बुधवार, 31 जनवरी 2024

कविता

 



जलते दीप नजर आएँगे 

इंद्र कुमार दीक्षित

धीरे-धीरे चलते  रहना

दुर्दिन पार निकल जाएँगे ।।

अँधियारों से मत घबराना

जलते दीप नजर आएँगे ।।

 

साहस के सामने खड़ी हो,

बाधा ऐसी नहीं बनी है

झुक जाए इंसान चुनौती

ऐसी कोई नहीं घनी है।।

सूर्य निकलने से पहले

सब तारे नभ में छिप जाएँगे ।।

अँधियारों से मत घबराना

जलते दीप नजर आएँगे ।।

 

आँखों में जब नींद भरे तो

सो जाना सिर रख बाहों पर

शुभ कर्मों पर सदा भरोसा

रखना तुम  संयम चाहों पर ।।

आगे आगे कर्म चलेगा

सुख दौड़े  पीछे आएँगे।।

अँधियारों से मत घबराना

जलते दीप नजर आएँगे ।।

 

तीखी चुभती विष-वाणी से

नहीं किसी को आहत करना

मीठी बोली के मरहम से

लोगों के घावों को भरना।।

मदद जरूरतमंद की करना

सारे कष्ट बिसर जाएँगे।।

अँधियारों से मत घबराना

जलते दीप नज़र आयेंगे।।

 

इंद्र कुमार दीक्षित

देवरिया

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

फरवरी 2025, अंक 56

  शब्द-सृष्टि फरवरी 202 5 , अंक 5 6 परामर्शक की कलम से : विशेष स्मरण.... संत रविदास – प्रो.हसमुख परमार संपादकीय – महाकुंभ – डॉ. पूर्वा शर्...