रविवार, 14 अप्रैल 2024

विवेचन

 


क्रान्ति के अग्रदूत डॉ. बाबासाहब अम्बेडकर

डॉ. गिरीश रोहित

I hate injustice, tyranny, pompousness and humbug and my hatred embraces all those who’re guilty of them.” - 1942, Dr.B.R.Ambedkar

उपरोक्त पंक्ति‌याँ बाबासाहब अम्बेडकर के क्रान्तिकारी जीवन और मिशन के लक्ष्य को बखूबी उद्‌घाटित करती नज़र आती हैं । यही पंक्तियाँ अम्बेडकरवादियों के लिए भी सार-संदेश रूप में हैं । मानवीय अधिकारों की स्थापना और सुरक्षा के लिए बाबासाहब अम्बेडकर ने जो संघर्षयुक्त सफर तय किया है, सारे विश्व में अविस्मरणीय एवं अतुलनीय है । अतः हम जब भी बाबासाहब का मूल्यांकन करें, उनका परिचय दें तो केवल ‘दलितों के मसीहा’ मात्र के रूप में न देकर संपूर्णता के साथ उनको जानने-समझने-परखने और अपनाने का प्रयास करें, क्योंकि उनका संपूर्ण जीवन और मिशन बहुआयामी, बहुपक्षीय, हिमशीला सदृश रहा है । उन्होंने भारतीय समाज जीवन में विशेषतया हिन्दू समुदाय में अमूल परिवर्तन हेतु जो-जो कदम उठाये बड़े क्रान्तिकारी सिद्ध हुए हैं  । यही परिणाम हैं कि सन् 2004 में अमेरिका स्थित कोलम्बिया विश्वविद्यालय ने अपने 250 वर्ष के उपलक्ष्य में एक सर्वे कराया, जिसमें बाबासाहब तेजस्वी विद्यार्थी के रूप में सर्वोपरी सिद्ध हुए । इस विश्वविद्यालय ने अपने प्रवेशद्वार पर बाबासाहब की प्रतिमा स्थापित की जिसके नीचे लिखा गया ‘ द फाऊँडिंग फादर ऑफ मोर्डन इण्डिया’ । तो दूसरी ओर अमरीका की ऑक्स्फ़ोर्ड युनिवर्सिटी ने पिछले दस हजार सालों में विश्व विकास में योगदान देने वाले महान विभूतियों की एक सूची जारी की । भारत के लिए यह सूची गौरव प्रदान करने वाली सिद्ध हुई । इसमें प्रथम क्रम पर तथागत गौतम बुद्ध का नाम था और चौथे क्रम पर डॉ. भीमराव अम्बेडकर का । कभी नेल्सन मंडेला ने भी कहा था कि भारत में से अगर कोई चीज़ ले जाने लायक है तो वह है ‘ भारतीय संविधान’ ।

 बाबासाहब अम्बेडकर ने वैश्विक फलक पर जो ऊँचाई प्रदान की है इसके मूल में उनके 65 साल के जीवन का, वैयक्तिक सुख-ऐश्वर्य का, भोग-विलास का त्याग एवं समर्पण रहा है । ऐसा समर्पण जिसने कबीर की प्रसिद्ध साखी को चरितार्थ कर दिखाया -

“कबीरा खड़ा बाजार में, लिए लुकाठी हाथ,

जो घर फूँके आपनौ, चले हमारे साथ । ”

 वैसे भी बाबासाहब का परिवार कबीरपंथी था, अतः विद्रोह का आना स्वाभाविक था । तथागत बुद्ध और कबीर से उन्हें जो दाय मिला इसके बलबूते पर बाबासाहब अम्बेडकर भारतीय वंचितों की समस्याओं को न केवल वैश्विक फलक पर रख पाने में सफल हुए,  बल्कि उन समस्याओं के तर्कबद्ध तरीके से ठोस समाधान प्रस्तुत कर पाने में भी सफल सिद्ध हुए ।

सिद्धार्थ को दुःख का पता चला और वे उसके समाधान की खोज करते-करते तथागत बन गये । कबीर ने दंभी, पाखंडी, कथित धर्मात्माओं को आड़े हाथों लिया । बाबासाह‌ब इन दोनों विभूतियों से दो कदम आगे बढ़े । एक तो  दुःख का उन्हें स्वानुभव था ही, ऊपर से इस बात से भी अवगत थे कि दुःख देने वाले कौन हैं । दूसरी बात यह कि उन्होंने विश्व के लोकतांत्रिक देशों की तुलना में भारत को देखा था, अतः उन्हें पता था कि शोषित-पीड़ित-वंचितों की समस्याओं का निदान किसमें है । अत: कबीर की भाँति लाठी के बजाय हाथ में ‘कलम’ ग्रहण करके प्रहारक साखियों की बजाय आततायी-अत्याचारियों को नाथने वाली क्रान्तिकारी ‘संहिताएँ’ रचने में सफल हुए । ऐसी संहिताएँ जिसने भारत में ‘लोकतंत्र’को कायम करने में अपनी महत्ता पुरवार कर दी है । अगर आज भी ‘भारतीय संविधान’ और बाबासाहब के जीवन-दर्शन का देश में (संसद से सड़क तक) शत-प्रतिशत प्रामाणिकता एवं इमानदारी से क्रियान्वयन होता है तो इसे महासत्ता, विश्व का श्रेष्ठ लोकतांत्रिक राष्ट्र बनने से कोई नहीं रोक सकता । सवाल केवल नियत का है तथा बाबासाहब को उनकी संपूर्णता के साथ, बिना किसी पूर्वाग्रह के स्वीकार करने की मंशा का !

बाबासाहब अम्बेडकर को हम जब क्रान्ति के अग्रदूत कहते हैं तो उसके पीछे कई कारण हैं । भारत में आदि और मध्य काल में संत-कवियों ने अपनी वाणी के जरिये समाज सुधार का काम किया । आधुनिक काल में कई समाज- सुधारकों, चिन्तकों  ने अपने-अपने तरीके से समाज-सुधार से लेकर समाजोत्थान और समाज में गतिशीलता पैदा करने के प्रयास किये हैं । इनमें से कइयों का जीवन चमत्कारों से भी जुड़ गया है तो कइयों के निदान ऊपरी सिद्ध हुई हैं  । भारतीय समाज की बुनियादी समस्याओं का जड़ समेत निदान दर्शाने वालों में फुले- अम्बेडकर सर्वोपरी रहे हैं । इन्होंने बिना किसी चमत्कार प्रदर्शन के, बिना किसी अदृश्य ताकत की सहायता के, आत्मविश्वास, आत्म-सम्मान, स्वाभिमान जैसे गुणों को आत्मसात करने पर बल दिया । इन्होंने बुद्ध के ‘ अप्पो दीप भव’ में अपना विश्वास कायम किया । साथ ही सामाजिक क्रान्ति हेतु ‘ शिक्षा, संगठन और संघर्ष’ पर विशेष बल दिया । विश्व में अनेक क्रान्तियाँ हुई हैं, रक्तरंजित इतिहास इसका गवाह है, परंतु बाबासाहब अम्बेडकर ने भारत में जो क्रान्ति की, बिना रक्त की एक बूँद बहाये, सदियों के इतिहास को कुछ की सालों में पलट करके रख दिया । उनके इस क्रान्तिकारी अभियान को आत्मसात करने के लिए उनके क्रान्तिकारी कदमों को देखना-समझना जरूरी बन जाता है । बाबासाहब अम्बेडकर ने जिन-जिन क्षेत्रों में जो-जो क्रान्तिकारी कदम उठाये इसे विस्तार से देखते हैं ।

शिक्षा-क्षेत्र :

बाबासाहब ने सबसे पहले अगर कोई क्षेत्र में क्रान्तिकारी कदम उठाया तो वह है शिक्षा-क्षेत्र । उस जमाने में जब अछूतों के लिए सारे सार्वजनिक स्थल पर प्रवेश वर्जित था, बाबासाहब स्वयं पढ़े, विदेश से भी शिक्षा हासिल की, इतनी डिग्रियाँ हस्तगत की जो विश्व के शायद किसी राजनेता ने हासिल की हो । अछूत छात्रों के शायद स्कूल, कॉलेज, छात्रालय आदि की व्यवस्था में वे सदैव चिंतित रहे । इसी सिलसिले में उन्होंने डिप्रेस्ड‌् क्लासेज एज्यूकेशन सोसायटी की सन् 1928 में स्थापना की । सन् 1924 में स्थापित 'बहिष्कृत हितकारिणी सभा' का ही यह नया अवतरण था । इसका मूल उद्देश्य था दलितों में शिक्षा का प्रचार-प्रसार करना ।

सामाजिक क्षेत्र :

सामाजिक क्षेत्र में क्रान्ति लाना बाबासाहब का अहम् उद्देश्य था । उनका स्पष्ट मानना था कि सामाजिक लोकतंत्र के बिना देश में लोकतंत्र की स्थापना संभव नहीं है । उनका मानना था कि-  “ हम नहीं चाहते कि संसद को स्टॉक एक्सचैंज बना दिया जाय । संसद को, गायक - छोकरियों की ऐसी मंडली (का अखाड़ा) न बनने दिया जाए जो सदा सरकार की हाँ में हाँ मिलाती जाए ।1 बाबासाहब ने सामाजिक लोकतंत्र की स्थापना हेतु समाज में असमानता के जनक वर्ण-भेद ( Casteism) और लिंग-भेद (Gender byse) को नेस्तनाबूद करने हेतु छुआछूत को अपराध करार दिया और स्त्री-पुरुष समानता हेतु हिन्दू कोड बिल पेश किया । हिन्दू कोड बिल के संदर्भ में बाबासाहब की प्रतिबद्धता को रेखांकित करते हुए एल.आर. बाली लिखते हैं- “ हिन्दू कोड़ बिल पर बाबासाहब ने कठिन परिश्रम किया था । दर्जनों पुस्तकें उन्होंने पढ़ी थी। सैकड़ों हिन्दू नेताओ,  वकीलों, कानून के विद्वानों के साथ वे विचार विनिमय कर चुके थे । स्वास्थ्य खराब होने के बावजूद वे बिल को विचारते और इस‌के पक्ष में राय पैदा करने के लिए दिन-रात एक करते । ” 2 17, सितम्बर 1951 को संसद में जब ‘हिन्दू कोड बिल’ का भारी विरोध हुआ, संसद में पति-पत्नी (आचार्य कृपलानी- श्रीमती सूचेता कृपलानी) दोनों मौजूद है ।, एक विरोधी सुर में हो और दूसरी समर्थिका बने ऐसी स्थिति पर बाबासाहब ने जो विचार व्यक्त किये थे, शायद आज भी उतने ही प्रासंगिक है- “ मैं सदन से यही अनुरोध कर रहा हूँ, यदि आप हिन्दू व्यवस्था, हिन्दू संस्कृति, हिन्दू समाज की रक्षा करना चाहते हैं, तो जहाँ मरम्मत की आवश्यकता है, वहाँ मरम्मत कीजिए । इस विधेयक का उद्देश्य हिन्दू धर्म के उन भागों की मरम्मत भर करना है, जो टूट-फूट गये हैं । 3 जब सदन में श्यामा प्रसाद मुखर्जी, और अन्य कई नेताओं ने इस बिल का विरोध किया तो अंत में बाबासाहब ने कड़ी नाराजगी के साथ 27,सितम्बर, 1951 को केन्द्रीय मंत्री-परिषद से इस्तीफा दे दिया । बाद में यही बिल अलग-अलग चार अधिनियमों के रूप में पास हुआ ।

1.                      हिन्दू विवाह अधिनियम 1955

2.                       हिन्दू उत्तराधिकारी अधिनियम 1956

3.                      हिन्दू अव्यसता और संरक्षकता अधिनियम 1956

4.                       हिन्दू दत्तक ग्रहण तथा जीवन-निर्वाह अधिनियम 1956

 हिन्दू कोड बिल के चलते ही स्त्री अपनी पैतृक सम्पत्ति में वारिस बन पायी साथ ही उसे भरण पोषण का भी अधिकार प्राप्त हुआ । इतना ही नहीं बाबासाहब के प्रयास स्वरूप ही नौकरीपेशा स्त्रियों को मातृत्व-धारण पर अवकाश का प्रावधान रखा गया ।

सामाजिक क्षेत्र में बाबासाहब ने जो क्रान्तिकारी काम किया वह है जातिप्रथा और छुआछूत को कानून अपराध घोषित करवाया । इसके लिए उन्होंने एक लम्बी लड़ाई लड़ी । सन् 1927 में महाड़ चवदारतालाब सत्याग्रह किया । पीने के पानी को लेकर किया गया यह विश्व का सर्वप्रथम संघर्ष है । इसी सिलसिले में शूद्रों और नारी के जीवन में अवरोधक बनी मनुस्मृति को 25, दिसम्बर 1924 को सार्वजनिक रूप से जला दिया । साथ ही एक मनुष्य के रूप में दलित को भी मंदिर प्रवेश का अधिकार है, इसी विचार के तहत उन्होंने सन् 1930 में नाशिक में कालाराम मंदिर प्रवेश सत्याग्रह को अंजाम दिया । बाबासाहब ने अपने इन क्रान्तिकारी सत्याग्रहों की सफलता हेतु ‘बहिष्कृत हितकारिणी सभा’ (1924), ‘समता सैनिक दल’ (1924), ‘डिप्रेस्ड क्लासेज सोसायटी’(1931) जैसी संस्थाओं की भी स्थापनाएँ की । इन्हीं संस्थाओं की  बदौलत, साथ ही ‘मूकनायक’ (1920), बहिष्कृत भारत (1927), जनता (1930) और प्रबुद्ध भारत जैसे समाचार पत्रों-पत्रिकाओं के जरिये दलितों में चेतना जगाने और उनकी समस्याओं के विवेचन-विश्लेषण का काम किया । जब उन्हें लगा कि हिन्दू समुदाय दलितों के प्रति अत्यंत क्रूर व उदासीन बना हुआ है, उन्होंने सन् 1935 में येवला में एक सभा में हिन्दू धर्मांवलम्बियों को खुली  चेतावनी दी कि, “ मैं हिन्दू धर्म में जन्मा ये मेरे बस की बात नहीं थी, पर मैं हिन्दू के रूप में मरूँगा नहीं ।” इसके दो दशक पश्चात् सन् 1956 में नागपुर में बाबासाहब ने अपने लाखों अनुयायियों के साथ बौद्ध धर्म अंगीकार किया । यह भी अपने आप में एक ऐसी क्रान्तिकारी घटना है जिसका वैश्विक फलक पर महत्व है । भारत जैसे देश में यह सिलसिला आज भी जारी है, यह गौरव का नहीं शर्मिन्द‌गी का मसला है ।

दलितों, स्त्रियों के अलावा बाबासाहब ने समस्त श्रमिक-मजदूर वर्ग के पक्ष में भी काफी काम किया है । एक समय था अब इन मजदूरों से 12-14 घंटा काम लिया जाता था, बाबासाहब ने मजदू‌रों की सुख के लिए सन् 1939 में ‘आज़ाद मजदूर पार्टी’ का गठन किया । पार्टी का मुख्य लक्ष्य था खेतिहर किसानों से लेकर कल-कारखानों में काम कर रहे श्रमिकों का जीवन स्तर ऊँचा उठाया जाय । इसके लिए मजदूरों की भर्ती, नियुक्ति, उनकी तरक्की, कार्य-काल, योग्य वेतनमान, सवैतनिक अवकाश, साफ-सुथरे आवास की व्यवस्था आदि उपलब्ध कराने कानून बनाया जाय । आज मजदूरों-श्रमिकों के संदर्भ में ये सारे विचार क्रियान्वित है ।

 इसके अलावा सन् 1928 में बाबासाहब ने बेगारी और भूमि-दासता के विरुद्ध भी आंदोलन छेड दिया था । इस मामले में उन्होंने महाराष्ट्र के कोंकण क्षेत्र में ‘खोती प्रथा’ के विरुद्ध एक बिल पेश किया, जिसका मूल आशय था कि रजवाड़े भूमि मुजारों का शोषण बन्द करें और ‘जोते उसकी जमीन’ के आधार पर मुजारों को मालिकाना हक प्राप्त हो । इतना ही नहीं बेगारी के विरुद्ध जनचेतना जगाते हुए उन्होंने कहा था कि- “ उन माता-पिता और पशुओं में कोई अन्तर नहीं होगा यदि वह अपनी संतान को अपने से अच्छी स्थिति में देखने की इच्छा नहीं करेंगे । 4  उनका कहने का तात्पर्य यह था कि लोग जमीन के कुछ टुकडों के लिए अपनी संतानों के हाथ-पैरों में दासत्व की जंजीरें न बंधवा दे । बल्कि अपनी भावी पीढ़ी को शोषण के दलदल स्वरूप बेगारी से मुक्ति दिलाने में अपनी अहम् भूमिका अदा करें ।

 बाबासाहब अम्बेडकर के जीवन और मिशन का मूल फोकस समाज था, पर समाजोत्थान हेतु उन्होंने राजनीति को एक सशक्त माध्यम के रूप में स्वीकार किया । राजनीति के जरिये सामाजिक बदलाव हेतु बाबासाहब ने गोलमेज परिषद् में दलितों के लिए पृथक निर्वाचन की माँग की । उनकी इस माँग का गांधीजी ने न केवल विरोध किया, बल्कि उसके खिलाफ आमरण-अनशन का शस्त्र के रूप में इस्तेमाल किया।  अंततः बाबासाहब ने समूचे भारतीय दलितों के तत्कालीन समय में कोई जान‌हानि से जूझना न पड़े इसलिए अपना फैसला बदल दिया । काश उस समय हरिजनोद्धार  के रूप में भी गांधीजी का बाबासाहब को समर्थन मिला होता तो आज दलितों का वर्त‌मान कुछ और ही होता ! इतिहास में यह घटना ‘पूना-पैक्ट’ के रूप में प्रसिद्ध है ।

बाबासाहब में दलितोत्थान हेतु, दलितों में संगठन व संघर्ष की भावना तीव्र बने इसलिए समय-समय पर कई राज‌नीतिक संगठनों की स्थापनाएँ की । जिनमें ‘इंडिपैडेंट लेबर पार्टी’(1936), ‘ऑल इण्डिया शिड्‌युअल कास्ट फेडरेशन’(1942) और ‘रिपब्लिकन पार्टी ऑफ इंडि‌या’ (1957) आदि उल्लेखनीय है । हालांकि ‘रिपब्लिकन पार्टी ऑफ़ इण्डिया’ की योजना बाबासाहब की उपस्थिति में ही आकार ले चुकी थी, उसका विधिवत गठन उनका महापरिनिर्वाण पश्वात हुआ ।

राजनीतिक क्षेत्र में अपनी लेखनी का विशिष्ट योगदान देने हुए बाबासाहब ने कई सूचक व उपकारक ग्रंथ लिखे । उन ग्रंथों में ‘महाराष्ट्र एक भाषायी प्रांत के रूप में’, ‘भाषायी राज्यों के संबंध में विचार’, ‘संघ बनाम स्वतंत्रता’, ‘राज्य तथा अल्पसंख्यक वर्ग’, ‘क्रान्ति और प्रतिक्रान्ति’, ‘ब्रिटिश भारत में प्रांतीय वित्त-व्यवस्था का विकास’, ‘पाकिस्तान या भारत का विभाजन’, ‘भारत तथा साम्यवाद की पूर्वपेक्षाएँ’, ‘'गांधी और कांग्रेस ने अस्पृश्यों के लिए क्या किया?’ इत्यादि चर्चित रहे हैं । आधुनिक भारत के निर्माण के लिए, भारत को एक संघीय प्रकल्पना के रूप में साकार करने व उसके लोकतांत्रिक ढाँचें को बरकरार बनाये रखने के वास्ते बाबासाहब ने ‘भारतीय संविधान’ के गठन में जो परिश्रम किया है अतुलनीय है । पं.नहेरु इसीलिए उन्हें संविधान के ‘ Chief Architect’ के रूप में नवाजते थे । संविधान निर्माण में रहे योगदान के पश्चात् बाबासाहब के राष्ट्रप्रेम के संदर्भ में कोई संदेह नहीं रहता है । सन् 1947 में मिली स्वतंत्रता और अखंड भारत अगर आज भी कायम है तो वह संविधान और उसके विभिन्न प्रावधानों के बलबूते पर ही ।

जितना योगदान बाबासाहब का राजनीति के क्षेत्र में रहा है अर्थनीति में भी उनका उतना ही प्रदेय है । अर्थशास्त्र एवं विधिशास्त्र में किये गये अध्यापन का सीधा लाभ ‘भारतीय-संविधान’को और उसकी बदौलत आधुनिक भारत निर्माण को हुआ है । इस संदर्भ में ‘ब्रिटिश भारत में प्रांतीय अर्थव्यवस्था का विकास’ इसी शोधग्रंथ की स्वीकृति पर कोलम्बिया विश्वविद्यालय ने इन्हें डॉक्टरेट की उपाधि से सम्मानित किया । ‘ब्रिटिश भारत में शाही वित्त व्यवस्था का प्रांतीय विकेन्द्रीकरण (1921, लन्दन विश्वविद्यालय में एम.एस.सी की डिग्री हेतु प्रस्तावित शोधग्रंथ), ‘ द प्राब्लेम ऑफ़ रूपी: इट्स ऑरिजीन एण्ड इट्स सॉल्यूशन’ (1923) आदि ग्रंथ आज भी अपनी प्रासंगिकता बनाये हुए है । भारत में ‘ रिजर्व  बैंक ऑफ इण्डिया’ एवं ‘वित्त-आयोग’ के गठन में भी बाबासाहब का प्रत्यक्ष प्रदान रहा है । इसके अलावा बाँध परीयोजनाएँ, जल एवं बिजली व्यवस्था हेतु ‘ग्रिड-सिस्टम’ आदि में भी उनका विशेष योगदान रहा है ।

 कुल मिलाकर बाबासाहब का व्यक्तित्व बहुआयामी था । वे जितने उच्चकोटी के राजनीतिज्ञ थे उतने ही विचार‌शील अर्थशास्त्री भी, वे जितने बड़े सोशल इन्जीनियर थे उतने ही बुद्धिमान विधिवेत्ता भी । उन्होंने कई देशों के धर्मग्रंथों का गहन अध्ययन किया था । वे इतने बड़े पुस्तक प्रेमी थे कि उनकी नीजि ग्रंथालय में 50,000 से भी अधिक पुस्तकें है । ‘ समता-स्वतंत्रता और बंधुता’ इनके समाज-दर्शन के तीन आधार स्तंभ  है । उन्हें ‘अप्प दीपो भव’ में अपार श्रद्धा थी । न केवल दलितों के लिए, बल्कि किसी भी राष्ट्र की जनता की उन्नति एवं सुखाकारी के लिए ‘शिक्षा, संगठन, संघर्ष’ बुनियादी आवश्यकताएँ हैं  । यह वही विचार-त्रयी है जो उनके क्रान्तिकारी अभियान की बुनियाद बनी हुई है । अंत में उनके द्वारा किये गये बौद्ध धर्म अंगीकार की बात, जो पूर्णतः वैज्ञानिक अभिगम युक्त है । मूर्तिपूजा, कर्मकांड, कट्टरता जैसे घातक तत्वों से मुक्त है । अहिंसा, प्रेम और करुणा तथा शील जिसकी विरासत है । इन सब विशेषताओं ने बाबासाहब को अपनी ओर आकर्षित किया । आज हमारा देश जिस साम्प्रदायिक आग में दिन-रात झुलसता जा रहा है, बौद्ध धर्म के विचारों से इस आग को बुझाया जा सकता है । इस संदर्भ में बाबासाहब के विचार भी काफी कारगर सिद्ध हो सकते हैं ।

संदर्भ सूचीः

1. डॉ.बाबासाहब अम्बेडकर: राइटिंग एंड स्पीचेक्ष, खंड-1, बम्बई-1997, पृ- 515

2. डॉ.अम्बेडकर जीवन और मिशन-एल.आर. बाली, पृ-328

3. डॉ.बाबासाहब अम्बेडकर राइटिंग एंड स्पीचेज़, खंड-14 बम्बई, पृ.283

4. डॉ.अम्बेडकर जीवन और मिशन, एल.आर.-बाली, पृ. 69

आधार ग्रंथ:

1. डॉ.अम्बेडकर जीवन और मिशन - एल.आर.बाली

2. भीमराव अम्बेडकर व्यक्ति और विचार - विश्व प्रकाश गुप्त, मोहिनी गुप्ता

3.  युग प्रवर्तक पत्रकार डॉ. बाबासाहब अम्बेडकर- पी.ए.परमार (गुजराती)


डॉ. गिरीश रोहित

अध्यक्ष

हिन्दी विभाग

श्री आर.पी.आर्ट्स,

के.बी.कॉमर्स एण्ड श्रीमती बी.सी.जे सायन्स कॉलेज

खंभात (गुजरात)

1 टिप्पणी:

  1. डॉ भीमराव अंबेडकर जी के बारे में जानकारी देता बेहतरीन आलेख । सुदर्शन रत्नाकर

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