बुधवार, 31 जनवरी 2024

हाइकु

 



तुकाराम पुंडलिक खिल्लारे

 

हवा बसंती -

चेहरे पर बाल

सरसराएँ।

सूर्य उदय -

रुपहली मछली

चमचमायी।

आया शरद -

तकिया मुलायम

लाई लहर।

दृढ़ प्यार की

खत्म हो गई बातें -

रात तूफानी।

मस्त शरद -

तितली पी रही है

ओस फूल की।

दिखाई दिया

कवि का अंतर्मन-

खिले हैं फूल।

मत्स्य बाज़ार-

झींगी में झींगुर का

आ रहा सुर।

कोमल पत्ते

सूर्य चिनगारी में -

जीवन गीत।

उग्र सागर -

फैली है द्वीप पर

आकाश गंगा।

ओले की वर्षा -

मैं पुराने वृक्ष-सा

अविचलित।

समुद्रतट -

बर्फिली हवा संग

महकी मौज।

गुलाब खिले -

चिलचिलाती धूप

रंग उचटे।

●●●

 


तुकाराम पुंडलिक खिल्लारे

57, ‘पार्वती निवास,

गणपती मंदिर के पास,

लोकमान्यनगर,

परभणी - 431 401

(महाराष्ट्र)

1 टिप्पणी:

अप्रैल 2024, अंक 46

  शब्द-सृष्टि अप्रैल 202 4, अंक 46 आपके समक्ष कुछ नयेपन के साथ... खण्ड -1 अंबेडकर जयंती के अवसर पर विशेष....... विचार बिंदु – डॉ. अंबेडक...