यय हैं - -ए,
-आँ, -एँ,
-ओं तथा -ओ।
इनमें ‘-ओ’
संबोधन में आता है।
‘-ओं’ पुल्लिंग
तथा स्त्रीलिंग दोनों प्रकार के शब्दों के साथ जुड़ता है। बाकी के तीन प्रत्ययों में
से ‘-ए’
आकारांत पुल्लिंग शब्दों के साथ जुड़ता है तथा
‘आँ’ और
‘-एँ’ स्त्रीलिंग
शब्दों के साथ जुड़ते हैं।
अर्थात्
‘-ए’, ‘-आँ’
और ‘-एँ’
प्रत्ययों से बने बहुवचन रूपों से भी किसी शब्द के लिंग
की पहचान की जा कसकती है।
जैसे
- गमले, लोटे,
नाले, थैले,
पौधे, कपड़े,
पत्ते जैसे शब्द गमला,
लोटा, नाला,
थैला, पौधा,
कपड़ा, पत्ता
शब्दों के बहुवचन रूप हैं, जो
‘-ए’ प्रत्यय
से बने हैं। बहुवचन बनाने के लिए ‘-ए’
प्रत्यय सिर्फ पुल्लिंग शब्दों के साथ लगता है। ऐसे में
यह निश्चय हो जाता है कि ये सारे शब्द पुल्लिंग हैं।
ऐसे
ही गालियाँ, प्यालियाँ,
रोटियाँ, लौकियाँ,
थैलियाँ, प्रार्थनाएँ,
घटनाएँ, रचनाएँ,
भावनाएँ, निधियाँ,
विधियाँ, उक्तियाँ,
सूक्तियाँ, युक्तियाँ,
शक्तियाँ जैसे शब्द गाली,
प्याली, रोटी,
लौकी, थैली,
प्रार्थना, घटना,
रचना, भावना,
निधि, विधि,
उक्ति, सूक्ति,
युक्ति, शक्ति
जैसे शब्दों के बहुवचन रूप हैं, जिनके
साथ स्त्रीलिंग बनाने वाले ‘-आँ’
तथा ‘-एँ’
प्रत्यय लगे हैं।
व्याकरण
की पुस्तकों में और भी बहुत सारे नियम दिए गए हैं। परंतु साथ-साथ
उनके उतने ही अपवाद भी दिए गए हैं। ऐसी स्थिति में उन नियमों का कोई विशेष उपयोग नहीं
रह जाता।
सच तो यही है कि हिंदी में निरंतर अभ्यास, अनुभव तथा शब्दकोश की सहायता से ही लिंग की पहचान की जा सकती है। ऊपर गिनाए गए नियमों से बहुत थोड़ी मदद मिलेगी।
डॉ. योगेन्द्रनाथ मिश्र
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