एक कवि: अटल बिहारी
वाजपेयी
अनिकेत सिन्हा
न कोई महापुरुष
न ही कोई देवता, यह एक संक्षिप्त
कथा उस मानव की है जिसने अपनी सत्ता, अपने दृष्टिकोण
तथा अपनी असीम बुद्धि और शक्ति के बल पर देश का प्रतिनिधित्व करते हुए संपूर्ण राष्ट्र
की चेतना को अपनी लिखी 51 कविताओं द्वारा
जगाया है और राष्ट्र को जीवन में कभी हार ना मानने का संदेश दिया है ।
न केवल राष्ट्रीय स्तर पर अपितु अन्तरराष्ट्रीय
स्तर पर भी अपनी पहचान को, अपने सिद्धांतों
को और अपने दृष्टिकोण के द्वारा देश का प्रतिनिधित्व किया है । यह कोई और नहीं, हमारे पूर्व प्रधानमंत्री श्री अटल बिहारी
वाजपेयी जी है ।
अटल बिहारी वाजपेयी
जी का जन्म 25 दिसम्बर, सन 1924 ग्वालियर मध्यप्रदेश
में हुआ था । कहावत ही है की मनुष्य की उम्र से मनुष्य को परखा नहीं जा सकता अपितु
मनुष्य की पहचान उसके कर्मो से होती है उसी तरह अटल बिहारी वाजपेयी जी द्वारा किये
गए सभी कर्मों द्वारा हम आज उन्हें एक आदर्श प्रधानमंत्री के रूप में देखते हैं । उन्होंने
3 बार प्रधानमंत्री के पद को संभाला, पहला सन 1996 में 13 दिनों के लिए, दूसरी बार सन 1998 से 1999 तक 13 महीनो के लिए
और आखरी बार सन 1999 से 2004 तक 5 वर्षों के लिए और इस तरह हम उन्हें भारत
के दसवें प्रधानमंत्री के रूप में पहचानते हैं लेकिन उनकी पहचान को केवल प्रधानमंत्री
पद तक सीमित रखना ग़लत होगा क्योंकि उनके पास एक कवि मन भी था।
कहते है कि अटल जी की यह पाँच कविताएँ
किसी हारे हुए, थके हुए मनुष्य
की देह को एक दीपक के समान प्रज्वलित करने की क्षमता रखती हैं । चलिए इन पाँच कविताओं
के कुछ अंशों द्वारा आज हम अटल जी के विचार और भाव पर चर्चा करें और उनके जीवन पर प्रकाश
डाले ।
1)
कदम मिलाकर चलना होगा
वाजपेयी जी की 51 कविताओं में
से एक ऐसी कविता जो लोगों को एक साथ मिलकर चलने की प्रेरणा देती है।
उनका मानना यह है कि चाहे जितनी उलझनें
आए, चाहे जितने कष्ट हो, चाहे प्रलय ही क्यों न आजाए हमें साथ
मिलकर इन काँटों भरे रास्तों पर चलना ही होगा और निरंतर एकजुट होकर हालातों का सामना
धैर्य से करना होगा ।
हास्य-रूदन में, तूफ़ानों में,
अगर असंख्यक
बलिदानों में,
उद्यानों में, वीरानों में,
अपमानों में, सम्मानों में,
उन्नत मस्तक, उभरा सीना,
पीड़ाओं में
पलना होगा।
क़दम मिलाकर
चलना होगा।
~ अटल बिहारी वाजपेयी
इस कविता से
हम यह कह सकते हैं कि वाजपेयी जी किसी भी परिस्थिति में न किसी का साथ छोड़ने वालों
में से थे और न ही हार मान ने वालों की गिनती में आते थे ।
2) आओ फिर से दिया
जलाए
वाजपेयी जी की
यह कविता मनुष्य के मन में बसी उस उलझन को नष्ट करने की क्षमता रखती है जिससे वह मनुष्य
न ही वर्तमान में जी पा रहा है और न ही अपने भविष्य की ओर, अपने लक्ष्य की ओर बढ़ रहा है । वाजपेयी
जी ने सफलतापूर्वक अपनी बात लोगों के समक्ष रखी है कि अपने लक्ष्य को पाने के लिए कई
कठिनाइयों का सामना करना पड़ेगा उस बीच शायद मनुष्य अपना धैर्य खो बैठे या वो अपना
रास्ता भटक जाए या उसे इस बीच ऐसा लगे कि उसकी पराजय निश्चित है जहाँ पर उस मनुष्य
का विवेक और सकारात्मकता पूर्णतः नष्ट हो जाए, तब उस मनुष्य
को अपने भीतर एक ऐसा दीप प्रज्वलित करना होगा एक ऐसी आशा को जन्म देना होगा जो पूरा
अंधेरा एक पल में नष्ट कर दे, हर उलझन सुलझा
दे ताकि वह अपने लक्ष्य को पा सके और वह लक्ष्य कोई पड़ाव नहीं बल्कि मंज़िल है ।
हम पड़ाव को
समझे मंज़िल
लक्ष्य हुआ आँखों
से ओझल
वर्त्तमान के
मोहजाल में-
आने वाला कल
न भुलाएँ।
आओ फिर से दिया
जलाएँ।
~ अटल बिहारी वाजपेयी
इस कविता में
हम वाजपेयी जी का यह स्वरूप देख सकते हैं जो हार को हार के रूप में न देख कर उसे एक
सीख के रूप में देखते हैं और हारने पर या कहीं खो जाने पर हार ना मान कर एक ज्ञान रूपी
दिया जलाने की सीख देते हैं।
3) गीत नया गाता
हूँ
हार एक ऐसी व्यथा
है जो मनुष्य को मन, सपने, उम्मीद और सोचने समझने की क्षमता को पूरी
तरह से झिंझोड़ कर रख देती है, वाजपेयी जी की
यह कविता उन्हीं हारे हुए लोगों के लिए है जिनके पास कोई उम्मीद नहीं बची कोई आशा नहीं
बची । वाजपेयी जी कहते हैं –
“राह ग़लत हो, मंज़िल ग़लत हो तो समय तब भी नष्ट नहीं
हुआ है, एक नया राह थामना
होगा एक नई शुरुआत करनी होगी, एक नई पहचान
बनानी होगी बिल्कुल इस कविता के शीर्षक की
तरह “गीत नया गाता हूँ” ।
टूटे हुए सपनों
की कौन सुने सिसकी
अन्तर की चीर
व्यथा पलको पर ठिठकी
हार नहीं मानूँगा,
रार नई ठानूँगा,
काल के कपाल
पे लिखता मिटाता हूँ
गीत नया गाता
हूँ
~ अटल बिहारी बाजपयी
4)
जीवन बीत चला
हम सब आज कल
इस दुनिया की उस दौड़ में खो गए हैं जहाँ किसी को कुछ पता नहीं चलता कि वह कहाँ जाना
चाहता है, क्यों जाना चाहता
है, बस वह उस दौड़ में भाग रहा है न ही उसने
जीवन के मज़े लिए ना उसने अपनों के साथ समय बिताया न ही उसने समय का पूर्णतः उपयोग
किया, वह बस भूत और
भविष्य के बारे में सोचते-सोचते अपना समय गवाँया करता है । इन सब उलझनों में उलझे रहकर
सम्पूर्ण जीवन बीत जाता है। इस सच्चाई को वाजपेयी जी ने इस कविता में बडी सुंदरता से
दर्शाया हैं और लोगों को इस सच्चाई से अवगत करा कर उन्हें जागरुक करने की कोशिश की
है ।
कल कल करते आज, हाथ से निकले सारे
भूत भविष्यत
की चिंता में, वर्तमान की बाजी
हारे
पहरा कोई काम
न आया, रसघट रीत चला
जीवन बीत चला।
~ अटल बिहारी वाजपेयी
5) कौरव कौन, कौन पांडव
छोटी कविता पर
सवाल बड़ा है, शब्द कम है परंतु
भाव नया है। इस कविता को पढ़नेवाला कविता में छुपे भाव को अपने मन अनुसार मोड़ सकता
है, इस कविता में कुछ शब्द कम क्यों न हो
परंतु इसका अर्थ बहुत विशाल है। कवि इस कविता में द्वापर के पांडव और कौरव की तुलना
इस सदी के समाज से करते हैं जहाँ शकुनी आज के भ्रष्ट नेताओं की ओर इशारा करता है जो
ठीक द्वापर युग में मनुष्यों को अपने जाल में खींच लेते थे अपनी नीति और अधर्म पर विजय
पाने हेतु हर वह चीज़ लांघने की हिम्मत करते थे उसी तरह आज के शकुनी का जाल भी वैसे
ही मनुष्यों को ठगे जा रहा है, आज भी वही चौसर
का खेल खेला जा रहा है जहाँ फिर द्रौपदी जैसी नारी को दाँव पर लगाया जाता है और इस
समाज में कोई श्री कृष्ण जैसा नहीं, तब भी यद्ध अवश्य
हुआ था और अब भी महाभारत छिड़ेगी और चाहे विजयी कोई भी हो इस युद्ध में दुखी हमेंशा
वही होंगे जो युद्ध से परे थे ।
कौरव कौन, कौन पांडव, टेढ़ा सवाल है।
दोनों ओर शकुनि
का फैला कूटजाल है।
धर्मराज ने छोड़ी
नहीं जुए की लत है।
हर पंचायत में
पांचाली अपमानित है।
बिना कृष्ण के
आज महाभारत होना है,
कोई राजा बने, रंक को तो रोना है।
~ अटल बिहारी वाजपेयी
अटल बिहारी वाजपेयी
जी की 51 कविताओं में
यह पाँच कविताएँ मेंरी दृष्टि में किसी भी हारे हुए व्यक्ति को पुनः खड़ा करने का एक
हथियार साबित होती हैं। उनकी कविताओं में हम न केवल एक सुंदर शैली और सरल भाषा का प्रयोग
देख सकते हैं अपितु हम उनके मन में छीपे भाव, उनकी समाज के
प्रति सोच भी देख सकते हैं। उनकी कुछ कविताएँ अनुभूतियों पर और उनकी विभिन्न स्मृतियों
पर भी लिखी गयी हैं और कुछ कविताओं में उन्होंने वातावरण के माध्यम से लोगों को सीख
दी है।
अनिकेत सिन्हा
छात्र
बी॰एस॰सी (एम॰एस॰सी॰एस)
भवंस विवेकानन्द
कॉलेज
सेकेन्दराबाद
केंद्र
सैनीकपुरी -
500094
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