शनिवार, 29 जून 2024

व्याकरण विमर्श

द्विगु समास

डॉ. योगेन्द्रनाथ मिश्र

द्विगु एक ऐसा समास है, जिसको समझना-समझाना संभवतः सबसे सरल है।

द्विगु समास की परिभाषा इस प्रकार की जाती है -

जिस समास का पूर्व पद कोई संख्याबोधक शब्द हो उसे द्विगु समास कहते हैं।

इस आधार पर हिन्दी व्याकरण पढ़ने-पढ़ाने वाले उन सभी शब्दों को द्विगु समास मान लेते हैं, जिनके आरंभ में कोई संख्याबोधक शब्द होता है।

ऐसे में वे शब्दों भी द्विगु समास में शामिल कर लिए जाते हैं, जो वास्तव में बहुव्रीहि समास हैं। जैसे -

त्रिनेत्र - त्रि (तीन) नेत्रों का समूह

चतुर्भुज - चार भुजाओं का समूह

दशानन - दश (दस) आननों (मुखों) का समूह

हम समास-विग्रह द्वारा किसी सामासिक शब्द का अर्थ स्पष्ट करते हैं।

आप विचार करें -

त्रिनेत्र/चतुर्भुज का अर्थ तीन नेत्रों का समूह/चार भुजाओं का समूह होता है क्या?

हिन्दी में ऐसे शब्दों की एक लंबी सूची है, जो सिर्फ बहुव्रीहि हैं। परंतु उन्हें द्विगु समास के अंतर्गत भी रखा जाता हैं। कारण कि उनके पूर्व पद के रूप में संख्याबोधक शब्द आते हैं।

पंचतंत्र, अष्टाध्यायी, सतसई, पंचवटी, त्रिलोचन, त्र्यंबक, षण्मुख, त्रिफला, त्रिपिटक, सहस्रबाहु, अष्टावक्र ...... जैसे शब्द इसी प्रकार के हैं।

वास्तव में जहाँ समूह का बोध होता है अथवा 'समूह' अर्थ निकालना हमारा अभीष्ट होता है, वे ही शब्द द्विगु समास के अंतर्गत आ सकते हैं।

जिस शब्द के विग्रह से व्यक्ति विशेष या वस्तु विशेष का अर्थ निकलता है, वह बहुव्रीहि समास के अंतर्गत आता है।

जैसे -

सप्तर्षि के विग्रह से समूह का अर्थ निकलता है। वही हमारे लिए अभीष्ट है।

ऐसे में सप्तर्षि में द्विगु समास है। बहुव्रीहि नहीं। सप्तर्षि किसी एक ऋषि का नाम नहीं है।

शताब्दी किसी एक वर्ष का नाम नहीं है। सौ वर्षों के समूह का नाम है।

त्रिभुवन किसी एक भुवन का नाम नहीं है। त्रिभुवन शब्द तीन भुवनों का सामूहिक बोध कराता है।

इसमें द्विगु समास है।

परंतु चतुरानन शब्द का प्रयोग चार आननों के सहूह का बोध कराने के लिए नहीं किया जाता।

बल्कि चार मुखों वाले ब्रह्मा जी का बोध कराने के लिए किया जाता है।

मतलब चतुरानन में द्विगु समास नहीं होगा। भले ही इसका पूर्वपद संख्याबोधक शब्द है।

ऐसे ही अन्य शब्दों में समझना चाहिए।

द्विगु - जहाँ समूह का बोध होता हो।

बहुव्रीहि - जहाँ समूह नहीं, व्यक्ति विशेष या वस्तु विशेष के नाम का बोध होता हो।

डॉ. योगेन्द्रनाथ मिश्र

 

 

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