भारत रत्न डॉ. बाबा
साहेब अंबेडकर और संविधान
डॉ. धीरज वणकर
संसार में कुछ हस्तियाँ ऐसी पैदा होती हैं जो अपने मानव
कल्याण के कर्मों से करोड़ों लोगों के दिलों में
अमिट छाप छोड़ जाती हैं । उनका
जीवन औरों के लिए प्रेरणादायी बन जाता है। बाबा
साहब आंबेडकर एक ऐसी विश्व विख्यात हस्ती थी कि अनेक संघर्षों के सामने जूझे पर
झूके नहीं और इतिहास में स्वर्ण अक्षरों में अपना नाम दर्ज कर गये। उनके
जीवन की एक-एक घटना संघर्षों की महागाथा है। उनका जन्म चौदह अप्रैल सन् 1891में
महू में महार जाति में हुआ था। वे
अपने माता-पिता की चौदहवीं संतान थे। बाबा
साहब के पिता का नाम रामजी सुबेदार एवं माता का नाम भीमाबाई था। बाबा
साहब के पिता धार्मिक वृत्ति के थे, इतना ही नहीं व्यसनों से कोसों दूर थे। उनके
पिता सैनिक विभाग में से निवृत्त होने के बाद कबीर पंथ से जुड़ गए । माता
व पिता दोनों बाबा साहब को प्यार से' भीवा' कहकर बुलाते थे माावतावादी बाबा साहब का बचपन अभाव ग्रस्त
रहा । बाबा साहेब पढने में बहुत होनहार छात्र थे। किंतु
दलित जाति के कारण स्कूल के बाहर बैठकर पढना पड़ता था। उनको
जातिगत अपमान के घूँट कदम-कदम पर पीने पड़े थे। खेलना उन्हें बेहद पसंद था। बाहर
खेलने जाते तो झगडा करते। वस्तुत:
आंबेडकर का मूल गाँव अंबावडे था। बाबा
साहब को पढ़ाने वाले एक शिक्षक की सरनेम आंबेडकर थी। उनका भीमराव पर अत्यंत स्नेह
था। उन्हें बाबा की अटक अंबावडेकर बोलने में दिक्कत होती थी। इसलिए
उन्होंने बाबा साहेब की सरनेम आंबेडकर कर दी। स्कूल
से लेकर बडौदा में नौकरी शुरू की वहाँ तक जाति ने उनका पीछा नहीं छोड़ा। सन्
1907 में भीमराव ने मेट्रिक की परीक्षा पास की। उस
समय दलित के लिए मेट्रिक पास करना बडी उपलब्धि कहलाती। बाबा
साहब के सम्मान के लिए एक सभा रखी गई और फुलों से सम्मानित किया गया। सभा
में श्रीकृष्णा जी ने कहा कि-” मैं भीमराव को अच्छी तरह से जानता हूँ। वह
एक बुद्धिशाली व तेजस्वी और आशास्पद विद्यार्थी है। भीमराव
ने कॉलेज में एडमिशन लेकर उच्च शिक्षा की पढाई जारी रखनी चाहिए। “
बडौदा के राजा ने भीमराव को पढ़ने के लिए स्कोलरशीप दी। जिसके
कारण बाबा साहब 21 जलाई, 1913 में न्यूयॉर्क की कोलंबिया यूनिवर्सिटी में पढ़ने गए।
वहाँ
पर वे सोलह घंटे पढते रहते थे और एक ब्रेड व चाय पीकर रहते थे। बाबा
साहब ने एम. ए., पीएच.डी.,
एम. एस-सी, एल. एल. बी., डी. लिट. जैसी अनेक डिग्रियाँ प्राप्त की। बाबा
साहब ने'
ब्रिटिश भारत की प्रांतीय आर्थिक उत्क्रांति” विषय पर
महानिबंध लिखकर डॉक्टर ओफ फिलोसोफी की उपाधि हाँसिल की। बाबा
साहब के कटु अनुभवों ने उन्हें सोने नहीं दिया ,इसलिए वे अधिकार की लडाई लडते रहे। । खेद
की बात यह है कि डॉ. अंबेडकर को सिर्फ दलितों का मसीहा कहकर उसके कद को संकुचित कर
दिया जाता है। हकीकत में उन्होंने समाज के
दबे कुचले वर्ग व महिला अधिकार के लिए स्तुत्य
कार्य किया। बाबा
साहेब ने अपनी बहुमुखी प्रतिभा और
उपलब्धियों के परिणाम स्वरूप विशिष्ट
पहचान बनाई थी।
गौरतलब कि बाबा साहब बहुआयामी व्यक्ति के धनी महापुरुष थे। एक
प्रोफेसर,
एक कानून विद, अर्थशास्त्री,आजाद भारत के पहले कानून मंत्री,
साहित्य कार, पत्रकार, महिला उत्थान के हिमायती , संविधान शिल्पी, राजनीतिज्ञ आदि के रूप में जाने जाते हैं। भारतीय चतुर्वर्ण
व्यवस्था ने दलितों का जीवन पशु से बदतर बना दिया था। पिछड़ों, बहुजनों के लिए बाबा साहब ने अनेक महत्वपूर्ण कार्य किये ।
सामाजिक स्तर पर इनके कारवाँ को समता सैनिक दल आगे बढाता है,
धार्मिक स्तर पर भारतीय बौद्ध महासभा और राजनीतिक स्तर पर
डिप्रेस्ड क्लास फेडरेशन,स्वतंत्र मजदूर दल, शेड्यूल कास्ट फेडरेशन, भारतीय रिपब्ल केशन पार्टी। भीमराव
ने शिक्षा पर काफी जोर दिया था। महिला
उत्थान के लिए भी उन्होंने सराहनीय कदम उठाए । महिला
कोड बिल पास न होने पर उन्होंने मंत्री पद से इस्तीफा दे दिया,
क्या आज कोई मंत्री ऐसा कर सकता है?सदियों से त्रस्त पददलितों की आवाज को वाचा देने के लिए
बाबा साहब ने' मूकनायक'
पत्रिका शुरू की। वस्तुुत:
वंचितों की वाणी को वाचा देने का काम अंबेडकर जी ने किया। बाबा
साहेब से प्रेरणा लेकर आज दलित साहित्यकारों समता, बंधुता, स्वतंत्रता की बात करते हैं। बाबा
साहेब ने पिछडों को एक सूत्र दिया-शिक्षित बनो , संगठित रहो और संघर्ष करो। उन्होंने
ये भी कहकर जगाने का प्रयास किया कि - शिक्षा शेरनी का दूध है,
जो पिएगा, वह दहाड़ेगा। बाबा
साहब ने पत्नी रमाबाई व संतानों की चिंता न की,किंतु करोड़ों दलितों के अधिकार के लिए आजीवन लड़ते रहे। हम
सुनते है कि जल ही जीवन है किंतु निम्न समाज के लोग सार्वजनिक कुएँ,
तालाब से पानी नहीं भर सकते,
इसलिए अंबेेेडकरने 20 मार्च 1927 में सत्याग्रह करके दलितों को पानी का अधिकार दिया।
कालाराम
मंदिर प्रवेश भी कराया। पूना
एक्ट भी महत्वपूर्ण कार्य रहा है। गाँधी
ने अनसन करके दलितों के डबल मताधिकार को रोक दिया। हिंदू
धर्म पिछड़े समाज के लोगों को मनुष्य मानता ही नहीं था,
हिंदू धर्म में जातिवाद मुख्य था इसलिए बाबा ने हिन्दू समाज
से निराश होकर, बौद्ध
धर्म स्वीकार कर लिया। हालाँकि
उन्होंने पहले ही बता दिया था कि हिंदू धर्म में जन्म लेना मेरे हाथ की बात नहीं
थी पर मरना मेरे हाथ की बात है। वस्तुत:
बाबा साहब मानवता,बंधुता,समता
के हिमायती थे।
भारत विश्व का सबसे बड़ा लोकतांत्रिक देश है,
इस देश की अपनी विशिष्ट संस्कृति है,इतना ही नहीं भारत आज विश्व गुरु बनने जा रहा है। 15 अगस्त,
सन् 1947 को हम स्वतंत्र हुए, देश में खुशी की लहर दौड़ गयी,
सरकारी भवनों पर राष्ट्रीय झंडा फहराया गया। पिछले दो साल
से आजादी का अमृत महोत्सव का शानदार जश्न
भारतवर्ष में मनाया जा रहा है। हमारे
प्रधानमंत्री जी ने एलान किया है कि यह महोत्सव 75 सप्ताह के रूप में मनाया जाएगा
यह हमारे लिए खुशी व गौरव की बात है। भारतरत्न
डॉ. बाबा साहब अंबेडकर भारतीय संविधान के प्रमुख निर्माता थे। स्वयं
पंडित जवाहरलाल नेहरू ने भी बाबासाहेब की भूरि- भूरि प्रशंसा की थी। भारत का
संविधान दुनिया का श्रेष्ठ व लोकप्रिय संविधान है। भारत
का संविधान एक मात्र ऐसा संविधान है, जिसमें एक साथ कई चीजें मिलेगी। जो
दुनिया के अन्य संविधानों में एक साथ नहीं मिलेगी। संविधान किसी भी देश का प्राण व
धड़कन होता है,जाहिर
है कि 26 नवंबर 1949 को संविधान सभा ने भारत के संविधान को स्वीकार किया था इसलिए
इस दिन को संविधान दिवस के रूप में भारत में मनाया जाता है। दो
साल,
ग्यारह महीने एवं अठारह दिन के कठोर परिश्रम के बाद यह
संविधान तैयार हुआ था। करीबन
सौ देशों के संविधान के अभ्यास के बाद हमारा संविधान तैयार हुआ था। संविधान सभा के
अध्यक्ष -डॉ. बाबासाहेब अम्बेडकर, सदस्यों में- एन. गोपाल स्वामी आयंगर,
अल्लादी कृष्ण स्वामी ऐयर, सैयद मोहम्मद सादुल्लाह, एन. माधवराव ( बी.एन. मीत्तर की जगह)टी.टी.कृष्णमाचारी (
डी. पी. खेलना के स्थान पर) और कन्हैया लाल मुंशी। संविधान
की मुसद्दा समिति के अध्यक्ष के तौर पर डॉ. बाबासाहेब ने अपनी भूमिका बखूबी निभाई।
संविधान बनने में दो साल, ग्यारह महिने और सत्रह दिन लगे थे। । सन्
2015 में भारतभर में भारत रत्न बाबा साहब की 125 वीं जन्म जयंती मनाई गई,
उसी वर्ष से केन्द्र सरकार के आदेश के मुताबिक 26 नवंबर का
दिन'
संविधान दिन' के रूप में मनाया जाता है। इस दिन के जश्न मनाने के पीछे
सरकार का यह उद्देश्य रहा है कि संविधान के प्रति लोगों में जागृति आए इतना ही
नहीं संविधान शिल्पी बाबा साहब के योगदान को लोग याद करें। संविधान
में बारह अनुसूचियाँ है। संविधान
मुसद्दा में 7635 सुधार के सुझाव थे,तथा 114 दिन की लंबीचर्चा के अंत में 2473 स्वीकृत किये गये
थे। 22 भाग, 395 अनुच्छेद और 12 परिशिष्ट के साथ 26 नवंबर,
1949 के दिन पारित हुआ करीबन 64 लाख रूपये के खर्च में
संविधान तैयार हुआ था और 26 जनवरी 1950 के ऐतिहासिक दिन पर इसका अमल हुआ । बाबा
साहब का ये कथन देखिए-”संवैधानिक स्वतंत्रता का कोई अर्थ नहीं है ,जब तक आप सामाजिक स्वतंत्रता प्राप्त नहीं कर लेते। “ बाबा साहब ने मत की महत्ता पर कहा था- .हमारे संविधान में
मत का अधिकार एक ऐसी ताकत है जो कि किसी ब्रह्मास्त्र से कहीं अधिक ताकत रखता है।”
बाबा साहब का व्यक्तित्व युवाओं के लिए प्रेरणादायक है।
दरअसल भारत की शान है संविधान। संविधान की रक्षा करना हम सब
का परम दायित्व है। संविधान
में व्यक्ति स्वतंत्रता, समता,
न्याय, बंधुत्व का पैगाम है। तिरंगा
इसकी है पहचान,इस
पर हम सबको बडा अभिमान है। इसमें
अशोक स्तंभ का सिम्बोल और चार शेर है बेमिसाल।
संविधान सभा ने हाथी को प्रतीक के रूप में स्वीकृत किया है।
संविधान
सभा के सचिव के रूप में एच. वी.आर.आयंगर की नियुक्ति की गई थी,
भारतीय संविधान की प्रस्तावना का सुलेखन प्रेम बिहारी
नारायण रायजादा ने किया था और इसकी डिजाइन राममनोहर सिंहा के द्वारा तैयार की गई
थी । संविधान ने हमें विशेष अधिकार दिए है मसलन- वाणी स्वतंत्रता,स्त्रियों को पिता की संपति में समानाधिकार,
समता, न्याय, बंधुत्व। संविधान
निर्माताओं में महिलाओं का योगदान भी रहा है- जिसमें बेगम एजाज़ रसूल कोटला से,
हंसा जीवराज मेहता बडौदा, दुर्गाबाई देशमुख- आंध्रप्रदेश,
अम्मू स्वामीनाथन- केरल, कमला चौधरी- लखनऊ, लीलारोय,-असम, मालती चौधरी- बंगाल,पूर्णिमा बेनर्जी- सामाजिकविचारधारवाली-इलाहाबाद,
सुचेता कृपलानी- हरियाणा, एनी मास्कारेन-केरल, रेनुका सरोजिनी नायडू- हैदराबाद,
राजकुमारी अमृतकौर-लखनऊ का जिक्र किया जा सकता है। इन
अतुलनीय,
अद्वितीय महिलाओं को डॉ. अंबेडकर जी की अध्यक्षता वाली
संविधान सभा में नाना प्रकार के बिंदुओं पर अपने तर्क पूर्ण वक्तव्य रखने का
पूर्णतः अधिकार था। गौरतलब
कि ये महिलाएँ देश के भिन्न- भिन्न राज्यों का नेतृत्व कर रही थीं। विधि
मंत्री के तौर पर अपने पहले ही साक्षात्कार में राष्ट्र निर्माता व अखंड भारत के
स्वप्नदर्शी बाबा साहेब ने कहा था- “मैं महसूस कर रहा हूँ कि संविधान चाहे कितना
भी अच्छा क्यों न हो, यदि वे लोग, जिन्हें
संविधान को अमल में लाने का काम सौंपा गया , वे खराब निकले तो
निश्चित रूप से संविधान खराब सिद्ध होगा। दूसरी
ओर,
संविधान चाहे कितना भी खराब क्यों न हो,
यदि वे लोग, जिन्हें संविधान को अमल में लाने का काम सौंपा जाए,
अच्छे हों तो संविधान अच्छा सिद्ध होगा। “वाकई हमारा संविधान जन जन के जीवन में उजियारा लाया है,
हमारा संविधान हमारे लिए पथदर्शक है,संविधान में अनुच्छेद 36 से अनुच्छेद 51 तक में जो निर्देश
के रूप में जो प्रावधान शामिल किये गये हैं जिन्हें राज्यों को पालन करना चाहिए। भारतीय
इतिहास में सदियों के अंधकार में एक दीप जगमग उठा जिसका नाम था- ,डॉ..भीमराव आंबेडकर। वर्ण-व्यवस्था
के दुष्चक्र में फँसे भारतीय समाज व उसके शिकार दलित जनों को डॉ..अंबेडकर ने
स्वाधीनता तथा आत्मसम्मान की राह दिखाई, इतना ही नहीं जाति व अस्पृश्यता के दलदल में फँसे भारतीय
समाज को उबारने का स्तुत्य कार्य भी किया। डॉ
आंबेडकर राष्ट्र प्रहरी तथा मानवतावादी के रूप में कालजयी रहेंगे। त्याग
व स्वतंत्रता के पक्षधर बाबा साहब के विचारों पर हम चले यह हमारा परम कर्तव्य है। 14
अप्रैल के पावन दिवस पर मैं समग्र भारतवासी और विशेष कर आंबेडकर वादी विचारकों को
शुभकामनाएँ देता हूँ । अंत
में मेरी कविता की इन पंक्तियों से बाबा
साहब को कोटि कोटि नमन करता हूँ।”
आपने हमारी आजादी कायम कर दी,
हे दलितों के हमदर्दी,
महामानव, महानायक, विश्व विभूति
भारतरत्न भीमराव अंबेडकर
वंचितों को वाचा दी आपने,
मुक्तिदाता महामानव युगपुरुष अंबेडकर
तेरा नाम
युगों-युगों अमर रहेगा।
संदर्भ
1) भारतीय
संविधान-संपादक-वी.आर.अम्बेडकर, प्रकाशक-बुद्ध अम्बेडकर कल्याण एसोसिएशन,लखनऊ, वर्ष-2022
2) हौसलों की उड़ान-(कविता संग्रह)डॉ. धीरज वणकर, ज्ञान प्रकाशन कानपुर-
वर्ष-2019
डॉ. धीरज वणकर
अध्यक्ष हिंदी विभाग,
जी. एल. एस. कॉलेज फोर गर्ल्स,
अहमदाबाद
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