सत्या शर्मा ‘कीर्ति’
सूरज संग स्त्री का नाता
स्त्रियाँ
चाहती थीं
अपने जीवन से बुहार दें
सारे अवांछित
धूल-कण और
फेंक आएँ किसी चौराहे पर,
जहाँ हफ्ते भर के
पुराने टोटके और
नींबू-मिर्ची फेंक
दिए जाते हैं
उड़ेल आएँ सारे दुःख
किसी कुएँ के
मुँड़ेर पर,
जहाँ वह घिसता रहे
रस्सी संग पत्थर की पीठ पर
किसी नदी के किनारे छोड़ आएँ
परेशानियों की गठरी
जैसे लोग छोड़ आते हैं
पूजा के सूखे फूल
कृष्णपक्ष की किसी रात
गली के अँधेरे मोड़
पर
उतार आएँ
मन के सारे बोझ
और फिर एक शाम
अपनी सारी परेशानियों को
मुट्ठी में भर
चुपके से चल दी स्त्री
अचानक याद आया
माँ कहती थी
शाम ढले घर से कूड़ा
बाहर नहीं निकालते
तब लौट आई स्त्री
इस संकल्प के साथ कि कल सुबह ही
अपनी सारी परेशानियाँ
बाँट लूँगी सूरज संग
इस तरह
स्त्री का सूर्य संग
सुख-दुख के साझेदारी
का रिश्ता बन गया
जिसे रोज सुबह वह
एक लोटे जल के साथ
सौंप आती है अपने दिन भर का
हिसाब-किताब
-०-
सत्या शर्मा ‘कीर्ति’
राँची
बहुत सुंदर सकारात्मक कविता।
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर ,नारी मन के द्वन्द्व का चित्रण। सुदर्शन रत्नाकर
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