तुकाराम पुंडलिक खिल्लारे
हवा बसंती -
चेहरे पर बाल
सरसराएँ।
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सूर्य उदय -
रुपहली मछली
चमचमायी।
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आया शरद -
तकिया मुलायम
लाई लहर।
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दृढ़ प्यार की
खत्म हो गई बातें -
रात तूफानी।
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मस्त शरद -
तितली पी रही है
ओस फूल की।
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दिखाई दिया
कवि का अंतर्मन-
खिले हैं फूल।
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मत्स्य बाज़ार-
झींगी में झींगुर का
आ रहा सुर।
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कोमल पत्ते
सूर्य चिनगारी में -
जीवन गीत।
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उग्र सागर -
फैली है द्वीप पर
आकाश गंगा।
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ओले की वर्षा -
मैं पुराने वृक्ष-सा
अविचलित।
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समुद्रतट -
बर्फिली हवा संग
महकी मौज।
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गुलाब खिले -
चिलचिलाती धूप
रंग उचटे।
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तुकाराम पुंडलिक
खिल्लारे
57, ‘पार्वती
निवास’,
गणपती मंदिर के पास,
लोकमान्यनगर,
परभणी - 431
401
(महाराष्ट्र)
बहुत सुंदर। सुदर्शन रत्नाकर
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