शनिवार, 30 दिसंबर 2023

सृजन के स्वर

 


डॉ. सुधा गुप्ता और स्नेहरश्मि

साईनबानुं मोरावाला

हिन्दी हाइकु जगत में डॉ.सुधा गुप्ता का नाम प्रतिष्ठित रचनाकार के रूप में चर्चित रहा है । हिन्दी में हाइकु व ताँका को प्रतिष्ठित करने में उनका महत्वपूर्ण योगदान है । डॉ.सुधा गुप्ता उन आरंभिक हाइकु कवियों में से हैं जब हाइकु हिन्दी साहित्य जगत में आया। हाइकु तथा ताँका पर ही उनके एक दर्जन से ज्यादा संकलन प्रकाशित हुए हैं, जिनमें ‘खुशबू का सफर’ (१९८६), ‘लड़की का सपना’(१९८९), ‘तरु देवता पाखी पुरोहित’(१९९७), ‘कुकी जो पिकी (२०००), ‘बाबुना जो आएगी’(२००४), ‘आ बैठी गीत परी’(२००४),‘अकेला था समय’(२००४), ‘चुलबुली रात ने’ (२००६), ‘पानी माँगता देश ’ (सेनर्यू संग्रह-२००६), ‘कोरी माटी के दिये’(२००९), ‘खोई हरी टेकरी’(२०१३), ‘दौड़-दौड़ हिरना’ (सेनर्यू संग्रह२०१७) एवं सह संपादित हाइकु संग्रहों में - ‘सवेरों की दस्तक’(२०१२), ‘हिन्दी हाइकु प्रकृति काव्यकोश’(२०१४) तथा इसके साथ-साथ एक समीक्षात्मक ग्रंथ हिन्दी हाइकु ताँका सेदोका की विकास यात्रा: एक परिशीलन’(२०१७)। डॉ. सुधा गुप्ता ने न केवल कई सारे हाइकु संग्रहों को लिखकर हिन्दी साहित्य को समृद्ध किया है, बल्कि सभी संग्रह काफी लोकप्रिय भी हुए हैं । जापानी विधाओं के ताँका, हाइबन,चोका आदि का हिन्दी साहित्य में सर्व प्रथम प्रयोग सुधाजी ने ही किया है।‘सात छेद वाली’ (ताँका संग्रह-२०११), ‘ओक भरी किरने’(चोका संग्रह – (२०११),‘सागर के रोंदने’(सेदोका संग्रह–(२०१४),‘तलाश जारी रहे’(ताँका संग्रह २०१५),‘सफर के छाले हैं’ (हाइबन संग्रह-२०१४), ‘हाइगा आनंदिका’(हाइगा संग्रह-२०१६) । इसके अलावा भी अन्य काव्य-संग्रह, बाल-गीत संग्रह, गीत संग्रह तथा तीन शोध ग्रंथ एवं कुछ संपादित ग्रंथ भी प्रकाशित हुए हैं। अनेकों पत्र -पत्रिकाओं एवं वेब पत्रिकाओं में भी रचनाएँ प्रकाशित हो चुकी हैं ।

डॉ. सुधा गुप्ताजी की रचनाओं में ज्यादातर बिंबों की भरमार है। ज्यादातर हाइकु में फूलों, पत्तियों, वृक्षों, पक्षियों तथा छोटे-छोटे जीव जंतुओं पर बड़े ही सुंदर हाइकु हमें मिलते हैं। प्रकृति के दृश्यों - चित्रों और जंतुओं के प्रति उनका अद्भुत आकर्षण है । प्रकृति के अलावा भी उन्होंने अन्य विषयों के अंतर्गत राजनीति,दंगे, व्यंग्य, प्रेम-विरह, सुख-दु:ख, स्मृतियाँ, नारी चित्रण, वृद्धों की पीड़ा, गरीबी, प्राकृतिक आपदाएँ जैसे अनेक विषयों पर लेखनी चलाई है। शिल्प की दृष्टि से भी उन्होंने काव्य में उपमा, रूपक, हेतुत्प्रेक्षा, श्लेष, विशेषण-विपर्यय, प्रतीप आदि अलंकारों का प्रयोग किया है । यहाँ पर कुछ हाइकु दृष्टव्य हैं

ठिठकी खड़ी/अकेली बूढ़ी साँझ / राह  न सूझे ।

ताप बढ़ेगा/ हिम -नद गलेंगे/ बढ़, बहेंगे।

ठूँठ भी हँसे/ चैत की मस्ती देख/कल्ले फाड़ के।

हँसता चीड़/ छबीला- छर हरा/ किशोर कवि।

डॉ. सुधा गुप्ता ने अपने मन में उठे भावों को सुंदर शब्दों के साथ हाइकु में पिरोया है। साहित्येतिहासकारों का मानना है कि हाइकु कविता के क्षेत्र में कुछ नए प्रयोग सबसे पहले सुधाजी ने किए हैं ।

हिन्दी साहित्य जगत में कई सारे हाइकु कवि हुए हैं ठीक उसी तरह गुजराती साहित्य में भी कई रचनाकार हुए हैं । हिन्दी हाइकु में जिस तरह से डॉ. सुधा गुप्ता का नाम प्रमुख है उसी तरह गुजराती हाइकु कवियों में (झीणाभाई रतनजी देसाई-जन्म-१६अप्रैल सन् १९०३ चिखली, वलसाड-गुजरात- मृत्यु ६ जनवरी सन् १९९१) ‘स्नेह रश्मि’ का नाम पहले आता है । वैसे तो गुजराती साहित्य में हाइकु के प्रथम प्रयोगकर्ताओं में दिनेश कोठारी और अनिरुद्ध ब्रह्मभट्ट का नाम लिया जाता है किन्तु गुजराती में हाइकु कविता की इस विधा को लोकप्रिय बनाने में ‘स्नेहरश्मि’ का योगदान महत्वपूर्ण है । कहा जाता है कि गुजराती में हाइकु की शुरुआत सन् १९६५ में हुई थी और ‘स्नेहरश्मि’को इसका पहला प्रस्तावक माना जाता है । ‘स्नेहरश्मिजी’ने एक साथ कई हाइकु रचना की,साथ ही राजेंद्र शाह,प्रियकांत मणियार ,रावजी पटेल, धीरू पारिख, धनसुख लाल पारेख आदि कई कवियों ने इस काव्य विधा को समृद्ध करते हुए आगे बढ़ाया ।

पहले ‘स्नेहरश्मिजी’का जीवन एक स्वतंत्रता सेनानी के रूप में शुरू हुआ और सच्चे देशभक्त के रूप में इन्होंने राष्ट्र की सेवा भी की । सन् १९३४ से उनके जीवन की दिशा बदल गई और वे राजनीति छोड़कर शिक्षा के क्षेत्र में आ गए तब से वे जीवन भर इसी क्षेत्र में जुड़े रहे । उन्होंने अपने साहित्यिक जीवन की शुरुआत कविता से की । सन् १९२१ में शुरू हुई उनकी काव्य यात्रा का पहला चरण १९३५ में प्रकाशित पहला काव्य संग्रह ‘अर्घ्य’ था । सन्१९४८ में एक और कविता संग्रह ‘पनघट’ प्रकाशित हुआ । बहुत लंबे अंतराल के बाद सन् १९७४ में ‘अतित नी पांख माथी’(अतीत के पंख से) तथा सन् १९८४में ‘क्षितिजे त्या लंबाव्यो हाथ’ प्रकाशित हुआ। इन्होंने कविता के अलावा कहानी, उपन्यास,आलोचना आदि विधाओं में भी लेखन कार्य किया है । उनका पहला कहानी संग्रह ‘गाता आसोपालाव’(१९३४),‘तूटेला तार’(१९३४), ‘स्वर्ग अने पृथ्वी’(१९३५), ‘मोटी बहेन’ (१९५५) तथा १९६२ में‘हिराना लटकणियाँ’, ‘कालाटोपी’ आदि संग्रह प्रकाशित हुए ।‘ स्नेहरश्मि’का महत्व पूर्ण योगदान उनकी आत्मकथा के चार खंड है:‘मारी दुनिया’(१९७०), ‘साफल्यटाणु’ (१९८३), ‘उघड़े नवी क्षितिज‘(१९८७), तथा ‘वणी नवा आ श्रृंग’(१९९०) इस आत्मकथा में उस समय के सामाजिक, सांस्कृतिक,राजनीतिक और शैक्षिक वातावरण का वर्णन किया गया है ।

सातवें दशक के मध्य में बेटी की मृत्यु हो जाने के कारण परेशान मनको सांत्वना देने के लिए स्नेह रश्मि जी ने जापानी काव्य विधा हाइकु की और रुख किया तथा सन् १९६७ में अपना पहला ऐतिहासिक हाइकु संग्रह ‘सोनेरी चाँद रुपेरी सूरज’ लिखा। इस संग्रह में ३५९ हाइकु तथा ६ ताँका कविताएँ संकलित है । हाइकु शैली की अपनी प्रतिष्ठा है । हाइकु मूल ताँका से ली गई एक जापानी काव्य शैली है , जो १७ अक्षरों वाली एक सुंदर रचना है । इसमें क्षण का सौंदर्य कलात्मक ढंग से अभिव्यक्त होता है । काव्यात्मक कल्पना एवं काव्य शक्ति का भी अद्भुत परिचय मिलता है । गुजराती भाषा साहित्य में सन् १९८४ में इनका दूसरा हाइकु संग्रह ‘केवल विज’ प्रकाशित हुआ । उसी वर्ष उनका सबसे प्रसिद्ध कविता संग्रह ‘शकल कविता’ भी प्रकाशित हुआ । १९८६ में इनके हाइकु के कुछ अंग्रेजी अनुवादों का एक संग्रह ‘सनराइज ऑन सनोपिक्स’ शीर्षक से प्रकाशित हुआ ।

‘सोनेरी चाँद रुपेरी सूरज’ में संग्रहित सभी हाइकु ऋतु वर्णन, प्रकृति, जीवन-दर्शन, प्रेम आदि विषयों को लेकर रचे गए हैं, यथा –

आ बाजु वन: / पहेणे मैदान: रात:/ वाघ विमा से ।

रंग विहोणी/ माटी आ: कई पींछी / रंग आ फूल ।

वेदनाओं सौ/ एकठी मणी: जागी/ उठी करुणा ।

जती वर्षाने/ तेडे कातरा लखी/ पांदडे पत्र ।

नाजुक तारी/ आंगणी चूंटे फूल/ घवाय नेण ।

अंततः कहा जा सकता है कि हिन्दी साहित्य जगत में डॉ. सुधाजी का हाइकु संबंधित सृजन-कर्म जितना व्यापक व स्तरीय रहा है ठीक उसी तरह से गुजराती साहित्य में स्नेह रश्मिजी का हाइकु संसार है । उपर्युक्त दी गई कुछ कविताओं के जरिये हमें पता चलता है कि कई रचनाएँ सुंदरता, परिष्कार, लय और हाइकु की श्रेणी में महारत हासिल करने का संकेत देती है ।

संदर्भ

. कोरी माटी के दिये, डॉ.सुधा गुप्ता,पुष्करणा ट्रेडर्स, पटना,२००९, पृष्ठ-३७

. खोई हरि टेकरी,डॉ. सुधा गुप्ता, पर्यावरण शोध एवं शिक्षा संस्थान, शास्त्री नगर,मेरठ,२०१३ पृष्ठ-४०

.  अकेला था समय, डॉ.सुधा गुप्ता, परफेक्ट प्रिंटर्स, मेरठ, द्वितीय संस्करण-२००४, पृष्ठ-५७

.  तरु देवता पाखी पुरोहित, डॉ. सुधा गुप्ता, नव युगांतर प्रेस शारदा रोड़, मेरठ,१९९७,पृष्ठ-३०

. सोनेरी चाँद  रूपेरी सूरज,स्नेहरश्मि, विद्या विहार प्रकाशन,अहमदाबाद,१९६७,पृष्ठ-३५

. वही,वही, पृष्ठ-३२

. वही,वही, पृष्ठ-५९

. वही-वही, पृष्ठ-५८

. वही,वही, पृष्ठ-७५

 


 

साईनबानुं मोरावाला

पीएच.डी-शोध-छात्रा,

स्नातकोत्तर हिन्दी विभाग..विश्वविद्यालय,

वल्लभ विद्यानगरगुजरात

 

 

 

1 टिप्पणी:

  1. हाइकु वैसे ही रोचक रहे हैं। लेकिन आप की प्रस्तुति गुजराती और हिन्दी भाषा के साहित्यकारों के संदर्भ में है जो एक नवीनता प्रदान करती है। सुंदर प्रस्तुति
    Khalid saiyad

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