पक्ष
डॉ. योगेन्द्रनाथ मिश्र
क्रिया के जिस रूप से यह पता चलता है कि वाक्य में प्रयुक्त क्रिया द्वारा
सूचित कार्य पूरा हो चुका है या अभी अधूरा है, क्रिया के उस रूप को पक्ष कहते हैं।
हिंदी में पक्ष के मुख्य दो भेद हैं - 1. पूर्णपक्ष तथा 2. अपूर्ण पक्ष।
1. पूर्णपक्ष : क्रिया के जिस रूप से यह पता चलता है कि क्रिया
द्वारा सूचित कार्य पूरा हो चुका है, क्रिया के उस रूप को पूर्ण पक्ष कहते हैं। जैसे - बच्चे ने
दूध पिया।
उसने अपने पिता जी को पत्र लिखा।
गाड़ी गई।
धातु के साथ ‘-आ’,
‘-ए’ ‘-ई’ तथा ‘-ईं’ प्रत्यय जोड़कर
पूर्णपक्ष के रूप बनाए जाते हैं।
‘-आ’
प्रत्यय से पुल्लिंग एकवचन का रूप बनता है - लिखा, पढ़ा, देखा।
‘-ए’
प्रत्यय से पुल्लिंग बहुवचन का रूप बनता है - लिखे, पढ़े, देखे।
‘-ई’
प्रत्यय से स्त्रीलिंग एकवचन का रूप बनता है - लिखी, पढ़ी, देखी।
‘-ईं’
प्रत्यय से स्त्रीलिंग बहुवचन का रूप बनता है - लिखीं,
पढ़ीं, दिखीं।
2. अपूर्णपक्ष : क्रिया के जिस रूप से यह पता चलता है कि
क्रिया द्वारा सूचित र्का अभी पूरा नहीं हुआ है, क्रिया के उस रूप को अपूर्ण पक्ष कहते हैं। जैसे - बच्चा
दूध पीता है।
वह अपने पिता जी को पत्र लिखता है।
गाड़ी आ रही है।
अपूर्ण पक्ष के भी दो भेद हैं - (क)
नित्य अपूर्ण पक्ष तथा (ख) सातत्य अपूर्ण पक्ष।
(क) नित्य अपूर्ण पक्ष : क्रिया के जिस रूप से यह पता चलता है कि क्रिया द्वारा सूचित र्का अभी पूरा नहीं हुआ है, बल्कि नित्य होता है - बार-बार होता है, क्रिया के उस रूप को नित्य अपूर्ण पक्ष कहते हैं।
धातु के साथ ‘-ता’,
‘-ते’,
‘-ती’ प्रत्यय जोड़कर नित्य अपूर्ण
पक्ष के रूप बनाए जाते हैं - पढ़ता, पढ़ते, पढ़ती।
(ख)
सातत्य अपूर्ण पक्ष : क्रिया के जिस रूप से यह पता चलता है कि क्रिया द्वारा सूचित
कार्य अभी पूरा नहीं हुआ है, बल्कि लगातार चल रहा है, क्रिया के उस रूप को सातत्य अपूर्ण पक्ष कहते हैं।
सातत्य अपूर्ण पक्ष ‘रहा’,
‘रहे’,
‘रही’ सहायक क्रियारूपों द्वारा
व्यक्त होता है।
चल रहा है/चल रहे हैं/चल रही है/चल रही हैं।
(क्रिया के इन तीन पक्षों के आधार पर वर्तमान काल तथा भूतकाल के उपभेद निर्धारित होते हैं।)
डॉ. योगेन्द्रनाथ मिश्र
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