शनिवार, 30 दिसंबर 2023

यादों के झरोखे से

 



कैसे भूलूँ वे स्नेहिल पल!

रमेश कुमार सोनी

      पूज्या डॉ. सुधा गुप्ता जी ने हिंदी हाइकु साहित्य को मातृवत संरक्षित और संवर्धित किया है। आज हम सब उनके बिना शून्य की दुनिया में सिर्फ आपसे जुड़ी यादों और आपके मार्गदर्शन के सहारे हैं।

     नवोदित रचनाकारों एवं वरिष्ठों का भी आपने बराबर मार्गदर्शन किया है। हिंदी साहित्य में आपकी कलम ने हाइकु, ताँका, सेदोका, हाइबन एवं कविता से इतिहास रचे हैं जिसके केंद्र में लोकजीवन की मंगलकामनाओं के साथ प्रकृति का वर्णन प्रमुख रहा। ऐसे विरले ही होते हैं जो अपनी साहित्य साधना के बीच अन्यों को भी समय दे पाते हैं। आपने कई संग्रहों की भूमिकाएँ लिखीं, समीक्षाएँ भी लिखीं। जिनके पास अपनी पुस्तक प्रकाशन के पर्याप्त पैसे नहीं होते थे उन्हें आर्थिक सहयोग देकर भी आपने प्रोत्साहित किया है।

      दीदी जी का विशेष स्नेह मुझे सन-2003 में मिला जब पहली बार मेरे अपरिचित होने के बाद भी उन्होंने मेरे पहले हाइकु संग्रह- ‘रोली अक्षत’- की भूमिका लिखी। दूसरी बार मैंने,उनकी अस्वस्थता के चलते 2 वर्ष तक अपने दूसरे हाइकु संग्रह - ‘पेड़ बुलाते मेघ’ -2018 को रोके रखा, जिद थी कि उनका आशीर्वाद मिले बिना यह संग्रह नहीं आएगा और आखिर जीत हुई मेरी ही ज़िद की। सुधा दीदी जी का आशीष मुझे मिला। जब भी आपसे बात होती तो आत्मीयता और ममता से भीगा हुआ स्नेह बरसने लगता था। एक बार मैंने अपनी पुस्तक उन्हें भेजी जिस पर मैनें लिखा था-’सादर समीक्षार्थ प्रेषित’; (जैसा सभी को भेजते वक्त आदतन हम लिखते हैं) तब उनके सुलझे जवाब ने मेरा मार्गदर्शन किया कि जो भूमिका लिखते हैं वही समीक्षा नहीं लिखते पश्चात उन्होंने किसी और से लिखवाकर भेजने के वादे को पूर्ण किया। बसना के हाइकुकारों से आपका विशेष लगाव था वे सबको उनके नाम से जानती थीं। हमारी उनसे रूबरू मिलने की इच्छा अधूरी रह गयी। साहित्यिक वार्ताओं के बीच उन्हें मेरा घर-परिवार भी याद था, मेरी पुत्री की शिक्षा और विवाह की बातें पूछना वो नहीं भूलती थीं। मेरे रायपुर शिफ्ट होने पर भी आपसे लम्बी बात हुई थी।

     मैंने विश्व का प्रथम हिन्दी ताँका संग्रह - ‘झूला झूले फूलवा’-2020 उन्हीं को समर्पित किया है। इस संग्रह को भी आपकी शुभकामनाएँ मिली हैं। इस साहित्य जगत में आपके कई प्रशंसकों ने भी अपने संग्रह को आपको  समर्पित किया है। इस दौर में जो भी आपसे मिले हैं वे गर्व कर सकते हैं तथा भविष्य की पीढ़ियाँ आपके साहित्य से धन्य होंगी। हिंदी साहित्य सदैव आपका ऋणी रहेगा।

    आज इस शोक के क्षण में अपनी विनम्र श्रद्धांजलि डॉ. सुधा दीदी जी को सादर समर्पित करता हूँ।

 



रमेश कुमार सोनी

बसना( रायपुर)

छत्तीसगढ़

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