गुरुवार, 29 फ़रवरी 2024

संस्मरण

केदारनाथ सिंह

इंद्रकुमार दीक्षित

कवि केदारनाथ सिंह का देवरिया से खास लगाव था। इसके दो कारण थे।एक तो यह कि वे सन पचहत्तर से पहले तक देवरिया जनपद के एक कस्बे पड़रौना जो अब कुशीनगर जनपद का मुख्यालय है, के उदित नारायण महाविद्यालय में हिंदी के प्राध्यापक रहे। दूसरा यह कि उनके कुछ साहित्यिक मित्र देवरिया में रहते थे जिनसे मिलने जुलने या अपने गाँव चकिया (जनपद-बलिया) जाते समय प्राय: देवरिया होकर ही जाना पड़ता था। एक तीसरा कारण भी  देवरिया से लगाव का यह था कि उनकी मातृभाषा भोजपुरी के क्षेत्र में देवरिया और कुशीनगर दोनो आते थे। उन्हें  जब भी  अवसर मिलता भोजपुरी में बतियाने का कोई  मौका छोड़ना नहीं चाहते थे। असाध्य बीमारी में पत्नी  के चल बसने से अचानक उनका मन पड़रौना से उचट गया उन्हीं दिनों जे.एन.यू.(नईदिल्ली)से बुलावा आ जाने पर वे पड़रौना छोड़कर दिल्ली चले गये और बाद में वहीं बस भी गये। पर बड़े और व्यापक फलक पर चले जाने के बावजूद वे न तो पड़रौना-देवरिया को भूल सके, न ही अपने गाँव चकिया को। किसी न किसी बहाने वे साल दो साल में इधर आने की जुगत बैठा ही लेते।और जब भी  आते तो  अपने मित्रों, कवियों और साहित्य प्रेमियों से मिले बिना नहीं जाते।

       बात साल फरवरी २०१२ की है, जब वे गोरखपुर किसी आयोजन में आये थे और उन्हें  सड़क मार्ग से देवरिया होकर चकिया अपने गाँव जाना था। गोरखपुर  से कार से देवरिया पहुँचने पर सबसे  पहले अंचल भारती के संपादक  जयनाथ मणि के यहाँ  गये। उनसे  मिलने के बाद डॉ. अरुणेश नीरन के आवास देवरिया खास मिलने पहुँचे साथ में उनके  मुँहबोले मित्रकवि गिरिधर करुण और सतीशचंद्र भास्कर भी  थे। नीरन जी के यहाँ ही रात में रुककर अगले दिन बलिया जाने का प्रोग्राम बन गया। जानकारी होने पर मैं, नागरीप्रचारिणी सभा देवरिया के नव निर्वाचित मंत्री कवि सरोजकुमार पांडेय और उद्भव मिश्र केदारनाथ सिंह जी से भेंट करने नीरन जी के घर पर पहुँच गये ।

             प्रस्ताव रखा गया कि नागरी प्रचारिणी सभा में प्रो. सिंह का एकल काव्यपाठ उसी दिन हो जाय। डॉ. नीरन जी के आग्रह पर केदारनाथ जी काव्यपाठ के लिए तैयार हो गये। फिर क्या हुआ कि आनन फानन में तीस चालीस साहित्य प्रेमियों और स्थानीय कवियों को मोबाइल पर सूचित करके  सभा में बुलाया गया। आठ फरवरी को ०३ बजे से सभा के तुलसी सभागार में काव्यपाठ आयोजित हुआ। मंचपर प्रो. केदारनाथ सिंह के साथ डॉ. अरुणेश नीरन और सभा के उपाध्यक्ष के नाते मुझे बैठना हुआ। वीणापाणि के अर्चना-वंदन के बाद सभा के मंत्री सरोज कुमार पांडेय ने स्वागत किया। कवि के परिचय-क्रम में डॉ. अरुणेश नीरन ने कहा कि केदारनाथ सिंह बेहद सहज और सरलमना कवि हैं।

इनकी कविताएँ देशकाल के विविध और व्यापक आयामों  से सार्थक संवाद करती हैं। कवि केदारनाथ जी के काव्य में ग्राम्य लोकजीवन से लेकर महानगरों के जटिल  परिवेश के जितने संवेदी बिंब देखने को मिलते  हैं उतने इनके  समकालीन शायद किसी कवि में नहीं दिखते। विश्व की अनेक भाषाओं में इनकी अनूदित कविताओं का पढ़ा जाना इन्हें  बड़ा कवि बनाता है।

          इसके बाद केदारनाथ सिंहजी मंच पर बैठकर ही लगभग एक घंटे तक एक के बाद एक कविताएँ पढ़कर सुनाते रहे। बात उन्होंने मातृभाषा भोजपुरी से शुरु की और कुछ मिनट तक भोजपुरी में ही बोलते रहे। उन्होंने कहा- 'भोजपुरी हमार घर ह आ हिंदी हमार देस। कब्बो हम घर से निकरि के बाहर देस में पहुंचि जानी आ फेर देस से घूमिघामि के अपनी घर में आजाइलें।  घर से देस आ देस से घर में आवाजाही  होत रहेला।' इसके बाद उन्होंने 'मातृभाषा 'नामक कविता हिंदी में पढ़ी--'ओ मेरी भाषा मैं  लौटता हूँ तुममें जबचुप रहते रहते अकड़ जाती है मेरी  जीभ दुखने लगती है मेरी  आत्मा----'। आगे वे नदियाँ, टूटा हुआ ट्रक, पानी  में घिरे हुए लोग, एक पारिवारिक प्रश्न जैसी आधा दर्जन कविताओं का प्रवाहमय पाठ करते रहे। काव्यपाठ  के बाद सभा की ओर से मैंने डॉ. कवि केदारनाथ सिंह, नीरन जी और उपस्थित श्रोतागण  का आभार जताया।

             अगली बार कविवर केदार जी फरवरी २०१५ में फिर देवरिया आये। दो दिन पहले कुशीनगर किसी सेमिनार में आये थे। उन्हें गोरखपुर  होकर सड़क मार्ग से गाँव चकिया जाना था। देवरिया बीच में ही पड़ता है। इस बार कवि गिरधर करुण गोरखपुर से ही उनके साथ थे। सबसे मिलते जुलते देर हो जाने से रात में प्रेस्टीज इंटर कालेज देवरिया में रुकने का प्रोग्राम बना शाम को मैं, उद्भवजी, सरोजकुमार पांडेय, सतीशचंद्र भास्कर  और दयाशंकर कुशवाहा जी उनसे  मिलने प्रेस्टीज इ.का. पहुँचे। चाय पीते वक्त सब लोगों के बीच तमाम हल्की फुल्की बातें होती रही। नागरी प्रचारिणी सभा का हालचाल और उसमें होने वाली गतिविधियों पर भी चर्चा हुई।

               केदारनाथ सिंह जी उस दिन काफी खुश और अच्छे मूड में थे। इसी क्रम में उन्होंने बताया कि उनकी और गिरधर करुण की ससुराल बिहार के एकमा स्टेशन के पास एक ही गाँव में है इसलिए इनसे मेरा सढ़ुआ नाता चलता है। इस पर देर तक हँसी होती रही। फिर उन्होंने भारत के प्रथम राष्ट्रपति बाबू राजेन्द्र प्रसाद के बारे में संस्मरण सुनाते हुए कहा - कि राजेन्द्र बाबू की पत्नी राजेश्वरी देवी जी जब पहली बार राष्ट्रपति भवन में रहने दिल्ली पहुँची तो उन्हें वहाँ  गिरस्थी जमाने के सिलसिले  में अनाज फटकने वाले सूप की जरूरत पड़ी पर वहाँ  सूप कहाँ  मिले सो उन्होंने राजेन्द्र बाबू से कहलवाया कि किसी से सूप मँगवा दें। संयोग से उसी समय हिंदी की कवयित्री महादेवी वर्मा राष्ट्रपति जी से मिलने राष्ट्रपति भवन पहुँची थीं, तो सूप की चर्चा उनके सामने भी आई। बात आई गई हो गई परंतु महादेवी जी जब इलाहाबाद आईं तो उन्हें  सूप की याद आई फिर उन्होंने एकदर्जन सूप मँगवाकर रख लिया और फिर जब उन्हें दूसरी बार राष्ट्रपति जी से मिलने दिल्ली जाना हुआ तो सूपों काबंडल भी स्टेशन से टैक्सी में रखवा लिया। जब वे राष्ट्रपति भवन के गेट पर पहुँची तो वहाँ सुरक्षाबल टैक्सी मेंरखे सामानो की जाँच करने लगे इससे  महादेवी जी को बड़ी असुविधा महसूस  हुई। फिर जब वर्माजी ने सुरक्षाबलों को बताया कि यह सामान राष्ट्रपति जी की पत्नी राजेश्वरी देवी ने मँगवाया है तब उन्हें भीतर जाने दिया गया।

राजेश्वरी जी इतने सारे सूप एकसाथ देखकर आश्चर्य में पड़गईं और मुस्कराते हुए रखवा लिया। इसी रौ में संपूर्ण क्रांति के महानायक जयप्रकाश नारायण जी के बारे में संस्मरण सुनाते हुए कविवर केदारनाथ जी ने कहा -कि बलिया में उनके गाँव चकिया से जयप्रकाश नारायण का गाँव सिताब दियारा ज्यादा दूर नहीं परंतु वह गंगा के दियारा क्षेत्र में पड़ता है। उस गाँव में सत्ताइस मजरे(टोले) हैं जो कुछ-कुछ दूरी पर बसे हैं, उन दिनों ये मजरे जयप्रकाश बाबू के परिवार के लोगों की जमीदारी में थे। परंतु आजादी  के बाद जमीदारी प्रथा टूटने परजय प्रकाश जी ने अपना पुश्तैनी घर और बगीचे की जमीन छोड़कर बाकी सारी जमीन गरीबों  में बाँट दिया। देश के कोने-कोने की यात्रा से लौटने के बाद जय प्रकाश जी दियारा के अपने गाँव जरूर आते और अपनी पत्नी प्रभावती देवी के साथ कुछ दिन गाँव की अपनी बिखरी में बिताते थे।

केदारनाथ जी ने बताया कि एकबार वे अपने लड़के के साथ जयप्रकाश बाबू से मिलने साइकिल से सिताब दियारा पहुँच गये। उनके बखरी से कुछ घर पहले एक दर्जी की दुकान पर रुककर उनके घर पर होने के बारे में पूछा तो दर्जी ने बताया - अभी  तो वे सुबह दुकान की तरफ आये थे देख लीजिए घर पर ही होंगे। केदारनाथ जी जब उनके घर पहुँचे तो देखा कि जय प्रकाश बाबू बरामदे में ही एक आराम कुर्सी पर लेटे हुए थे। केदार जी ने अपना और बेटे का परिचय देते हुए बताया कि वे दोनो उनसे  मिलने के लिए ही आये हैं। जय प्रकाश बाबू ने दोनों को पास पड़ी कुर्सियों पर बैठने का संकेत करते हुए अंदर चले गये और थोड़ी देर बाद एक हाथ में पेड़े से भरा कटोरा और दूसरे हाथ में पानी भरा जग उठाये आये और पास पड़े टेबल पर रखते  हुए बोले - लो बेटे खाओ, ये पेड़े मैं महाराष्ट्र से लाया हूँ। फिर देर तक गाँव जवार और देशकाल की बात करते रहे ।

जय प्रकाश बाबू इतने सरल थे कि नौकर चाकरों के होते हुए भी जलपान का पात्र् स्वयं लाये। अभी  केदारनाथ जी वहाँ  बैठे ही थे कि इसी बीच एक हट्टे कट्ठे उम्रदराज व्यक्ति बैलों की नाद में सानी देकर भिगोया हुआ हाथ लिए वहाँ आये और बोले - "का हो जयप्रकाश कब अइल ह। ढेर दिन हो गइल तोहरे साथे खइले"। जयप्रकाश जी बोले - हँहो भाई ! अच्छा त काल्हि एंहिंजे दुआर पर लिट्टी-चोखा लागी आ साथ हीं खाइल जाई।

           समकालीन विश्व कविता  के चमकते  नक्षत्र स्व. प्रो. केदारनाथ सिंह तो बेशक हमारे बीच आज नहीं हैं लेकिन उनके  साथ बिताए गये कुछ पलों की स्मृतियाँ हमारे साथ हैं जो उनका चले जाना सहज स्वीकार करने  को तैयार नहीं हैं। लगता है वे मानो सामने बैठे आजभी भोजपुरी में अपना और गाँव जवार का सुखम दुखम बतिया रहे हैं। नागरी प्रचारिणी  सभा देवरिया(उ.प्र.) उन्हें श्रद्धासुमन अर्पित करती है।

 


इंद्रकुमार दीक्षित

मंत्री, ना.प्र.सभा देवरिया(उ.प्र.)

पता-वार्डनं.५/४५ मुंसिफकालोनी

रामनाथ देवरिया (उत्तरी) देवरिया (२७४००१)

 

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