मंगलवार, 26 मार्च 2024

मत-अभिमत

 

 

Ø  यदि प्रेमचंद के बाद हिन्दी के चार बड़े रचनाकारों का नाम लिया जाये तो रांगेय राघव का नाम राहुल जी के बाद निश्चित रूप से लिया जाएगा। यशपाल और मुक्तिबोध अन्य प्रमुख रचनाकार हैं। मुक्तिबोध ने कविता को, यशपाल ने हिन्दी कथा साहित्य को नये आयाम प्रदान किये। रांगेय राघय हिन्दी के ऐसे रचनाकार हैं जिन्होंने परंपरा का मूल्यांकन मार्क्सवादी दृष्टि से पूरे ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य में किया। इसके साथ ही उन्होंने समाजशास्त्रीय आलोचना को विकसित करने में महत्वपूर्ण योगदान दिया।

         कुँवरपाल सिंह

 

Ø  रांगेय राघव प्रेमचंद की विरासत में बहुत कुछ नया और सार्थक जोड़ने वाले प्रगतिशील रचनाकार के रूप में जाने जाते हैं। उनके मार्क्सवादी चिंतन में कुछ अंतर्विरोध भी रहे हैं, जिनके चलते उनकी कुछ मान्यताएँ विवादास्पद भी रही हैं। फिर भी निःसंदेह यह कहा जा सकता है कि प्रेमचंद की परंपरा और विरासत को बड़ी समर्थ लेखनी के माध्यम से रांगेय राघव ने न केवल संरक्षित किया है, बल्कि उनकी रचनाशीलता में गुणात्मक समृ‌द्धि भी दिखाई पड़ती है।

         डॉ. शिवकुमार मिश्र

 

Ø  रांगेय राघय का उपन्यासकार के रूप में यश मुख्यतः कब तक पुकारूँ पर आधारित है। अधिकतर आलोचकों ने  कब तक पुकारूँ की चर्चा ‘आंचलिक’ उपन्यास के रूप में की है, क्योंकि इसमें करनट जाति के जीवन-यथार्थ का अंकन किया गया है। पर केवल इस आधार पर कब तक पुकारूँ को आंचलिक उपन्यास कहना ठीक नहीं है। कब तक पुकारूँ में न तो कोई अंचल विशेष अपनी सम्पूर्णता में उभरा है न इसकी भाषा ही किसी अंचल विशेष से जुड़ी हुई है।

         गोपाल राय

 

Ø  रांगेय राघव की लेखकीय प्रतिभा का ही कमाल था कि सुबह यदि वे आद्यैतिहासिक विषय पर लिख रहे होते थे तो शाम को आप उन्हें उसी प्रवाह से आधुनिक इतिहास पर टिप्पणी लिखते देख सकते थे।

         राजेन्द्र यादव

 

Ø  परसाई जब अपने बारे में लिखते हैं, तो क्या अपनी कमजोरियों के बारे में चुप रहते हैं या अपने दोष छिपा जाते हैं? इस दृष्टि से उन्होंने ‘हम इक उम्र से वाकिफ़ है’ में जो स्वीकारोक्तियाँ की हैं, वे गौर तलब है। वे अपने अतीत का अच्छा-बुरा कुछ नहीं छिपाते, न अपने को महिमा-मंडित कर देखना-समझना चाहते हैं।....... परसाई ने अपने बारे में भी लिखते हुए बहुतों के बारे में लिखा है और लिखा है बहुत ईमानदारी और बेबाकी के साथ। यही तो उनकी सिफ्त है। हरिशंकर परसाई नाम ही है ईमानदारी और बेबाकी का। है कोई ऐसा दूसरा लेखक हिन्दी में?

         डॉ. श्यामसुन्दर घोष

 

Ø  परसाई जी का साहित्य पढ़ते समय यह बात छिपी नहीं रहती कि उनके तीखे से तीखे व्यंग्य प्रहार के मूल में भी करुणा के गहरे सोते लहराते रहते हैं। उनकी आलोचना का आधार ही सघन मानवीय करुणा है। वे हमारी आत्मा के शिल्पी हैं। उनका साहित्य हमारी आत्मा को बदल डालता है। वे शायद हमारे सबसे संवेदशील लेखक हैं। उनकी करुणा की धार जितनी गहरी है, उतनी ही वेगवान भी। ऊपर से देखने पर सतह से शायद कोई हलचल न भी दिखाई दे, कोई अतिरिक्त शोर भी सुनाई दे। यह एकदम स्वाभाविक है। पानी जितनी गहराइ‌यों से गुजरता है, उसका शोर भी उतना ही कम होता है।

         श्याम कश्यप

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